फोकस

फोकस

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       कभी वो वक्त था जब तुम्हारे इंतज़ार में मेरे भीतर खुशी की जाने कितनी लहरें हलचल मचा देती थी , वो इंतज़ार ताजगी भरा अहसास कराता था मगर आज खुशी के साथ-साथ खलिश भी है जिसका कोई न तोड़ है न जोड़ और न ही कोई पर्याय ! आज के इंतजार में कई शंकाएं हैं तो साथ ही एक अनजाना डर भी है , पहले का इंतजार केवल खुशी देता था , तुम्हारी खुमारी दीवाना बना देती थी साथ ही भरोसा भी कि तुम जरूर ही आओगे ! लेकिन आज इंतजार के साथ बार-बार एक बुरा ख्याल भी आता है - अगर तुम घर नहीं लौटे तोदुश्मन ने तुम्हें छोड़ा ही नहीं तो ? सच कहूं इस ख्याल से ही दहशत घेर लेती है मुझेकैसे जीऊंगी तुम्हारे बिना और कैसे रहूंगी तुमसे बिछड़ कर बस , इस कल्पना मात्र से ही कलेजा कांप उठता है ! क्या तुम्हें कुछ भी नहीं लगता ?

      लगता क्यूं नहीं बिल्कुल लगता है , बहुत लगता है पर उम्मीद ही बस क्या बताऊं लड़खड़ा जाती है , मगर ऐसे में भी तुम याद आ रही हो उस वक्त की जब तुम सुहागसेज पर बैठी , शर्म से सिकुड़ी हुई मेरा इंतजार कर रही थी और मैं दोस्तों से घिरा तुम्हारे पास आने के लिए बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था ! लेकिन कमबख्त दोस्त भी ना , पता नहीं कौनसे जन्म का बदला चुका रहे थे जो छोड़ने का नाम ही नहीं रहे थे और मैं बहुत ही उतावला हो रहा था , नालायकों से चिढ़ भी लग रही थी मगर वे तो चिकने घड़े हो रहे थे आखिरकार अम्मा ने उनसे निजात दिलाई । वैसे तो वे मेरे जिगरी यार थे आज उनकी भी बहुत याद आ रही है । सच में वो वक्त भी क्या वक्त था ! 

     हां , यह तो है उस वक्त की भला क्या मिसाल ! 

     पर जाना , वक्त तो यह भी लाजवाब है , बेमिसाल है अपने देश के काम आया हूं यह खुशनसीबी है मेरी !

      मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूं और तुम ऐसा कह रहे हो , नहीं , ऐसा मत कहो ।

      यूं ही कहने के लिए नहीं कह रहा हूं पर तुम्हारी उम्मीद को भी नाउम्मीदी में कैसे बदल दूं ? समझ में भी नहीं आता कि कहूं भी तो क्या तुमसे ! हमारी शादी को एक महीना ही तो हुआ था लेकिन सरजीकल स्ट्राइक के कारण ही तो तुम्हें छोड़कर आना पड़ा यह तो तुम भी अच्छी तरह से जानती हो , तुम बिल्कुल नहीं चाहती थी कि मैं जाऊं ,,मन तो मेरा भी तुम्हें छोड़ कर जाने को नहीं कर रहा था लेकिन ड्यूटी इज़ ड्यूटी , आखिर देश के मान-सम्मान,स्वाभिमान और उसकी मुहब्बत का सवाल था भला इन सबके के आगे किसी भी मुहब्बत और किसी भी मान-सम्मान , स्वाभिमान की क्या बिसात ? जानेमन कोई बिसात नहीं और ना ही किसी और जज्बे की ही ! ये सब जानते-समझते हुए भी मन बार-बार तेरी ही तरफ भागता था फिर तुम्हीं जैसे तसल्ली देती और हिम्मत बंधाते हुए कहती - ऊंहूंऊऊ ,,,, मुझपर नहीं बल्कि सामने दुश्मन पर फोकस करो !

     हां ,तुमने ऐसा फोकस किया कि हमारी जिंदगी के सारे फोकस डिस्फोकस हो गये तुम लापता हो गये मगर मेरा फोकस जारी रहा तो आज भी जारी है कि तुम आओगे ! पहले शंकाएं भी घेरती थी कि पता नहीं तुम , ? पता है तुम्हें अरे , लोग तो यहां तक भी कहते हैं कि ये सब चुनावी फंडे हैं , हर कोई अपनी रोटी सेंकने में लगा है जो जितना बड़ा , उसकी रोटी भी उतनी ही बड़ी ! सारी रोटियां देश के नाम पर और देश के खाते में , लेकिन देश के लिए कितना ? गठबंधन तो देश के नाम पर , रिश्तेदारी तो देश के नाम पर , भाईचारा,,,,, तो देश के नाम पर यहां तक कि सबकुछ देश के नाम पर सिर्फ नाम पर ही तो किया मगर देश के लिए क्या ? क्या,, फिर क्या? कुछ नहींफौजी है ना देश के लिए ! आज की राजनीति इतनी सक्षम है कि फौज पर भी अपना अधिपत्य जमाने लगी है बल्कि यूं कहिये कि घुसपैठ करने लगी है ! राज और राजनीति का चोली-दामन का साथ है अब सवाल यह उठता है कि कौन क्या है ? हाल ये है कि चोली छोटी होती जा रही है दामन उसे कसता जा रहा है चाणक्य ने शिखा क्या खोली कि नीति फैलती गई राज को अपने वश में करती गई ! आज के दौर में क्या सही क्या ग़लत? नहीं पता मगर आज आवश्यकता है एक ऐसी नीति की जो सही अर्थों में देश को विभिन्न आयामों तक ले जा सके ! कहने को लोकतंत्र है लेकिन ,, ? ’’फूट डालो राज्य करो ‘’ वाली नीति प्रचार के नाम पर खूब चल रही हैबस वही तो अपनी रोटी मज़े से सेकी जा रही है और दूसरी तरफ एक दुल्हन बड़ी शिद्दत से , बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रही है अपने दूल्हे कामगर दूल्हा ,, ? ज़िन्दगी के हर मोड़ पर हर दुल्हन इंतजार कर रही है अपने दूल्हे का और हर दूल्हा देश के लिए कुर्बान होने को तत्पर है अपने पूरे फोकस के साथ ! सबसे अहम मुद्दे की बात यह भी है कि हर राजनेता राजनीति का खेल खेल रहा है अपने पूरे फोकस के साथ !

                      


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