पिघला घी
पिघला घी
"दादी ! जमाना बदल गया है। आजकल की लड़कियों को घर का काम सीखने की न ही आदत है, न ही जरूरत। वैसे भी सब बना बनाया मिलता है। पैसा फेंको तमाशा देखो।"
"लेकिन बिटिया रानी ! काम के लिए लड़के-लड़की की तो बात ही नहीं है। काम तो सबको आना चाहिए। खुदा न खास्ता कहीं विषम परिस्थिति आये तो किसी के भरोसे न रहना पड़े।" दादी मंदिर में ज्योत लगाने को दीये में घी डाल रही थीं।
"सिर पर पड़ेगी तो सब सीख लेते हैं दादी। हम भी सीख लेंगे।टेक अ चिल पिल दादी। ये घी क्यों पिघला रही हो ?"
"ध्यान से देख ज़रा, घी पिघला है तो लौ थोड़ी सी आग देने भर से जल गई। उसे ऊर्जा कम लगानी पड़ी और माचिस भी बच गई।"
"तो !"
"जीवन रूपी लौ भी निर्विघ्न तभी चल पाएगी जब तजुर्बा रूपी पिघला घी हो। परिस्थिति फिर माचिस की तिल्ली जैसी कम सुविधाजनक भी हो तो अड़चन नहीं आएगी। जीवन में काम का अनुभव, बचत की आदत तजुर्बा बनाती है। यह सब सही समय पर काम आता है और हमें शांत चित्त रहने में मदद करता है। बाकी आई एम टू कूल एंड एक्सपीरिएन्सड टू नीड अ चिल पिल गर्ल।"
