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Kanchan Shukla

Inspirational

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Kanchan Shukla

Inspirational

पहल अनोखी मुंह दिखाई की

पहल अनोखी मुंह दिखाई की

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 कविता बहू के स्वागत की तैयारियों में लगी हुई थी अभी-अभी उसके पति का फोन आया वह लोग दुल्हन को लेकर पहुंचने ही वाले हैं कविता भी बेटे की बारात में गई थी पर जयमाल देखकर रात में ही घर वापस लौट आई थी, क्योंकि यहां घर पर भी उसे बहू के स्वागत की तैयारियां करनी थी। कविता ने बहू के लिए आरती का थाल सजा लिया सूप में दीपक, चावल, दूर्वा और गुड़ भी रख लिया चावल से भरा कलश दरवाजे के आगे रखा हुआ था थाल में रोली और आलता घोलकर पहले ही तैयार कर लिया था। सभी तैयारियां करने के बाद कविता दरवाजे के पास रखी कुर्सी पर बैठ गई सुबह से भाग-दौड़ करते हुए वह थक गई थी कुर्सी पर बैठते ही उसकी नज़र घर पर पड़ी घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था पूरा घर मेहमानों की चहल-पहल से गुंजायमान हो रहा था मधुर संगीत बज रहा था चारों ओर खुशियां ही खुशियां बिखरी हुई थीं यह सब देखकर कविता के चेहरे पर एक दर्द भरी मुस्कान फ़ैल गई।

कविता को अपनी शादी का दिन याद आ गया जब वह पहली बार दुल्हन बनकर इस दहलीज पर आई थी उस दिन आते ही उसकी सास ने तानों से उसका स्वागत किया था क्योंकि उसके जेठ ने पहले ही अपनी मां को फोन करके बता दिया था कि, बहू के घर वालों ने बारातियों का अच्छे ढंग से स्वागत नहीं किया और न ही उनकी हैसियत के अनुसार सामान दिया है जबकि कविता के पिता ने अपनी हैसियत से ज्यादा दिया था स्वागत-सत्कार में भी कोई कमी नहीं छोड़ी थी फिर भी उसकी ससुराल वालों को उसमें कमी दिखाई दे रही थी। शादी के पहले दिन से लेकर जब-तक कविता की सास जीवित रहीं बात-बात पर उसको ताने देती रही और उसके माता-पिता को बुरा-भला कहती रहीं। इसी बीच कविता ने एक बेटे को जन्म दिया बेटे के जन्म पर ही कविता ने निर्णय ले लिया था कि, वह अपने बेटे का विवाह बिना दान-दहेज के करेगी और अपनी बहू को कभी भी उस दर्द से नहीं गुजरने देगी जिस दर्द को उसने अपने जीवन में सहा है। कविता के पति वैसे तो उसको प्यार और सम्मान देते थे पर उन्होंने कभी भी अपनी मां का विरोध नहीं किया इसी कारण कविता को कभी ससुराल में वह सम्मान नहीं मिला जो एक बहू को मिलना चाहिए था इसी बात का कष्ट कविता को हमेशा रहा पर वह ख़ामोश होकर सब सहती रही क्योंकि सहना औरत की नियति बन गई है। तभी दुल्हन आ गई दुल्हन आ गई का शोर सुनकर कविता अतीत से बाहर आ गई और मुस्कुराते हुए अपनी बहू के स्वागत के लिए आगे बढ़ी बहू की आरती उतारने के बाद बहू को कार से बाहर निकाला और सबसे पहले उसने अपनी बहू के घुंघट को अपने हाथों से पलट दिया और मुस्कुराते हुए कहा " बहू तुम्हारे नये घर में तुम्हारा स्वागत है तुम्हें आज के बाद घूंघट करने की जरूरत नहीं है पर्दा आंखों से होता है घूंघट से नहीं मेरा यही मानना है। आज के बाद तुम इस घर की बहू और बेटी दोनों हो तुम्हें इस घर में पूरा मान-सम्मान मिलेगा और पूरे अधिकार के साथ तुम इस घर में रहोगी आज से तुम्हारी एक नहीं दो मांए हैं तुम्हें कभी भी इस घर में कोई तकलीफ़ नहीं होगी और न ही कोई तुम्हारा अपमान करेगा यह हक तुम्हारे पति को भी नहीं होगा यही वचन देकर मैं तुम्हारी मुंह दिखाई कर रहीं हूं यह एक सास की अनोखी मुंह दिखाई है मेरी यह मुंह दिखाई तुम्हें पसंद जरूर आएगी"

कविता की बात सुनकर वहां खड़े सभी आश्चर्य से एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे थोड़ी देर चुप रहकर कविता ने फिर कहना शुरू किया "बहू लड़की का कोई घर नहीं होता मायके में कहा जाता है तुम इस घर में पराई हो और ससुराल वाले कहते हैं यह तुम्हारा मायका नहीं है यहां अपने नियम कानून चलाने की जरूरत नहीं है एक औरत जीवन भर यही सुनती आई है मां बाप के घर रहे तो पराई पति का घर भी उसका अपना नहीं औरत जीवन भर दूसरों के आश्रित रहकर अपना जीवन व्यतीत करती है अपने मन का कुछ नहीं कर सकती न अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त कर सकती है न अपनी पसंद के कपड़े पहन सकती है ना अपनी इच्छा से हंस सकती है ना ही अपनी इच्छा से रो सकती है वह अन्दर ही अन्दर घुटती रहती है अपनी इच्छाएं अपने अरमानों को अपने परिवार पर न्यौछावर कर देती है इस आशा के साथ की उसे भी अपनो से प्यार सम्मान और अपनापन मिलेगा पर उसे यह सब तो नहीं हां तिरस्कार, प्रताड़ना, अपमान और तानों की सौगात जरूर मिलती है। पर मैंने अपने बेटे के जन्म के समय ही यह निर्णय लिया था की मैं जब अपनी बहू को डोली से उतार कर गृहप्रवेश कराऊंगी तो उसे मुंह दिखाई में सोने हीरे मोती के गहने नहीं दूंगी उसे उसका अधिकार, उसका सम्मान, उसकी इच्छाएं उसकी भावनाओं को मुंह दिखाई में दूंगी, यह एक अनोखी मुंह दिखाई होगी एक सास की अपनी बहू को आज से यह घर जितना मेरा तुम्हारे पति का है उतना ही तुम्हारा है इस घर के गेट पर लगी नेमप्लेट पर तुम्हारा नाम भी अंकित होता सिर्फ दिखावे के लिए नहीं पूरे अधिकार के साथ कविता ने गम्भीर लहज़े में आत्मविश्वास के साथ अपनी बहू से कहा कविता की बात सुनकर कविता के जेठ और पति के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे जिसे कविता ने देख लिया और उसके चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई क्योंकि आज उसका संकल्प पूर्ण हो गया था और उसका खोया हुआ सम्मान वापस मिल गया था।



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