Anju Kharbanda

Drama Romance Tragedy

4.5  

Anju Kharbanda

Drama Romance Tragedy

पहला प्यार

पहला प्यार

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आज फिर वही उदासी, फिर यादों का भँवर, वही पीड़ा !

रोहन जब-जब रिदिमा को याद करता उसकी आँखे भर आती। पुरानी यादें न चाहते हुए भी उसे चारों ओर से घेरे रखती। कभी कभी तो रोहन को यूँ लगता कि इन्हीं यादों में ही दफन हो जाऊँ पर फिर माँ का ख्याल आते ही वह अपने आपको संभालने की कोशिश करता।

इन्जीनियरिंग करने के बाद नौकरी के सिलसिले में शहर से बड़े शहर जाने का मौका मिला। वहाँ की आबो हवा की खुशबू रोहन को रास आने लगी और वह अहसासों के बोझ से खुद को मुक्त महसूस करने लगा। सुबह से शाम तक नौकरी की भागम-भाग और फिर शाम को घर लौटते ही खाने पीने व अगले दिन की चिंता !

जिंदगी यूँ ही तेज रफ्तार से बीती जा रही थी अचानक एक दिन, बाजार में सामान लेते हुए रोहन को खनकती हँसी सुनाई दी। वही मीठी आवाज जिसका वह दीवाना हुआ करता था, वही दिलकश आवाज ! रोहन ने खुद को संयत करने की पूरी कोशिश की, कि वह मुड़ कर पीछे न देखे ! पर वह ज्यादा देर तक खुद को न रोक सका। जैसे ही पीछे मुड़कर देखा- खूबसूरत सुहाग चूड़े में सजी गोरी-गोरी कलाई पर नजर पड़ी।

जी धक्क से रह गया जैसे किसी ने सीने में खंजर घोंप दिया हो। हृदय जोरों से घड़कने लगा और पूरा शरीर मानो शिथिल सा पड़ गया। चेहरा ठीक से नहीं दिखलाई पड़ा। वह चेहरा देखना भी नहीं चाहता था, एक डर सा हावी हो चला था, कहीं सचमुच ये रिदिमा हुई तो !

आज महसूस हुआ कि कभी-कभी भ्रम कितने अच्छे लगते हैं, भ्रम जीने का सहारा तो होते ही हैं कम से कम ! आज ये भ्रम का जाल अचानक अच्छा लगने लगा था । "रिदिमा,,,,,!!!!" आवाज सुनकर रोहन चौंका । "जी कहिए !" दुकान पर खड़ी झुमकियाँ पसंद करती वही खनकती आवाज, यूँ लगा मानो कलेजा मुंह को ही आ जाएगा। "क्या हो रहा है आज मुझे !" "क्यूं संभाल नहीं पा रहा मैं खुद को !"

रोहन भँवर में डूबता जा रहा था। कुछ समझ नहीं आ रहा था। जी चाहा निकल जाए पर कदम, कदम तो जैसे वही जकड़ गये थे और आँखें सिर्फ एक नजर रिदिमा को देखना चाहती थी। रिदिमा, गहरी साँस लेकर उसने मन ही मन पुकारा।

"देखो ये झुमकी कितनी सुन्दर है ना !" रिदिमा की खनकती आवाज मिश्री सी कानों में घुल गई। रोहन दम साधे चुपचाप खड़ा रहा मानों उसके हिलते ही धरती फट जाएगी या पहाड़ टूटकर गिर जाएगा।

"छोड़ो ये झुमकी रिदिमा ! जल्दी चलो ! देखो शाम भी ढल गई, माँ इंतजार करती होगी।"

मर्दानी आवाज सुनाई पड़ी, शायद रिदिमा का पति.....

"अरे ! अभी कुछ देर और घूमते हैं ना नीलेश !" रिदिमा ने लाड़ से कहा।

"नहीं अब और नहीं ! माँ नाराज होंगी।"

नीलेश ने दो टूक जवाब दिया। रिदिमा के चेहरे पर हल्की सी नाराजगी दिखलाई पड़ी पर एकदम से उसने खुद को संभालते हुए कहा- "अच्छा चलो पर अगले सप्ताह तो मूवी दिखाने चलोगे न !"

"हाँ हाँ ठीक है बाबा ! अगले सप्ताह की अगले सप्ताह देखेंगे। अभी तो यहाँ से हिलो !"

इतना कहकर नीलेश, रिदिमा की बाजू पकड़ पास खड़ी बड़ी गाड़ी की ओर बढ़ा। रोहन दोनों की बातचीत सुनकर चौंक उठा- "ये वही रिदिमा है जो टस से मस न होती थी अपनी बात से, हर बात में जिद और अपनी मर्जी करने वाली रिदिमा और आज शादी के बन्धन में बंधते ही !"

रोहन के चेहरे पर एक भाव आता एक जाता। वह समझ ही नहीं पा रहा था कि रिदिमा को खुश देखकर वह खुश है या दुखी............


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