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Subhadeep Bandyopadhyay

Abstract Others

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Subhadeep Bandyopadhyay

Abstract Others

"फिर मिलेंगे"

"फिर मिलेंगे"

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जाना होगा इतना मुश्किल ये कब सोचा था,

कुछ पलों का है ये जीवन बस ये सुना था,

लड़ सकते हैं आँधियों से, ये माना था,

जाना होगा इतना मुश्किल, यह कब सोचा था?.


खेल-खेल में उलझ जायेंगे,

नन्ही लौ से ही जल जायेंगे,

जिसे समझा कच्ची सी डोरी,

बन जायेगा जन्मो का बंधन, कब जाना था,

जाना होगा इतना मुश्किल यह कब सोचा था ?


कालचक्र के गर्भ से जन्मा एक छोटा सा सपना,

नव खंडों में हो विभाजित,

अनेक नैनों में सज जायेगा, कब देखा था,

जाना होगा इतना मुश्किल यह कब सोचा था .


नूतन का पुरातन से ऐसा मिलन होगा,

हास्य-क्रंदन का ऐसा समन्वय होगा,

फिर मिलेंगे शब्द की विडंबना का साक्षी यह समाज होगा,

असंभव भी इस तरह संभव होगा,


प्रेम के सागर की इस धड़कन को किसने सुना था,

जाना होगा इतना मुश्किल यह कब सोचा था !


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