पहली सीढ़ी जब हमने साथ में चलना शुरू किया
पहली सीढ़ी जब हमने साथ में चलना शुरू किया
शुरुआत तो हो चुकी थी हमदोनो के रिश्ते की ।बस कुछ पल के लिए हमलोग बात करते थे जो कि समय लगभग मालूम हो गए थे ।सुबह से उठ कर शाम तक एक ही जीवन शैली चल रही थी अपनी , सुरूवती बात तो बहुत धीरे रही इतनी धीरे जिसकी आप कल्पना नही कर सकते आज के इस आधुनिक युग में।
जैसे सुबह में बात हुई , बात होते होते वो कहीं चले गए मेरे लिए तो बहुत अजनबी थे फिर मैं खुद को कैसे संभालता अगली बातचीत तक के लिए ये भी एक कश्मकश बात थी।
लेकिन कुछ घंटों के अंतराल के बाद फिर वो समय वापस आता था जब मुझे अजनबी इंसान को समझने का मौका मिलता था , अफसोस की बात ये थी समय कुछ देर का होता हैं मन की भावनाएं बाहर आने से पहले रोक लिए जाते थे क्युकी उसको समझने के लिए वो सामने होते नही थे।विचलित होने की संभावना बहुत रहती थी लेकिन मन कही न कही से उनके आसपास जा बसा था । हर किसी के साथ आप खुद को नही देख सकते वजह बहुत सारे होते हैं अगर आप वास्त्विक रिश्ते आगे बढ़ाना चाहते हों , उनके साथ भी मेरे अजनबी रिश्ते कुछ मजबूत बन गए थे।रात्रि होते सोना फिर अगले सुबह से एक जैसे अब कार्य जो पिछले कुछ दिनों से चलते आ रहे थें।
फिर मिलते हैं अगले कहानी में ।