बातचीत होते रही, न कोई उम्मीद थी न कोई ठिकाना
बातचीत होते रही, न कोई उम्मीद थी न कोई ठिकाना
बात चीत शुरू थी एक समय सीमा के साथ कब से कब तक रहना हैं क्योंकि उनके पास समय नहीं था और हो सकता किसी अजनबी को बहुत झेलना नहीं चाहते हो।
कभी कभी लंबे अंतराल पर बातचीत होती थी, अंतराल लंबा होता था लेकिन मैं उसको कम करने का प्रयास करता था। हर रोज जो समय निर्धारित था उस समय मैं उनकी बातचीत दुबारा पढ़ता था फिर अपने कामों में लग जाता था। इससे दो फायदे होते थे कभी कभी थोड़े देर के लिए उनका आना हुआ तो बातचीत हो जाती थी , दूसरी मुझे कभी बोझ नहीं लगे मेरा रिश्ता।
जुड़ने की कोई उम्मीद नहीं थी, वो भी बस समझने की कोशिश कर रहे थे और मैं तो बस उनका साथ दे रहा था।
बहुत खूबसूरत पल होता था जब साथ होते, बाते नहीं होती थी लेकिन जैसे शुरू हुई रुकने का नाम नहीं लेती थी। सुबह से शाम तक जो बातचीत होती थी उसकी दुबारा पढ़ने में समय बहुत लग जाता था।
बहुत कम ऐसे रिश्ते बनते हैं जिसमें इंसान बिना कुछ बोले सब कुछ महसूस कर रहा हो।
हम दोनों बहुत कुछ एक जैसे सोचते थे वो कुछ नहीं बोलते मैं भी चुप रहता लेकिन महसूस दोनों करते थे।
ऐसी बात थी तभी दोनों एक साथ एक समय एक जगह आ जाते बातचीत करने।
फिर शुरू हो जाती अपनी कहानी धीरे धीरे समय बीतने लगा दोनों को लगता नहीं था हमारे बीच कुछ नहीं हैं। बिना बोले कुछ इतना करीब आ चुके थे जो सब कुछ एक दूसरे का समझने लगे थे।