उस कंगन को वो आज भी...
उस कंगन को वो आज भी...


आज वो मुझसे मिलने आ रही है। ना जाने कितने वक्त के बाद, आज उसका खत आया था। उस खत में लिखा था कि, वो मुझसे मिलना चाहती है।। करीब दो बरस बित चुके थे, हमारे अलग होने को लेकर। इन दो वर्षों में मैं एक दिन भी उसे भूला नहीं था, और यही वजह थी कि वो आज मुझसे मिलने आ रही है।। शायद, वो कुछ जल्दी में थी, इसीलिए उसने बस इतना कहा कि, शाम को हम उस टपरी वाले चाय के दुकान पे मिलते है, जहाँ हम पहली दफा मिले थे। उसे वो जगह आज भी याद है, जहाँ हमारी पहली मुलाकात हुई थी। लगता है वो भी; आज तक कुछ भूली नहीं है, उसके अंदर भी मेरे लिए थोड़ा प्यार होगा, तभी तो आज भी उसे वो सब कुछ याद है। शाम के इंतजार में मैं कुछ कर भी नहीं पाया, सारा वक्त बस शाम होने का इंतजार करता रहा। और जैसे ही शाम होने को आई, मैं समय से पहले ही उस चाय कि दुकान पे चला गया। उस दुकान पे आना जाना लगभग मैं भूल चुका था, जबसे वो मुझसे दूर गई थी। लेकिन इतने दिनों के बाद जब मैं उस दुकान पे गया, मानों जैसे कि पराने वक्त कि तमाम यादें बस एक पल में ही मेरे दिल में कैद हो गई हो, और फिर वो जख्म जिसे मैं कुरेदना नहीं चाहता था, इस पल वक्त ने खुद उस जख्म को फिर हरा कर दिया। खैर! ये यादों का सिलसिला फिरता रहा और तब तक, वो मेरे तरफ आती दिखाई दी। उसको देखकर मुझे खुद में कुछ अजीब लगा, ये अजीब लगना इसीलिए था, क्योंकि मैंने उसमें; अपने कुछ टूटे हुए अंश को महसूस करने लगा, जब वो मेरे करीब आती गई। उसके हाथ में वही कंगन थी, जिसे मैंने आखिरी मुलाकात में उसे दिया था। और वो कंगन इस बात की निशानी थी की अगर उसे मुझसे आज भी मोहब्बत है, तो वो जब भी मुझसे मिलने आएगी तो वो इस कंगन को पहन कर आएगी। लेकिन उस कंगन को देख दिल टूटा इसीलिए था क्योंकि उस कंगन को वो दाये हाथ में पहनी थी। और आखिरी मुलाकात के ये वादे थे की, अगर हम जिंदगी में फिर कभी किसी मोड़ पर मिले, और तुम्हें उस वक्त तक मुझसे प्यार रहा तो तुम मेरे दिए हुए कंगन को पहने रहोगी। अगर तुम्हारे दाये हाथ में कंगन हुआ, तो मैं समझ जाऊँगा कि तुम मोहब्बत तो मुझसे करती हो, लेकिन तुम किसी और कि हो चुकी हो। हाँ, आखिर तुम लड़की हो, तुम्हें अपने परिवार के इज्जत को भी देखकर चलना है, क्योंकि ये जमाना का रीत है की मोहब्बत बेइज्जत भरे लोगों की निशानी है। खैर ये ज़माना कुछ भी कहे, मैं हमेशा से अपनी मोहब्बत को इज्ज़त देते आया हूँ और आगे भी दूँगा चाहे इसके लिए मुझे तुमसे दूर क्यों ना होना पड़े। तो तुम अपने परिवार के इज्ज़त के लिए अपने प्यार की कुर्बानी भी दे दोगी। और ये जरूरी भी है। भला परिवार का इज्जत किसी के इश्क का मोहताज थोड़े होता है। फिर भी; इश्क तो इश्क होता है। तुम रहो ना रहो मेरे करीब, ये इश्क आज भी उतना ही है, जितना कल था, और कल भी उतना ही रहेगा; तुमसे। उसके हाथों में जो कंगन दिखा, उससे तो ये पता चल जाता है कि इश्क और जिंदगी दोनों एक तराजू के दो पहलू है, जिसे नारी जाति एक समान कर के अपनी जिंदगी गुजारना जानती है। हाँ, उस कंगन को उसके हाथ में देख दिल को थोड़ा सुकून तो मिला, पर उतना सुकून उसी वक्त मिलता जब वो उसको अपने बायें हाथों में पहनी होती.... क्योंकि पहली दफा मैं उस कंगन को उसे बायें हाथों में पहनाया था...ये इश्क कि कुछ विश्वास थी तभी उसके बाये हाथ में कंगन डाला था मैंने। फिर भी खुशी इस बात की है कि वो उस कंगन को आज भी संभाल कर रखी है। खैर! अब मुलाकात होने को है, वो मेरे करीब आ चुकी है....