दहेज़ और साइड इफेक्ट्स
दहेज़ और साइड इफेक्ट्स
संजना खुद को शीशे में देख रही थी कि नीचे से श्याम की आवाज आई "अरे कहां रह गई? देर हो रही है।"
" हा! हा। आ रही हूं" कहते हुए वो शीशे में देख खुद को आखिरी बार सुनिश्चित करती है। पास में टेबल पर पड़े हैंडबैग को उठती है और सीढ़ियों से नीचे उतरने लगती है। वहां श्याम को बाइक पर सवार देख बाबूजी पूछते है "अरे! कहां जा रहे हो ?"
" संजना के कॉलेज बाबा आज उस……"
उसे बीच में ही टोकते है "अच्छा ये
कॉलेज-वाॅलेज बाद में जाना पहले मुझे
सागर जी के यहां छोड़ दे आज उनके यहां सत्संग है।"
"पर बाबा उनका घर तो तीसरी गली में ही है आप पैदल भी जा सकते है।"
"हां जा तो सकता हूं लेकिन मुझे देरी हो रही है और पास में ही तो है मुझे छोड़ देना फिर जहां जाना है वहा चले जाना।"
"बाबा मै छोड़ तो देता लेकिन आज संजना का सेमिनार है और वो पहले से ही लेट है।"
" उस चारमीनार में लेट से ही पहुंचे तो क्या होगा ?" बाबूजी डपटते
बाबूजी की तेज आवाज सुनकर मां भी पूजा की थाली लिये ही बरामदे में आ गई। संजना भी नीचे आ चुकी थी। उससे रहा नहीं गया "चारमीनार नहीं बाबूजी सेमिनार, जरूरी है जाना!"
"जरूरी तो मुझे भी है जाना शर्मा जी के
यहां ।!" बाबूजी तेज आवाज में डपटे, उन्हें कोई उल्टा जवाब दे ये बर्दाश्त नहीं।
मन ही मन संजना को सब समझ आ रहा था पहले सागर जी और अब शर्मा जी। वहीं श्याम मां को देखे जा रहा था, बाबूजी की हरकतों से और संजना के स्वभाव से भली-भांति परिचित था। लेकिन मां भी क्या करती वो बस चुप चाप देखे जा रही थी। तब तक बाबूजी बरामदे से नीचे उतर कर बाइक पर बैठने ही जा रहे थे की संजना आगे बढ़ के बाइक में से चाबी निकाल लेती है ।
"ये कैसी हरकत है??" बाबूजी बरसे "देख रे समझा ले अपनी बहुरिया को।" और बाबूजी बाइक पर से उतर जाते है।
"देखो!..." श्याम संजना की ओर देख कर बोल ही रहा होता है को संजना बीच में ही बोलती है
"अरे! ये क्या बोलेंगे, बोलेंगे तो हम।"
"देख तो रे कैसे भाव खा रही है?।" बाबूजी श्याम की तरफ बाइक की दूसरी ओर से गरजते है। अब बाबूजी बाइक के एक तरफ, संजना बाइक के दूसरी तरफ और श्याम बस यही माना रहा था की ये धरती फट जाए और वो उसमे समा जाए । अब उससे और पीसा नहीं जा रहा था।
"भाव खा नहीं रहे भाव दिए है।" संजना की आवाज़ में कटाक्ष की गर्मी थी।
"देख कैसे बोल रही है।"
अब और नहीं सहा जाता श्याम बाइक को स्टैंड पर लगा कर नीचे उतरता है और बाबूजी की ओर देख कर बोलता है
"ठीक ही तो बोल रही है । भाव ही तो दिया है उसने इस बाइक का, और आपके बेटे यानी का।"
वो खुद की तरफ उंगली दिखाते हुए आगे बोलता है,
"चंद पैसे, कुर्सी, टेबल, पलंग, फ्रीज, वॉशिंग मशीन, बाइक और ना जाने घर के कितने सामान के बदले उसने मुझे खरीदा है।"
वो आगे बोलता है,
"आप ने तो शादी के बाज़ार में मुझे नीलम कर दिया था। बोली तो संजना के बाबूजी ने लगाई थी, सो मै और ये गाड़ी अब संजना के हुए ना।"
संजना श्याम अब जा चुके थे लेकिन बाबूजी वहीं पर थे आंखे नीची और सर झुकाए खड़े थे। तभी किसी के घर से विज्ञापन की आवाज़ सुनाई दे रही थी - दहेज़ लेना और दहेज़ देना पाप है ।
मां भी घंटी बजाते हुए दहेज़ लेना पाप है गुनगुनाते हुए अंदर जा रही थी।