पहली पत्नी का दूसरा पति
पहली पत्नी का दूसरा पति
आज काव्या की शादी थी, काव्या के मामा राजू ने अपनी समर्थ के हिसाब से अच्छा बंदोबस्त किया था। पर लड़के वालों के आगे तो ये कुछ भी नहीं था।
बहुत ही ऊँचे खानदान में रिश्ता हुआ था काव्या का। इतने बड़े घर में रिश्ता करने का तो राजू सोच भी नहीं सकता था। काव्या के माता पिता का एक एक्सीडेंट में निधन हो गया था। उस के बाद राजू ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया है।
एक दिन कुछ ऐसा संजोग बना की सर्वगुण संपन्न काव्या को मंदिर में भजन गाता देख पास के ही गाँव के प्रधान की माता जी को अपने पोते रणवीर के लिये पसन्द आ गई। रणवीर की पहले भी एक शादी हो चुकी है। पर दो साल में ही उसकी बीवी एक बीमारी के चलते चल बसी।
वो अपनी बीवी के गम में खोया रहता था। इसलिए दादी उस की शादी करवा कर वापस उसकी जिन्दगी को खुशियों से भरना चाहती थी। काव्या को देख उनके मन में ये इच्छा आई क्योंकि बिन माँ बाप की बच्ची के कोई नखरे भी नहीं होंगे। तो ये आराम से उनके पोते को संभाल लेगी।
उन्होंने जब काव्या के मामा मामी से इस रिश्ते के बारे में पूछा तो उन्होंने तुरंत हाँ कर दी। एक बार भी काव्या से नहीं पूछा कि क्या उसे रणवीर की दूसरी पत्नी बनना पसन्द है??
जब काव्या को पता चला था तो उसने अपनी मामी से दबी जवान में मना करने की कोशिश की थी। पर उस की मामी ने तो उलटा उसे ही समझा दिया था........
"देखो बेटा इतने बड़े घर में रिश्ते से तुम्हारी जिंदगी संवर जायेगी। हम तो तेरी शादी ऐसे ही किसी छोटे मोटे परिवार में करते। पर रणवीर तो बहुत बड़के सरकारी अफसर है। और तो और तुम्हें गाँव में भी नहीं रहना पड़ेगा। बड़े शहर में जा के राज करेगी हमारी बिटिया।
सभी की मर्जी से चट मंगनी पट ब्याह हो गया। और आ गई काव्या अपनी ससुराल।
यहाँ पर भी उसका कोई भव्य स्वागत नहीं हुआ बस नामचार की रस्में निभाई गई थी। पर सब का प्यार बहुत मिल रहा था। दादी जी ने तो जैसे काव्या पर ममता की बरसात कर दी थी। और सासु माँ ने भी उसे खुले दिल से स्वीकारा था।
छोटी ननद चुहुलबाजी करती उसे रणवीर के कमरे तक छोड़ आई थी।
कमरा बेला, गुलाब की खुशबु से महक रहा था। रणवीर पहले से ही वहाँ मौजूद था। शर्माई सकुचाई सी काव्या आगे बड़ी ही थी, की पहली बार रणवीर भारी सी आवाज़ के साथ उस के सामने था..... जिसे पहली बार काव्या ने गौर से देखा था।
पाँच फुट आठ इंच लम्बा साँवला सा रंग अच्छी कद काठी वाले रणवीर की आँखें सुर्ख लाल हो रखी थी। देख कर लग रहा था जैसे बहुत रोये हो और इसलिये आवाज़ भी भारी हो गई थी।
वो सधे हुये कदमों से काव्या के पास आकर बोला...... "देखो काव्या मैंने ये शादी सिर्फ दादी की वजह से की है। मैं तो आज भी अपनी कुमुद(रणवीर की पहली पत्नी) से बहुत प्यार करता हूँ। उसकी जगह में किसी को नहीं दे सकता।
ये बोल रणवीर कमरे से बाहर निकल गया। काव्या तो कुछ समझ ही नहीं पा रही थी। अगर रणवीर को अपनी कुमुद से इतना ही प्यार था तो फिर उस की जिन्दगी क्यों बर्बाद कर दी। लड़खड़ाते कदमों से वो वही पलंग पर धम्म से बैठ गई। आँखों में जैसे दर्द का सैलाब उमड़ पड़ा हो। रोते रोते कब आँख लग गई उसे पता भी न चला।
सुबह उठ तैयार हो वो जब नीचे आई तो उस की दादी और सास से उस की सूजी आँखों ने जैसे सब बयां कर दिया। ममता भरा हाथ सर पर रख सासु माँ ने कहा.....
"परेशान न हो बेटा तुम्हें यहाँ किसी की जगह नहीं लेनी। अपनी जगह बनानी है। और अपनी जगह बनाने में समय तो लगता है न।
एक फीकी मुस्कान के साथ काव्या ने हाँ में सर हिला दिया।
चार पाँच दिन ऐसे ही बीत गये काव्या के कभी दादी संग बतियाती, कभी सास संग रसोई में काम कराती, तो कभी अपनी ननद संग चुहुलबाजी करती। पर रणवीर से एक बार भी बात नहीं की थी उसने।
रणवीर की छुट्टियाँ खत्म हो गई थी। वो वापिस जा रहा था। दादी जबरदस्ती काव्या को भी साथ भेज रही थी। रणवीर ने तो मना भी कर दिया था....
"अरे दादी ये क्या करेगी जा कर वहाँ। यहाँ तो आप सब हो, वहाँ तो मेरे पास भी समय नहीं होता।
दादी ने काव्या की भी कहाँ सुनी थी। उन्होंने काव्या को ये कह कर भेज ही दिया" की तू इस घर से नहीं रणवीर से ब्याही है। इसलिये तुझे उस के साथ जाना ही होगा।
जिससे इन पाँच दिनों में ठीक से बात भी नहीं हुई थी। उसके साथ एक छत के नीचे कैसे रहेगी। ये सोच कर ही काव्या के हाथ पैर फूल रहे थे। पर जाना तो था ही। सो चल दिये दो अंजान पंछी एक घोसले को संवारने।
शहर में रणवीर को सरकारी बंगला मिला हुआ था। जो बहुत ही सुन्दर सजाया गया था। एक एक चीज करीने से रखी थी। हॉल में कुमुद की बड़ी सी तस्वीर टंगी थी। तस्वीर में कुमुद बहुत सुन्दर दिख रही थी।
घर में आते ही रणवीर ने उसे समझा दिया...... "देखो काव्या इस घर को मेरी कुमुद ने बहुत प्यार से सजाया है। इसलिये जो जैसा है, वैसे ही रहने देना। कोई भी फेर बदल मत करना यहाँ।
हूँ....... बस सर ही हिला पाई थी काव्या।
नहा धो तैयार हो काव्या किचन में आ गई। और दोनों के खाने के लिये कुछ बनाया। और टेबल पर लगाया। पर रणवीर अपनी प्लेट उठा के बोला में अपना खाना बेडरूम में ही खाऊँगा। और तुम्हारे लिये गेस्टरूम खोल दिया है। आज से तुम वही रहोगी।
ऐसे ही एक छत के नीचे अजनबियों की तरह रह रहे थे दोनों। ऐसा लगता था की कुमुद न हो कर भी उन दोनों के बीच हर जगह मौजूद थी।
उस दिन रणवीर ने खुद से काव्या को बुला कर बोला था...
"आज शाम को तैयार हो जाना । हमें एक फ्रेंड की शादी में जाना है।
उस दिन काव्या में पहली बार अच्छे से तैयार होने की ललक जागी थी।
जिसे देख रणवीर कुछ देर तो बस देखता ही रह गया।
पीली जरी वाली साड़ी ,खुले लंबे बाल, माथे पर सिंदूर की लालिमा के साथ छोटी सी बिंदी, बड़ी बड़ी आँखों में काजल, सुर्ख होंठ, भर भर हाथ मैचिंग चूड़ी, और कान में झुमके। किसी अप्सरा सी लग रही थी काव्या।
"अच्छी लग रही हो। पहली बार काव्या के लिये कुछ बोला था रणवीर।
अभी काव्या ठीक से खुश भी नहीं हो पाई थी की अगले ही पल रणवीर फिर बोले.....
"अगर कुमुद तैयार होती तो वो लाल साड़ी पहन बालों का जुड़ा बनाती। और उस में लाल गुलाब भी लगाती।
अब काव्या को लग रहा था कि उसे शायद कुमुद की तरह ही तैयार होना चाहिये था। पर देर हो रही थी, तो उसे वैसे ही जाना पड़ा।
वहाँ उसकी सभी ने तारीफ की। पर उसे जैसे सब बेमानी लग रही थी।
यूँ ही दिन बीत रहे थे। जब वो अपना कुछ करती तो रणवीर को वो काम कुमुद की तरह चाहिये होता। और जब कुमुद की तरह करने की कोशिश करती तो डांट पड़ जाती।
उस दिन रणवीर का जन्मदिन था। दादी ने उसे दो दिन पहले ही फोन पर बता दिया था। इसलिये उसने आज फिर रणवीर का दिल जीतने की कोशिश की।
घर में ही पार्टी की तैयारी कर बिल्कुल वैसे ही तैयार हो गई जैसी कुमुद अपनी फोटो में थी। उसने भी आज जुड़े में लाल गुलाब लगाया था।
जैसे ही वैल बजी काव्या ने धड़कते दिल से दरवाजा खोला।
सामने काव्या को कुमुद की तरह तैयार देख रणवीर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।
और इतनी जोर से चिल्लाया की काव्या चौक कर अपने में सिमट गई।
"किसने कहा है तुम्हें कुमुद की तरह दिखने को। तुम क्यों हर बात में उस की नकल कर रही हो। तुम जो उस की जगह लेने की कोशिश कर रही हो वो तुम्हें कभी नहीं मिलेगी।
और गुस्से में अपना बैग वही पटक जलती आँखों से काव्या को घूरा।
काव्या के लिये अब ये बर्दाश्त के बाहर हो गया था। और इतने दिनों का दुःख आँसुओं के रूप में बहने लगा.. रोते हुये काव्या भी रणवीर पर बरस पड़ी
" रणवीर आखिर तुम चाहते क्या हो। जब में अपने तरीके से तैयार होती हूँ, तो तुम्हें कुमुद जैसा रूप चाहिये। और जब में उन की तरह तैयार हुई तो में उन की जगह लेने की कोशिश कर रही हूँ। मुझे यहाँ किसी की जगह नहीं चाहिये। बल्कि मुझे यहाँ अपना थोड़ा सा वजूद चाहिये।
क्या गलती है मेरी, अगर तुम्हें अपनी कुमुद की जगह किसी को नहीं देनी थी तो क्यों मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी। मना कर देते अपनी दादी को। घुटन होती है मुझे यहाँ। तुमने कभी सोचा है कि में तुम्हारी दूसरी पत्नी हूँ। पर तुम तो मेरे पहले पति हो। और अपने पति से थोड़ी सी खुशियों की उम्मीद करना क्या गलत है।
कहते हुये काव्या वही बेहोश हो गिर पड़ी, रणवीर ने उसे उठा कर पलंग पर लिटा पानी के छीटे मारे।
होश में आते ही काव्या अपनी साड़ी ठीक कर उठ कर जाने लगी। तभी रणवीर ने उसका हाथ पकड़ उसे पलंग पर बिठाते हुये, खुद उस के पैरो के पास बैठ गया और काव्या के हाथ अपने हाथों में ले कर बोला.......
मुझे माफ कर दो काव्या। मैं अपनी कुमुद से बहुत प्यार करता हूँ। और उस की जगह किसी को सोच भी नहीं सकता। पर कभी ये सोचा ही नहीं की इस सब में तुम्हारी क्या गलती। आखिर तुम्हें भी तो अपने जीवन में खुश रहने का अधिकार है। इसलिये अब मैं तुम्हें खुश रखने की पूरी कोशिश करूँगा। आज से मैं तुम्हें कुमुद की जगह नहीं बल्कि तुम्हें तुम्हारी तरह स्वीकार करता हूँ।,,
और रणवीर ने काव्या के बालों से लाल गुलाब निकाल कर उस के बालों को जुड़े से मुक्त कर दिया। आज काव्या को उसके पहले पति ने दूसरी पत्नी होने का दर्जा दे घर में उसकी अपनी जगह बना दी थी।

