लम्हों को सजाने में दोनो लगे थे
लम्हों को सजाने में दोनो लगे थे
लम्हे धीरे धीरे बीतते जा रहे थे, दोनो करीब थे उसके बावजूद कुछ कहने को तैयार नहीं थे।
एक तरह से सब कुछ बोल दिए हो उसके बाद वाली जीवन जीने की कोशिश कर रहे थें दोनों।
अभी तक किसी ने इजहार नही किया था एक दुसरे के भावनाओ को, इंतजार में थे शायद कोई पहले कह दे लेकिन कहते कैसे थोड़ी शर्मीले स्वभाव के जो निकले दोनों।
फिर भी बातो बातो मे एहसास हो जाती थी कि कितना अपनापन था दोनों में।
जैसे एक दुसरे के लिए बने हुए हो , इतने सारे बातों पर सहमति बन जाता था।
वो पल मै शब्दो मे नहीं लिख सकता कितना सुकून मिलता था जब वो पूरे तरह से मुझे समझ जाते थे।
मैं उनको हर बार अपनाना चाहूंगा उनके तरह कोई नहीं।
एक चांद हैं हमारे।