फ़र्क़ - प्यार या पसंद
फ़र्क़ - प्यार या पसंद
पहला प्यार उस इत्र के समान होता है जिसकी सुगंध कभी खत्म ही ना हो। सालों-साल हमारे सीने मे समाई रहती है। कुछ ऐसा ही था मेरा पहला प्यार।
बात उन दिनों की है जब हम दसवीं कक्षा मे थे। एक साथी मित्र के कारण हमारी जान पहचान हुई। वो बड़े शांत स्वभाव का था, पढा़ई के अलावा उसे कोई और लेखन भाता न था, एकदम सौम्य और तरो-ताज़ा किसी खिली हुई कली की तरह था वो। और मुझे, उसे देखे बिना रास आता न था, जिस दिन वो ना आए तो ऐसा लगता था मानो उस दिन सूर्य उदय हुआ ही ना हो।
समय बीत गया और बोर्ड एग्जाम के दिन नजदीक आ गये, लेकिन मेरी चाह धरी की धरी रह गई। एग्जाम सर पर थे लेकिन मन उसी पर था।
" अब और नहीं आज मैं कह डालूंगी।" मैंने निश्चय करते हुए जोर से बोला
"हां...हां, कह दो, कह दो।"
साथ में दोस्तों की आवाज पीछे से आई।
दोस्तों का साथ था अब किस बात का भय, योजना बनाई और तैयार हो गये।
वह दिन, उस दिन सूरज की चमक तेज थी और शीत लहर अपना कहर बरसा रही थी। लेकिन मेरे हाथ पैर तो पहले से ही ठंडे थे और धड़कन तो तूफान की हवाओं की तरह बढ़ते जा रही थी। मॉक टेस्ट खत्म हो चुका था। सभी लोग क्लासरूम से जा चुके थे लेकिन वह खड़ा था रूम की अंतिम वाली खिड़की से सट के। हाथों को बार-बार रगड़ रहा था, और दाई कलाई मे बंधी घड़ी को बार-बार देखे जा रहा था। शायद किसी का इंतजार कर रहा था। मैं भी रूम के पहले दरवाजे से सट कर खड़ी हो गई और उसे निहारने लगी। शायद उसे मेरा आना आभास ना हुआ। लेकिन दोस्तों को यह मंजूर ना था, इंतजार उन्हें भाता कहा था। धकेल दिया पीछे-से मुझे और जा के गीर परी में उसके सामने। मन तो किया ऐसे दोस्तों का मुंह नोच लू।
"खैर छोड़ो जिस काम को करने आए वह तो करते हैं "
मैंने मन में सोचा और उठने का प्रयास करने लगी, लेकिन उसने आगे से आ कर मेरी मदद की और मुझे उठाया।
"तुम ठीक तो हो ?"
"हां"
"तुम अभी तक घर नहीं गई ?"
"जा रही थी"
"तो साथ में चलें "
" नहीं…. हां….. उमम….."
मैंने एक लंबी सांस ली और खुद को शांत किया। मैंने उसकी ओर देखा उसके होंठ ठंड के मारे सूख चुके थे, गालों में हल्की लालिमा छा गई थी। और आंखें सागर के मोतियों के समान मुझे निहारे जा रहे थे।एकाएक मैंने कहा
" मुझे कुछ कहना है "
"कहो " उसने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा
"आई लाइक यू !"
मैंने एक सांस में कह डाला।
उसकी आंखों में हलचल दिखी और फिर शांत हो गई किसी ठहरे हुए सागर की तरह।
उसने अपने हल्के गुलाबी होंठ हिलाए और कहां "थैंक यू"
और वह दरवाजे की ओर चल पड़ा।दरवाजे तक पहुंचते-पहुंचते एकाएक वह मुरा और कहां-
"देयर इज अ डिफरेंस बिटवीन लाईक एंड लव, इसे समझ जाना "।
और वो चला गया, एक जवाब और कई सवाल के साथ छोड़कर।
आज वह मेरे साथ नहीं है। लेकिन उसकी वह बात आज भी मुझे उसकी याद दिलाती है, और यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि शायद उस दिन यह फ़र्क़ मुझे पता होता तो मैं उससे कह पाती-
"आई लव यू "