फर्ज
फर्ज
आने दो इस बार रवि को छुट्टियों में गाँव, उससे पूछूँगी की आखिर तुझे अपने बूढ़े माँ बाप की भी कुछ चिंता है। या फिर तू शहर में जा बसे अपने परिवार में इतना रम गया है, कि हमें भूल ही चुका है। खेत में थक कर निढाल पड़े अपने बूढ़े पति को देख पार्वती बड़बड़ाई। पत्नी की बात सुन उसका पति उससे बोला, नहीं नहीं पार्वती अभी अभी तो बेटे ने एक बड़े शहर में खुद के पांव जमाए है। मुझे तो अब भी इसी बात की चिंता रहती है कि भला वो इतने महंगे शहर में अपनी आमदनी में गुजारा कैसे करता होगा। और ऐसी स्थिति में हमारा उससे कुछ मांगना उसकी मुश्किलें ओर बढ़ा सकता है। इसलिये पार्वती मुझे वचन दो तुम रवि से हमारी तकलीफों के बारे में कभी कुछ नहीं कहोगी। क्या तुम वो दिन भूल गई जब हमने अपना जीवन अभाव में गुजार कर भी उसे अच्छी शिक्षा दिलवाई थी। इसलिये हमारा अब यूँ हिम्मत हारना ठीक नहीं। अरे हम उसके माता पिता है इसलिये हमारा ये फर्ज है, कि हम उसे आगे बढ़ने में उसका निरंतर सहयोग करे। और फिर शहर में नाम कमाकर उसने सारे गांव में हमारा जो मान बढ़ाया है, हमारे लिये तो बस वही बहुत है। हमें उससे अब ओर कुछ नहीं चाहिये। अपने पति की बात सुन पार्वती ने अपनी गीली पलकें पोंछ ली। और अब उसके चेहरे पर भी अब संतुष्टि के भाव झलक उठे।