Aman Alok

Romance

1.0  

Aman Alok

Romance

पहली मोहब्बत

पहली मोहब्बत

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आज मैं कुछ पल बैठ कर अपनी बीते हुए कल के बारे में सोच रहा था, तभी जिंदगी का एक सबसे सुनहरा पल मुझे याद आया, जो मैं आज लिखने वाला हूँ।

उस वक्त मैं क्या था?मुझे क्या करना था अपनी जिंदगी में? यह सब सवालों से मैं बेखबर था।मैं ज्यादा पढ़ने वाला लड़का था नहीं, यही वजह थी कि मैं कुछ ज्यादा ही बेखबर हो गया था अपनी जिंदगी के सपनों से।लेकिन पिताजी कि इच्छा थी कि मैं आगे कि पढ़ाई करूँ और अपनी जिंदगी में कुछ मुकाम हासिल कर पाऊं ।मुझे एक सफल इंसान बनाना अब पिताजी का सपना बन गया था।और वो इस सपने को पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे।

मैं किसी तरह बारहवीं की परीक्षा पास कर आगे कि पढ़ाई के लिए तैयार हुआ।मुझे दिलचस्पी ना होते हुए भी अपनी पढा़ई जारी रखने के लिए घर से दूर जाना पड़ा।क्योंकि आगे कि पढा़ई करना मेरी इच्छा नहीं मेरे पिताजी का सपना था।

मैं अपने गाँव से दूर निकल गया अपनी जिंदगी के मुकाम को हासील करने के लिए।शहर जाने के बाद पता चला कि जिंदगी में कितने संघर्ष करने पड़ते है और अपनी जिंदगी को सवारने और बेहतर बनाने के लिए पढा़ई कितनी जरूरी है।यह सब मुझे पता भी नहीं चलता अगर मैं अपने गाँव में रह जाता और पिताजी कि ज़िद ना होती तो।

मैं कालेज में दाखिला ले चुका था।कल से मेरा कालेज का पहला दिन था।मैं आज से ही कुछ घबराया हुआ महसूस कर रहा था। इस बड़े शहर में मैं खुद को थोडा़ कम पढा़-लिखा महसूस कर रहा था।लेकिन अंदर कि हिम्मत ने खुद को टूटने नहीं दिया।मैं भी खुद कि हिम्मत को देख कुछ संकल्प लिया और कल कालेज जाने के लिए तैयार हो गया।यह सब मैं सोच ही रहा था तभी मुझे अपने दरवाजा पर कुछ आहट सुनाई दी।मैं दरवाजा खोलने के लिए बढा़।दरवाजा खोलते हि एक सुदंर लड़की कि चेहरा कि झलक मुझे दिखाई दी।पहले मुझे कुछ अजीब लगा, क्योंकि आज तक मैं किसी लड़कि से बात नहि किया था।लेकिन कुछ हिम्मत कर मैं पूछा- आप कौन? यह सवाल सुन वो ज़रा हँसी और फिर बड़ी सरलता से जवाब दी।मैं आपके कमरे के सामने वाले कमरे में रहती हूँ।मुझे मकान मालिक ने बताया था कि एक नया किराएदार आया हैं,जो तुम्हारे ही कालेज में दाखिला लिया है।ये सब बातें जब वो मुझे बता रहि थी तब मुझे उसकी बोलने कि अदा और उसकी चेहरे कि रौनक काफी अच्छी लगी।उसके रहन-सहन शहर वाले थे।वो बिना रूके ही मुझसे सब बातें करती गई और मैं उसके बातों का जवाब बस हाँ और ना में देता गया क्योंकि उस वक्त तो मैं ऐसी पलो में खोया हुआ था जिससे निकलना इतना जल्दी संभव नहीं था।फिर भी मैं अपनी बातों से उसे ऐसा लगने नहीं दिया।वह पूरी बात कर अपने कमरे के तरफ बढ़ने वाली ही थी तब तक मैं उससे पूछ लिया,क्या आप मेरे साथ ही कल से कालेज चलोगी? उसने हँसते हुए जवाब दिया क्यों नहीं ? जरुर चलूँगी।

यह जवाब सुन मैं ज़रा सा उछल कर अपनी खुशी जाहिर किया।और कल होने कि जल्दी से इंतज़ार करने लगा।उसके जाने के बाद मैं अपने आप में व्यस्त हो गया और व्यस्तथा इतनी पता ही ना चला कि रात कब हो गई।फिर, मैं खाना खा कर सो गया।सुबह मेरी नींद खुला तो मेरी नज़र सबसे पहले घड़ी पर गयी।घड़ी में 8 बज चुके थे और मेरे कालेज का समय 10 बजे था।मैं जल्दी बिस्तर से उतर कालेज के लिए तैयार होने लगा।मुझे जल्दी भी थी क्योंकि आज पहली बार किसी लड़की के साथ कालेज जा रहा था।और यही सोच में था कि कहीं मेरे वजह से उसे मेरा इंतजार ना करना पड़े।मैं तैयार हो कर अपने कमरे से बाहर निकला और उसे आवाज़ दिया।वो भी तैयार हो चूकि थी ऐसा मुझे लग रहा था।तभी अंदर से आवाज़ आई बस दो मिनट में आ रही हूँ।दो मिनट बाद सामने का दरवाज़ा खुला और उस दरवाजे से एक परी जैसी लड़की बाहर निकली।मूझे उसकि आज का उसका रूप काफी पसंद आया।कल जो उसका रूप था वो एक सधारण लड़की का था, और आज कालेज कि लड़की रूप में थी वो।उसका आज का रूप एक गुड़िया कि रूप के समान था।जो भी हो लेकिन वो बहुत सुंदर दिख रही थी।

मैं उसको देख दो पल के लिए खुद में खो गया था तभी वो मेरी हाथों को पकड़कर बोली कहाँ खो गए ज़नाब? कालेज के लिए लेट नहीं हो रही ।मैं घबराया और बोला हाँ चलो-चलो।लेकिन रास्ते भर मेरा दिल उसके स्पर्श कि एहसास में खोया हुआ था।

9:45 बजे तक हम दोनो कालेज पहूँच चूके थे।तभी शिक्षको ने आवाज़ लगायी कि सभी छात्र-छात्राओं कामन हाल में चले जाए।हम दोनो साथ ही हाल मे प्रवेश किए और साथ ही एक जगह पर जा कर बैठ गए।थोड़े देर के बाद हमारे कालेज के प्रधानाचार्य हमें संबोधित किए और कालेज के नए सत्र में हम सभी का स्वागत किए।और फिर थोड़े देर के बाद हम सभी छात्र अपनी-अपनी कक्षा के तरफ चल दिए।मैं अपनी कक्षा के तरफ बढ़ ही रहा था तभी देखा की वो भी मेरे कक्षा कि ओर बढ़ रही है।इससे मूझे पता चल गया कि हम दोनों एक ही कक्षा के विद्यार्थी है।यह जानकर दिल को खुशी का ठिकाना ही ना रहा।

क्योंकि जिसे वो अपनी नजरों के सामने देखना चाहता था अब वो लड़की उसी के कक्षा में बैठ कर पढ़ेगी।लेकिन मैं थोड़ा अनजान बन कर पूछा कि क्या तुम्हारी कक्षा यही भी है, तो उसने मुझे हाँ में जवाब दिया।उसके बाद हम दोनों साथ ही कक्षा में प्रवेश किए और एक ही बेंच पर जा कर बैठ गए।धीरे-धीरे ऐसे ही हम दोनों कि दोस्ती काफी अच्छी हो गयी।चार साल कब बित गया यह पता ही नहीं चला।और अब नौकरी पाने का समय आ गया था।देश-विदेश से अलग-अलग मल्टी नेशनल कंपनी हमारे कालेज में आई हुई थी।हम दोनो ने नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू दिया और भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि हम दोनो को एक ही कंपनी ने चून लिया था।इस समय तक हम दोनों कि दोस्ती प्यार मे बदल चुकी थी।लेकिन यह बात भी सच थी कि वो मुझसे ज्यादा होशियार थी।इसीलिए वो अगर मेरी साथी बन जाती तो मुझे अपनी जिंदगी मे कुछ कठिनाईयाँ कम लगती और संघर्ष भी थोडा़ कम करना पड़ता क्योंकि उसकी समझदारी मेरी काफी मदद करती।यह भी एक काश वजह थी जिसके वजह से मैं उससे प्यार कर बैठा।

ना जाने इतना तेज दिमाग कहाँ से था उसके पास।मैं उसको एक तरह से अपना दिमाग मान बैठा था।अब वो मेरी जिंदगी कि हर एक पल बन गयी थी और मैं उसके रुह का हर एक एहसास बन गया था।

यहि प्यार था जिसके वजह से मैं खुशी-खुशी उसके दिल का कैदी बनना चाहता था।

यह सुनहरा पल मुझे हमेशा याद रहेगा।और एक ही बात मेरे दिल को बार-बार याद आता है और वो खुद में ही अंदर ही अंदर बोल उठता-"She is my Mind but I am a Prisoner of her Heart." थी कि


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