sagar mehta

Horror

3.0  

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फ्लैट नंबर २१३ (भाग -2)

फ्लैट नंबर २१३ (भाग -2)

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सनाया..सनाया ...वैभव सनाया के मुँह पे पानी छिड़कते हुए ...

सनाया अब धीरे धीरे होश में आ रही थी .. थैंक गॉड तुम्हें होश आ गया में कितना डर गया था मालूम हे तुम्हें.. सनाया का हाथ अपने हाथो में लेते हुए बोला ...

तुम किसी की और इशारा कर रही थी ? ऐसा क्या देखा तुमने ? वैभव ने पानी का गिलास हाथ मैं देते हुए पूछा..

सनाया ने थोड़ा पानी पिया और फिर सब बता दिया के पिछले दस दिनों में उसके साथ क्या क्या हुआ..आज भी उसने वो औरत देखी थी वैभव के पास और जिसे देखके वो बेहोश हो गई ..

वैभव कुछ सोच में डूब गया उसको वो बूढ़े आदमी की बात याद आ गई लेकिन सनाया को कुछ नहीं बताया वो सनाया को और डराना नहीं चाहता था... 

देखो ज्यादा मत सोचो ..थोड़ी देर आराम करो सब ठीक हो जायेगा .... वैभव बेड से खड़े होते हुए बोला !

दूसरे दिन ऑफिस में वैभव कुछ सोच में डूबा था तभी रवि की नज़र उस पर पड़ती है. .

रवि, वैभव का दोस्त था वैसे तो वैभव को कंपनी जॉइंट किये हुए कुछ ही दिन हुए थे लेकिन उसके फ्रेंडली बिहैवियर की वजह से उसने बहुत से दोस्त बना लिए थे, उनमें से एक था रवि..रवि और वैभव लंच साथ में ही करते थे इसलिए वो उसे लेने आया था।

लंच करते करते भी उसका ध्यान सनाया की बातों पर ही था..क्या हुआ वैभव कुछ परेशानी है ? रवि ने पूछा..

नहीं तो .. क्यों क्या हुआ ?

मैं कब से बोल रहा हूँ, तुम कुछ ध्यान ही नहीं दे रहे ..सुबह से कुछ परेशान से लग रहे हो कुछ तो बात है वैभव ..अब बता भी दो ..शायद में कुछ काम आ सकूँ.. रवि ने पानी का गिलास भरते हुए कहा।

अरे यार कल सनाया अचानक बेहोश हो गई..और जब होश में आई तो उसने कहा ...... - वैभव ने सारी बात रवि को बता दी..

यह सब वहम है और कुछ नहीं ..ज्यादा मत सोचो.. देखो तुम लोग अभी अभी यहाँ आये हो, नया शहर है, नये लोग है...स्ट्रेस और थकावट की वजह से उसे ऐसा आभास हो गया होगा ..थोड़ा टाइम दो, सब ठीक हो जायेगा ...और रही बात उस बूढ़े आदमी की तो हो सकता है वो मजाक कर रहा हो ... रवि ने शांति से वैभव को समझाया..

जवाब मे वैभव ने हाँ में सर हिला दिया ..वो अभी भी रवि की बातो से पूरी तरह सहमत नहीं था ..और यह बात रवि भी जान चुका था ..

सुनो मेरा एक दोस्त है ! डॉ आंनद.. वो एक साइकोथेरेपिस्ट है ... रवि ने हाथ पोंछते हुए कहा।

तो तुम यह केहना चाहते हो की सनाया पागल है ? - वैभव न चिढ़ते हुए कहा। 

अरे ऐसा नहीं है ... ऐसा नहीं होता की जो पागल हो वही साइकोथेरेपिस्ट के पास जाते हैं ..ऐसे भी लोग जाते हैं जो स्ट्रेस में हो डिप्रेशन में हो. .या रातों को नींद ना आती हो..तुम उनसे मिल तो लो ...में उनसे बात कर लूंगा ..- रवि ने वैभव के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा। 

अच्छा मैं सनाया को लेके वहा हो आऊंगा...शुक्रिया मेरी हेल्प करने के लिए .. वैभव ने कहा।

व्याट नॉनसेंस !

मैं कोई साइकोथेरेपिस्ट के पास नहीं आने वाली...तुम्हें ऐसा लगता है की मुझे पागलपन के डोरे पड़ते हैं...मैं कहीं नहीं आने वाली वैभव. सनाया ने गुस्से से कहा।

वैभव ने सनाया का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा- देखो सनाया में यह नहीं कह रहा की तुम्हें पागलपन के डोरे पड़ते हैं... लेकिन जो तुम्हारे साथ हो रहा है उसे भी तो हम इग्नोर नहीं कर सकते ...मैं आज पूरा दिन तुम्हारे लिए चिंतित था ..खुद केलिए ना सही मेरे लिए चलो...सिर्फ एक बार ! अगर तुम्हें ठीक ना लगे तो दोबारा नहीं जायेंगे ...

सनाया ने वैभव की और देखा उसके चेहरे पे उसके लिए चिंता साफ़ दिखाई दे रही थी ...सनाया ने हाँ में सर हिला दिया !

ग्रेट ! कल ६ बजे की अपॉइंटमेंट है.. यह कह कर वैभव बैडरूम में चला गया..

दूसरे दिन...शाम के ६ बजे..

वैभव ने एक कैब (टैक्सी) बुक करवाई थी...कार अपनी तेजी से आगे बढ़ रही थी वैभव अपने फ़ोन में बिजी था...

सनाया ने अपने साइड की विंड स्क्रीन नीचे की ..दिसंबर की ठंडी प्राकृतिक हवा का झोंका मानों सनाया के गालों को सहला रहे थे..थोड़ी देर के लिए सनाया सब कुछ भूल गई थी.. उसने विंड स्क्रीन पूरी खोल दी और अपना चेहरा बाहर निकाल दिया ...उसके खुले बाल मानों समुद्र की लहर की तरह लहरा रहे थे..तभी अचानक उसके चेहरे से छू कर कुछ गुजरा ..कुछ रेशम के कपडे जेसा और उसमे बसी सड़े हुए मँस की बदबू ...सनाया ने चौंक कर चारों और देखा पर वहां पर कुछ नहीं था..उसने अपना चेहरा अंदर किया और विंड स्क्रीन बंद कर दी...लेकिन वो गंध अभी भी उसे आ रही थी ...वैभव अभी भी अपने फ़ोन में बिजी था ..वो कुछ बताये उसे पहले ही अचानक गाड़ी रुक गई ...

सर ! निर्मल आर्केड आ गया ! ड्राइवर अपने रियर व्यू मिरर में से पीछे देखते हुए बोला ..

एक बड़ा कमरा जिसके बीचमे एक बड़ा मुलायम सोफा उसके ठीक सामने एक बड़ी सी चेयर, बीच में एक बड़ा काँच का टेबल जिस पे कुछ किताबें और लिखने केलिए डायरी और पेन थी ...कमरे की दीवाल पे पॉजिटिव थॉट्स वाली पेंटिंगस थी ..

हेलो ! डॉक्टर मे वैभव ..रवि का दोस्त. .- वैभव ने अपना हाथ आगे करते हुए कहा। 

हेलो ! मैं आप ही की प्रतीक्षा कर रहा था, रवि ने आपकी प्रोब्लेम्स के बारे में बताया था .. - डॉक्टर ने हाथ मिलाते हुए कहा।

दोनों सोफे पे बैठ गए और डॉ आनंद डायरी और पेन लेके सामने वाली चेयर पे....

हाँ सनाया मुझे शुरू से बाताओ.. कब से यह हो रहा है ? क्या हो रहा है ? और कब हो रहा है ..?- डॉ ने अपनी डायरी खोलते हुए कहा।

सनाया ने सारी बात विस्तार से डॉ आनंद को बता दी..

देखो सनाया इसमें डरने वाली कोई बात नहीं है .. ये सब तुम्हारे वहम हैं .. भूत जैसा इस दुनिया में कुछ नहीं होता है सनाया..

सनाया हमारा दिमाग एक मेमोरी चिप जैसा होता है जो देखी हुई सारी बातो को स्टोर करती है.. तुमने जो महसूस किया वो बस तुम्हारे दिमाग का छलावा है और कुछ नहीं. .कभी कभी हम जो देखते हैं, पूरा दिन सोचते है वही हमें रात को सपने में नजर आता है। कभी कभी तो दिन में भी दिखाई देता है..जैसे तुम्हें वो लेडी दिखी वैभव के पास ... यह सब होता है स्ट्रेस डिप्रेशन और अकेलेपन की वजह से..कोई हॉरर फिल्म देखी हो या नावेल पढ़ी हो और फिर उसके बारे में सोचने लगी हो तो भी यह पॉसिबल है... ऐसी कंडीशन में एक छोटी सी आवाज से भी इंसान डर जाता है...तुम्हे इनसे बाहर आना होगा सनाया...पोजिटिविटी लाओ...अच्छा सोचोगी तो सब अच्छा होगा !

तो अब आगे क्या करना है ? वैभव ने पूछा। 

मैं मेडिसिन दे रहा हूँ ..पर मेरा मानना है की अगर यह बुरे विचार करना छोड़ दे तो मेडिसिन की कोई जरूरत ही नहीं..फिर भी अगर मेडिसिन से भी कुछ फर्क न पड़े तो हम थेरेपी स्टार्ट कर देंगे ..- डॉ ने मेडिसिन देते हुए कहा। 

रात के 3 बजे ...

जलने की गंध की वजह से सनाया की आँखे खुल गई ..अलमारी के पास दो पीली आँखे थी जो उसी को घुरे जा रही थी... वो डर गई..उसने रजाई से खुद को पूरी तरह से ढक लिया...थोड़ी देर बाद जब उसने रजाई हटाई तो वो औरत बिलकुल उसके सर के पास बैठी थी और उसे ही घुरे जा रही थी...वो कुछ करती उसे पहले ही वो औरत उसपे चढ़ गई ..औरत ने सनाया के दोनों हाथो को पकड़ लिया ...सनाया चीख ना चाहती थी वैभव को जगाना चाहती थी पर उसका पूरा शरीर बुरी तरह से जकड़ा हुआ था..गंध की वजह से सनाया अपना होश खो रही थी ..फिर वो औरत सनाया के कान के पास आकर फुसफुसाई .."दुनिया का कोई डॉक्टर तुम्हें मुझसे नहीं बचा सकता .."सनाया की आँखे धीरे धीरे बंद हो गई ..

सुबह ७ बजे अलार्म की आवाज से सनाया की नींद टूटी ..उसको रात को हुआ वो सब याद आया ..वो वैभव को बताना चाहती थी लेकिन वो जानती थी के वैभव इसे दिमाग का वहम बता कर बात को टाल देगा..इसलिए वैभव को ना बताना ही बेहतर समझा.. 

ऑफिस में वैभव को सनाया का ख्याल आया उसने कॉल किया लेकिन सनाया ने नहीं उठाया....

दो बार ...तीन बार ...चार बार ... सनाया ने कॉल नहीं उठाया ..वैभव गभराया वो तुरंत घर की और निकला ....

उसने चाबी से घर खोला ..घर में दाखिल होते ही उसकी नजर सनाया पर पड़ी वो स्तब्ध रह गया ..

सनाया.. वो चीखा और सनाया की और दौड़ा.....क्रमशः


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