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V. Aaradhyaa

Tragedy Classics Inspirational

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V. Aaradhyaa

Tragedy Classics Inspirational

फोटोवाली माँ

फोटोवाली माँ

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सच ज़िन्दगी बड़ी अजब गज़ब है ना? शानवी ने सोनिया को एलबम में कुछ पुरानी तस्वीर दिखाते हुए कहा तो दोनों बहनें एक फोटो को बड़े गौर से देखने लगी। जिसमें सोनिया के बाल बड़े ही छोटे थे। और कई तस्वीरों में तो साड़ी पहनकर मुँह लटकाकर फोटो खींचवाया था सोनिया ने।

तभी अंशु अपनी माँ और मासी के लिए चाय बना लाई। उसकी नज़र भी उन तस्वीरों पर जम गई जिसमें उसकी माँ अभी से बिल्कुल अलग दिख रही थी। ज़रा गौर से एक फोटो को देखते हुए अंशु बोली

"मम्मी, आप तो बिल्कुल मेरे जैसी लग रही हैं "।

"ना ना बेटा, मम्मी तुम्हारे जैसी नहीँ बल्कि तु मम्मी जैसी दीखती है।"

शानवी ने प्यार से अंशु के गाल थपथपाते हुए कहा तो अंशु भी वहीँ कालीन पर पालथी मारकर बैठ गई। अभी इसी साल कॉलेज गई थी अंशु, और उसके लिए उसकी मम्मी एक ममतामयी माँ थी। पर इन तस्वीरों में अपनी माँ को इतने आधुनिक कपड़ों और हेयरस्टाइल में देखकर जहाँ वो आश्चर्यचकित थी वहीँ उसे ख़ुशी हो रही थी और उत्सुकता भी।

एक बात ने अंशु की उत्सुकता बहुत बढ़ा दी थी। वो ये कि साड़ी वाले फोटो में माँ उदास और चिड़चिड़ी क्यूँ दिखा रही है। उसने ज़ब पूछा तो माँ तो मुस्कुराती रही पर जवाब मासी ने दिया।

"वो वाली फोटो तेरी मम्मी ज़ब ग्रेजुएट हुई ही थी कि तेरे नाना नानी मतलब हमारे पापा माँ ने शादी के लिए लड़केवालों को भेजने के लिए साड़ी पहनकर फोटो खिंचवाने कहा था इसलिए तेरी मम्मी का मुँह लटका हुआ है। और वो जानबूझकर बाल इतने छोटे रखती कि लड़केवाले फोटो देखकर इंकार कर दें।"

शानवी मौसी हँसते हुए बोली तो अंशु को बड़ा मज़ा

"आया।।। ओहो मम्मी ऐसी थी। अब तो बड़ी सीधी सादी है।" अंशु की तो हँसी ही नहीँ रुक रही थी।

"चुप कर अंशु , तभी लगभग बीस इक्कीस तक लड़कियों की शादी हो जाती थी लेकिन मैं तब आगे पढ़कर नौकरी करना चाहती थी पर माँ पापा मेरी शादी करवाना चाहते थे इसलिए मैं शादी के नाम पर मुँह लटकाकर बैठ जाती थी।"

सोनिया ने बेटी को मीठी झिड़की लगाई। इससे अपनी माँ के बारे में और जानने की अंशु की रूचि बढ़ गई।

"बताओ ना और बताओ ना, फिर मम्मी शादी के लिए कैसे मानी।"

अंशु ने ज़िद की तो शानवी ने बताना शुरु किया,

"भैया के बाद हम दोनों बहनें थी। सौरभ भैया और सोनिया दीदी में पाँच साल का अंतर था पर मैं और दीदी सिर्फ दो साल के छोटे बड़े हैं। इसलिए सहेलियों की तरह ज़्यादा रहते आए हैं। दीदी को हमेशा पढ़लिखकर आगे बढ़ने की धुन थी और मुझे सजने संवरने का बड़ा शौक था।"

"वो तो अब भी है मासी।"

बोलते हुए अंशु अपनी माँ के गोद में अधलेटी होकर मासी की बात गौर से सुनने लगी।

"मुझे बीच में मत रोक नहीं तो नहीँ सुनाती जाओ "

मासी ने थोड़ा लाड़ दिखाया तो अंशु ने एकदम प्रॉमिस किया कि अब वो बीच में नहीँ बोलेगी।

शानवी ने आगे कहना शुरु किया।

"ग्रेजुएट होते ही माँ दीदी की शादी करवाने की ज़िद करने लगी। आए दिन फोटो खिचवाने का फरमान जारी होता जिससे दीदी चिढ़ जाती। फिर शुरू हुआ लड़की दिखाने का चक्कर। जो दीदी को बिल्कुल पसंद नहीँ आता था। उन्हीं दिनों तेरी मम्मी ने जानबूझकर बाल बहुत छोटे करवा लिए ताकि लड़केवाले उसे नापसंद कर दें। और वो फोटो खिचवाने में भी खराब सा मुँह बनाती ताकि लड़केवाले इनकार कर दें।ऐसे ही कई रिश्तों को ठुकराती रही फिर तेरे पापा का रिश्ता आया। यहाँ भी हमारा प्रोग्राम एकदम फिट था कि लड़केवालों के सामने दीदी मुँह लटकाकर बैठेंगी।"

अब अंशु को बहुत मज़ा आ रहा था। वो उठकर बैठ गई और गाल पर हाथ डालकर ध्यान से सुनने लगी तो माँ बड़े ही प्यार से उसके सर पर हाथ फेरने लगी।

"यहाँ भी दीदी ने ना मेकअप किया ना कोई साड़ी वाड़ी पहनी बस जैसी सादगी से घर में रहती थी वैसे ही जाकर बैठ गईं। अचानक दीदी की होनेवाली सास यानि तेरी दादी ने कहा था,

"लड़की तो फोटो से ज़्यादा खूबसूरत है। इतनी सुंदर और इतनी मासूम। फोटो में तो बड़ी गुस्सेवाली लग रही थी।"

इस बात पर एक जोर का ठहाका लगा। वैसे अमनजी के पापा और हमारे पापा दोस्त थे। एक तरह से रिश्ता तय था। पर दीदी के सपने में अभी शादी के लिए कोई ज़गह ही नहीँ थी।और अमनजी सोचकर आए थे कि चाहे ये नकचढ़ी लड़की कितना भी गुस्सा दिखाए वो बात करेंगे ज़रूर।

बड़ों की मंज़ूरी और बातचीत के बाद दोनों को ज़ब अकेले में बात करने को दिया गया तो दीदी ने साफ साफ कह दिया कि वो आगे पढ़कर नौकरी करना चाहती है। और अमनजी आप इस रिश्ते के लिए मना कर दो। मैं नहीं मना कर सकती। तब अमनजी ने मुस्कुराते हुए पूछा,

"बस इतना ही या कुछ और? आप आगे की पढ़ाई शादी के बाद भी तो कर सकती हो।"

"पर मैं ये साड़ी वाड़ी नहीँ पहनूँगी और मुझे घर का काम ना तो आता है और ना ही करना पसंद है।"कुछ भी कहकर बस किसी तरह शादी से पीछा छुड़ाना चाहती थी।

दीदी जैसे अपनी नाराज़गी उड़ेले जा रही थी और अमनजी उनकी हर बात पर मुस्कुराकर हामी भरते जा रहे थे।

ज़ब उनकी मीटिंग खत्म होने को थी तो अमनजी का आखिरी सवाल था,

"सोनिया जी ! आपकी हर शर्त मुझे मंज़ूर है।आप शादी के बाद पढ़ाई भी कर लीजियेगा और फिर नौकरी भी। और कोई शर्त हो तो बताएं।आप मुझे बहुत पसंद आई। बातों में एक भोलापन तो है पर सच्चाई और दृढ़ता के साथ अपनी बात रखने की हिम्मत है आपमें। मैं तो आपसे ही शादी करूँगा।हाँ अगर आपको मैं पसंद नहीँ तो मैं जाकर रिश्ते के लिए मना कर देता हूँ।"

"मैंने ये तो नहीँ कहा कि मुझे आप पसंद नहीँ "

सोनिया हड़बड़ाकर बोल पड़ी तो दोनों इस बात पर हँस पड़े। उनकी हँसी से दोनों परिवार के लोगों को समझ में आ गया कि रिश्ता पक्का हो गया।

अब सोनिया ने कहना शुरू किया,

"और फिर तेरे पापा की और मेरी शादी हो गई। मैंने शादी के बाद अपनी आगे की पढ़ाई की। एम। ए। किया। फिर एम। फील। और फिर बी। एड। फिर बीच में तेरा जन्म हुआ पर मेरी पढ़ाई चलती रही। उसके बाद नौकरी की। इन सबमें तेरे पापा और दादा दादी का भी बहुत सहयोग रहा।"

बोलते बोलते सोनिया भावुक हो गई।

"ओहो तो ये है आप दोनों की लव स्टोरी। शादी के बाद वाली "

अंशु ने ताली बजाकर कहा।

उसे आज अपने मम्मी पापा के रिश्ते की गहराई और अंडरस्टैंडिंग का पता चला। उसके लिए और इस जेनरेशन के लिए ये प्यार समझना थोड़ा मुश्किल तो था पर अपनी आँखों के सामने वो अपने मम्मी और पापा का इतना प्यारा रिश्ता देखकर बड़ी हुई थी और आज इनके रिश्ते का इतना अजब गजब इतिहास सुनकर उसे तो और भी मज़ा आ गया था।

सोनिया अब अपनी शादी की फोटो निकालकर देखने लगी। अमन ने हमेशा एक अच्छे जीवनसाथी का फर्ज़ निभाया था।दोनों ने साथ रहकर ज़िन्दगी के सफ़र में एक दूसरे के साथ काफ़ी अच्छा सफ़र तय किया था।

सचजीवनसाथी अगर समझदार हो और दोनों में आपसी समझ और प्रेम हो तो प्यार शादी के बाद और पूरी उम्र क़ायम रह सकता है।

शाम को ज़ब अमनजी घर आए तो अंशु चाय बना लाई फिर ज़ब वो होकर बैठे तो दौड़कर माँ को बुला लाई और अपने मोबाइल से फोटो लेने लगी। इन फोटो में उसकी मम्मी हर जगह मुस्कुरा रही थी। और थोड़ी देर में अंशु पापा को भी मम्मी की सारी तस्वीरें दिखाकर हँस रही थी।

वैसे ये ज़िन्दगी बड़ी अजब गज़ब सी है। कभी कुछ अलग सा घट जाता है। कभी कोई अपने सा मिल जाता है और पूरी ज़िन्दगी उसके साथ से महक उठती है जैसे सोनिया और अमन की गृहस्थी।

हर किसीको अपने हिस्से की खुशियाँ हासिल करने के लिए एक साथ और अपनेपन की ज़रूरत होती है। तभी ज़िन्दगी के सफऱ का पूरा लुत्फ़ उठाया जा सकता है। और अगर जीवनसाथी के साथ परस्पर प्रेम और आपसी समझ हो तो सपने हकीकत में ज़रूर बदलते हैं।


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