फ्लैट नंबर २१३(भाग -1 )
फ्लैट नंबर २१३(भाग -1 )
दिसंबर का महीना..आज बाकि दिनों से ठण्ड ज्यादा थी. .ठंडी हवाएं चल रही थी ..राजू अपनी chinese की लारी के पास बैठा था क्यों की आज ठण्ड क वजह से गिराकी भी कम थी..तभी एक आवाज आती है और आवाज मे ठण्ड की थरथराहट साफ़ महसूस हो रही थी. .
भैया दो chinese मंचूरियन पार्सेल कर दो न जरा और थोड़ा तीखा बनाना..यह आवाज वैभव की थी ...
वैभव एक साधारण सा दिखने वाला ३० साल का नौजवान लड़का था..वो इंफोटेक कंपनी मे काम करता था...हाल ही में उसका ट्रांसफर जयपुर हुआ था..वो और उसकी वाइफ सनाया जो पेशे से एक टीचर थी आज ही अपना सारा सामन लेकर आज सुबह ही जयपुर पहुँचे थे...अपनी सारी सेविंग्स लगा कर और थोड़ी लोन लेकर यहाँ प२ उन्हों ने घर लिया था...
कल सुबह ऑफिस मे रिपोर्टिंग है जल्दी उठके निकलना पड़ेगा वरना पहले ही दिन इम्प्रैशन की धजिया उड़ जाएगी वैभव मन ही मन सोच रह होता है और उसके फ़ोन की घंटी बजती है फ़ोन सनाया का था ..
कहाँ हो ? कितनी देर ? बहुत भूख लगी है ..- सनाया ने कहा..
अरे आया बाबा ...बस दो मिनट..बन ही गया है .. बोल के वैभव फोन काट देता है..
हा भैया कितना हुआ ??
१६० रुपए
ठिक है यह लो ..और वैभव वह से निकला पड़ता है. .अपार्टमेन्ट के पास मे ही लारी होने की वजाह से वह पैदल ही आया था. .
थोड़ा सा चलते ही वैभव को पीछे से आवाज आई मूड़ कर देखा तो वह एक बूढ़ा आदमीखड़ा था ..सफ़ेद लम्बे बाल सफ़ेद लम्बी दाढ़ी ..धूल से सनी हुई चदर जिसे उसने अपने पुरे शरीर को ढका हुआ था..
तुम वही हो न जो माधवराज अपार्टमेन्ट २१३ में रहने आये हो ??? बूढ़े आदमी ने पूछा ..
हाँ पर आपको कैसे पता ?? वैभव ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा
वहाँ सनाया घर के सामान को अपनी अपनी जगह रख रही थी...तभी उसको ऐसा लगा के उसके पीछे कोई है उसे लगा के शायद वैभव होगा...
आ गए !! कहा रह गए थे भूख के मारे मेरी जान निकल रही है सुबह से चिप्स के अलावा और कुछ नहीं खाया...
लाओ अभी मे डिश में परोस देती हु ऐसा बोल के वो पीछे मुड़ी पर पीछे कोई नहीं था दरवाज़ा वैसे ही बंद था ...वो थोड़ा घबराई ...के उसने जो महसूस किया वो सच था या स्ट्रेस की वजह से उसे ऐसा भास् हुआ ...
वैभव के ऐसे सवाल करने पर वह बूढ़ा आदमी पलट कर जाने लगा और बड़बड़ाने लगा ...
गलत किया. ..नहीं आना चाहिए था तुम्हे यहाँ...गलत किया
वैभव कोई प्रतिउत्तर नहीं दे पाया और उसे जाते हुए देखता रहा धीरे धीरे वह बूढ़ा आदमी कोहरे में समाह गया ....एक तेज़ गाडी के हॉर्न ने उसका ध्यान भंग किया ...और वो फिर चलने लगा अपने घर की ओर...
यहाँ सनाया ये तय नहीं कर पा रही थी की उसने जो देखा वो भ्रम था या कुछ और ... सनाया सोच ही रही थी के उतने में डोरबेल बजती है और वो चौक जाती है...वैभव था...
दोनों यह बात बात एक दूसरे को बताना चाहते थे पर ना बताना ही बेहतर समझा ...
रात के २ बजे थे ...वैभव सो चूका था पर सनाया की नींद कोसो दूर थी थोड़ी थोड़ी देर वह बस करवटे बदल रही थी....
बैडरूम में डिम लाइट जल रही थी..और सनाया अपने खयालो में डूब रही थी..वैभव से वो पहली मुलाकात...पहली डेट ...घरवालों को मानाने की कोशिशे...और आज देखते देखते उनकी शादी को २ साल हो चुके थे...डिम लाइट के उस बल्ब में मानो उसे सब दिख रहा था...अचानक से वो चौकी उसे लगा की कब्ड के पास कोई है जो उसे घूरे जा रहा है... अँधेरा ज्यादा होने क वजह से उसे कुछ दिखाइ नहीं दिया ..वो हिम्मत करके उठी पर वहाँ पर कोई नहीं था ...वो डरी हुई थी ये दूसरी बार था जब उसको ऐसा लगा के उसे कोई देख रहा है...वो घबरा के कम्बल पूरा सर पे ओढ़ कर सो गई ...
थोड़ी देर सोइ ही थी के उसकी आँख खुल गई...उसको लगा जैसे मॉस सड रहा हो ..उस बदबू से उसका सर फटे जा रहा था ...उसने बाजू में देखा पर वैभव वहाँ पर नहीं था ...वो घबराई वो किचन में गई के सायद वो पानी पीने उठा हो पर वो वहाँ पर भी नहीं था ..वो हॉल में आई पर वहा पर भी वैभव नहीं था...उसे महसूस हुआ की इस रूम मे ठंड कुछ ज्यादा ही है..ठंड के मारे उसका पूरा बदन काँप रहा था. वो बैडरूम की और जा ही रही थी की तभी वो बदबू फिरसे आने लगी ...उसको लगा पीछे कोई है वो मुड़ी और उसके होश उड़ गए दरवाजे के पास एक औरत खड़ी थी जो उसे ही घूर रही थी..धीरे धीरे वो उसके पास आने लगी जैसे जैसे वो पास आ रही थी वेसे वेसे ठंड और बदबू बढ़ रही थी वो चीख ना चाहती थी वहा से भागना चाहती थी पर जैसे किसी ने उसके शरीर को जकड लिया हो ऐसा महसूस कर रही थी...वो औरत अब उसके बिलकुल पास थी..सनाया अपनी आँखे बंध करना चाहती थी पर कर ना सकी ..उसने उस औरत की और देखा....काले लम्बे बाल..पिली आँखे आधा जला हुआ शरीर जिसमे से थोड़ा धुआँ भी निकल रहा था.. वो बदबू उसी औरत में से आ रही थी..वो पास आई और कहा "वो आएगा और तुम्हे भी जला देगा !!! सबको मार देगा.. चले जाओ यहाँ से अगर जान प्यारी है तो .."
सनाया की आँखे खुल गई..वो डरी हुई थी उसकी नजर घडी पर गई सुबह के ९ बजे हुए थे ..दिसंबर की ठंड में भी उसका पुरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था..उसका सिर अभी भी दर्द कर रहा था उसने एक हाथ से अपने सिर को दबाते हुए सोचा की सच में यह एक सपना था मैंने तो उसे खुद महसूस किया था ऐसा तो कभी नहीं हुआ मेरे साथ. .ऐसा सोच ते सोचते उसे वैभव का ख्याल आया उसने देखा वैभव वहां पर नहीं था..उसने पुरे घर मे उसे ढूंढा पर वो कही नहीं मिला ..फिर उसकी नज़र टेबल पर रखी एक चिठ्ठी पर गई..
तुम बहुत गहरी नींद में थी और कल से थकी हुयी थी. इसलिए मेने तुमको नहीं जगाया.में ऑफिस जा रहा हूँ मेने ब्रेकफ़ास्ट कर लिया है और लंच में वहा कर लूंगा!!! तुम अपना ख्याल रखना...
-वैभव
फिर सनाया घर के कामो में व्यस्त हो गयी काम करते करते उसे एक ही ख्याल आ रहा था की कल उसने जो मेहसूस किया वो सच में एक सपना था या फिर कुछ और....
दौहपर के १ बजे..
वैभव ने सनाया को मैसेज किया..." आज में ७ बजे आ जाऊंगा डिनर मत बनाना हम बाहर खा लेंगे "
रात के ११ बजे दोनों डिनर कर के घर पोहचे...दरवाजा खोलते ही सनाया को जलने की बदबू फिरसे आने लगी...उसने वैभव की और देखा और कहा ..
वैभव क्या तुम्हे कुछ जलने की बू आ रही है ??
नहीं तो क्यों ?? -वैभव ने पूछा
नहीं कुछ नहीं ... बोलके सनाया ने दरवाजा बंध कर दिया ...
रात के २ बजे फिरसे जलने की बदबू की वजह से सनाया की आँख खुल गई ...फिरसे वही सबकुछ महसूस हुआ ..
अब तो ये रोज की बात हो गई थी...सनाया बेचेंन सी रहने लगी थी...
रविवार की सुबह 9:30 बजे. .
वैभव सोफे पे बैठा था...एक हाथ में न्यूज़ पेपर और दूसरे हाथ मे कॉफ़ी मग...वैभव की नजर सोच मे डूबी हुई सनाया पर जा रुकी ...
क्या हुआ सनाया काफी दिनों से देख रहा हु तुम कुछ बेचैन सी दिख रही हो..तबियत तो ठीक है ना तुम्हारी ? वैभव ने कॉफी मग को टेबल पर रखते हुए पूछा ..
कुछ ठीक नहीं है वैभव ...जब से हम यहा आये है तबसे रोज रात को डरावने सपने आते है...
सनाया और कुछ बोले उसे पहले किचन में से कुछ गिरने की जोरसे आवाज आती है दोनों भाग कर किचन में जाते है. .
यहाँ तो कुछ नहीं है तो ये आवाज आयी कहाँ से ? वैभव ने पीछे खड़ी सनाया से पूछा ...
सनाया भौचक्की रेह गई...उसने वैभव के पीछे उसी आधी जली हुई औरत को देखा जो वैभव को घूरे जा रही थी ...
क्या हुआ ऐसे क्यों देख रही हो ?? वैभव ने सनाया से पूछा ...
सनाया ने डरते हुए उस औरत की और ऊँगली दिखाते हुए कहा...
वैभव ...वो...वो ...
और उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया और वो बेहोश होकर गिर पड़ी...
क्रमशः