पीला श्राप भाग २
पीला श्राप भाग २
सर्दी की सुबह की पीली धूप जेल के मनहूस माहौल को कभी-कभी खुशनुमा बना देती थी, आज भी ऐसा ही दिन था। रंजीत को जेलर ने अपने ऑफिस में तलब किया था। संतरी ने उसे जेलर के ऑफिस का जाली वाला दरवाजा खोल कर ऑफिस के अंदर जाने का इशारा किया।
जब रंजीत ने जेलर के ऑफिस में कदम रखा तो जेलर शांत भाव से अपनी मेज पर रखे कुछ कागज़ पलट रहा था।
जेलर ने शांत भाव से रंजीत की तरफ देखा और बोला, "रंजीत तुम बहुत चालाक आदमी हो; मेरी समझ में नहीं आता है कि तुम्हारे वकील किसी भी जज से तुम्हारे मन-माफिक आर्डर कैसे करा लेते है?"
रंजीत चुप रहा।
"ये कागज तुम्हारी रिहाई के आर्डर है तुम्हे तुम्हारी रिहाई की नियत तिथि से दो दिन पहले यानी आज रिहा करने के आर्डर आये है जेलर कागज का एक पुलिंदा उठाते हुए बोला।
रंजीत चुप रहा।
"मुझे पता है तुमने यह आर्डर मूसा के हत्यारो से बचने के लिए निकलवाए है. लेकिन जो तुम्हे दो दिन बाद मार सकते है उनके लिए क्या दो महीने बाद तुम्हे मारना कुछ कठिन होगा?" जेलर रंजीत की तरफ देखते हुए बोला।
रंजीत चुप रहा।
"रंजीत मेरा एक उसूल है मैं किताबी बातों के स्थान पर कड़वी सच्चाई कहना पसंद करता हूँ । किताब कहती है कि मैं तुम्हे समझाऊँ कि जेल से बाहर निकल कर तुम अपराध की दुनिया से दूर रहकर एक शरीफ शहरी की जिंदगी जीना लेकिन तुम जुर्म की दुनिया के उस दलदल का हिस्सा हो जो खुद तो बर्बाद हो रहा है लेकिन अभी भी पता नहीं कितनों की बर्बादी की वजह बनने वाला है। इसलिए तुमसे सिर्फ इतना ही कहूँगा कि तुम अपने बचे जीवन के साथ जो चाहे वो करो लेकिन बाहर निकल कर दूसरों की बर्बादी की वजह न बनना। जेलर गंभीर स्वर में बोला।
रंजीत चुप रहा
"रंजीत तुम मेरी जेल में बहुत शराफत से रहे हो लेकिन मैंने हमेशा तुम्हारी आँखों में एक बैचैनी देखी है, ऐसी बेचैनी जो हमेशा अपने आस-पास एक अदृश्य कातिल को तलाश करती रही है; लेकिन तुम्हारी तकदीर कहूँ या इस जेल का भाग्य कि कोई कातिल तुम्हे खत्म करने इस जेल में नहीं आया और तुम पाँच साल जिंदा बचे रहे। खैर तुम्हारी आँखों की बेचैनी अब तुम्हारे जीवन के साथ तुम्हारे साथ रहनी वाली है। ये सौगात तुम्हें उस दुनिया से मिली है जिसका तुम अभिन्न हिस्सा रहे हो या शायद अभी भी हो। ज्यादा कुछ नहीं बोलूँगा जेल से जाते हुए अपना सामान ले जाना और कोशिश करना जेल से बाहर जिंदा रहो और अब इस जेल में कभी न आओ। कहते हुए जेलर ने मीटिंग समाप्त की।
"जी सर कहते हुए रंजीत जेलर को अभिवादन कर उसके ऑफिस से बाहर आ गया।
रिहाई की प्रक्रिया पूरी होते-होते दोपहर हो गई और दोपहर बाद उसे उसकी रिहाई के लिखित आदेश मिले, उसका सामान उसे सौंप दिया गया।
उसने अपना सामान; जो कुछ ज्यादा नहीं था, दो जोड़ी कपडे और एक गर्म शूट। उसने जेल की ड्रेस उतारकर अपने खुद के कपडे पहन लिए और जेल से मिली उजरत को अपने पर्स में रखकर जेल के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गया।
पाँच साल पहले जिस दिन वो जेल के मुख्य द्वार से होकर जेल के अंदर आया था तो उसे बेचैनी के साथ ख़ुशी भी थी कि वो मूसा खान के शूटर्स की पहुँच से बाहर था। उसे जेल के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ते हुए एक बात का अहसास था कि जेल के गेट से बाहर मूसा के शूटर्स हो सकते है; जेल के गेट से बाहर मौत उसका इंतजार कर रही हो सकती है।
मुख्य द्वार के संतरी ने उसके रिहाई के कागजों को गौर से पढ़ा और अपनी कॉपी एक फाइल में रखकर द्वार रक्षक को जेल का मुख्य द्वार में बने छोटे से खिड़की जैसे द्वार को खोल देने का इशारा किया।
रंजीत उस छोटे से द्वार से जेल से बाहर निकल आया। जेल के बाहर पाँच फ़ीट ऊँची दीवारों का एक अहाता था जिसमें जेल में आए विजिटर्स और हवालाती कैदियों को कोर्ट में ले जाने वाले और वापिस जेल की हवालात में लेकर आने वाले पुलिस कर्मी मौजूद थे। चारों तरफ उदास चेहरों की भीड़ थी, विजिटर ज्यादातर अधेड़ उम्र के थके से लगने वाले स्त्री पुरुष थे, पुलिस वाले भागदौड़ में व्यस्त थे उनके चेहरे तमतमाए हुए थे।
रंजीत सावधानी से विजिटर्स और पुलिस वालो के बीच से निकलता हुआ जेल के अहाते में कुछ देर के लिए रुका और अपने चारों तरफ गौर से देखा । वो खुश था कि अभी तक किसी अनजान दिशा से आकर गोली उसे नहीं लगी थी, न ही कोई छूरा लेकर उसकी तरफ झपटा था और न ही कोई बंदूक लेकर उसके सामने आ खड़ा हुआ था। । रंजीत पुलिस वालो की और विजिटर्स की भीड़ से होता हुआ, किसी अदृश्य अंजान कातिल से आशंकित होता हुआ उस अहाते से बाहर आ गया । जेल के गेट से बाहर निकलते ही रंजीत ने चारों तरफ देखा उसे कोई संदिग्ध चेहरा नजर नहीं आया ।
अहाते से बाहर निकलते ही राष्ट्रीय राजमार्ग था जिस पर भारी वाहनों की लगातार आवाजाही हो रही थी । जेल मुख्य शहर से पाँच किलोमीटर दूर थी उसे मुख्य शहर जाने के लिए किसी टैक्सी या ऑटो की तलाश थी। कुछ ऑटो उसके सामने से निकले वो खाली थे लेकिन ऑटो चालक ने ऑटो रोकने की कोई जहमत न की।
ऑटो मिलने में होने वाली देर से उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मूसा खान अब एक साधन सम्पन्न गैंग लार्ड था, कई जज उसके पेरोल पर थे। उसे शक था कि उसकी समय से पूर्व रिहाई का आदेश सार्वजनिक हो चुका होगा और मूसा खान के हत्यारे उसकी तलाश में जख़ीराबाद जेल की तरफ आ रहे होंगे या आ चुके होंगे।
तभी उसका ध्यान मुख्य मार्ग के दूसरी और खड़ी एक कार पर पड़ी जिसकी खिड़कियां खुली हुई थी। तभी उस कार का द्वार खुला और इकहरे बदन का लंबा सा एक व्यक्ति बाहर आया उसके हाथ में एक स्नाइपर रायफल थी। उस रायफल वाले व्यक्ति ने कार से बाहर निकलते है रंजीत को अपनी रायफल के निशाने पर ले लिया।
