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Subhadeep Bandyopadhyay

Thriller

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Subhadeep Bandyopadhyay

Thriller

"फ्लिम जरूर बनाना "

"फ्लिम जरूर बनाना "

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आज अनिकेत का जन्मदिन है। हमेशा की तरह सुबह उठने की आदत है। नौकरी रही नहीं तो ऑफिस जाने की जरूरत भी नहीं। निशा से बात होगी नहीं क्यूंकि उसके घरवालों ने कह दिया है की एक फालतू से इंसान से निशा की शादी वह करेंगे नहीं। बाथरूम की बाती ठीक से जल नहीं रही है, अभी बचे पैसों से फ़िज़ूलख़र्ची वह कर नहीं सकता। माँ होती तो आज खीर-पूरी जरूर बनाती, यह सोचकर अनिकेत के आँखों में आंसू आ गए। बचपन में माँ जब ही पूजा करती वह बागीचे से फूल लाता और भगवान की मूर्ति पर वह चढ़ाता पर यह २०२४ है, यहाँ भगवान, इंसान और शैतान में ज्यादा अंतर रहे नहीं गया है, मतलब की दुनिया है, मतलब पूरा हो जाये तो कोई याद नहीं रखता। एक अजीब सी दौड़ में लगा है इंसान, जहाँ उसे न अपने दिखते है न अपनापन, प्यार तो बहुत दूर की बात है। 


मन बोझिल है पर फिर भी नहाकर अच्छे स्वच्छ कपड़े पहनता है, कुछ देर माँ के तस्वीर के सामने मौन बिताता है तभी दरवाज़े की कालिंग बेल्ल बजती है। एक सज्जन अंदर आते हैं और अपना नाम दिनेश कुमार साहू बताते हैं। अनिकेत कहने जा रहा था की मैं आपको नहीं पहचानता की तभी वह सज्जन बोलते हैं:" मैं जानता हूँ की आपके पास नौकरी नहीं है, मैं ज्यादा कुछ तो कर नहीं सकता पर आपसे एक अनुरोध जरूर कर सकता हूँ की मेरे पास एक कहानी है, मैं सिनेमा के लिए स्क्रिप्ट लिखता हूँ, आज २५ दिन से मैं एक प्रोडूसर से दूसरे प्रोडूसर के यहाँ धक्के खा रहा हूँ, कोई मेरी कहानी सुनना नहीं चाहता, वो कहते है इस कहानी पे फिल्म बनी तो पहले दिन ही पिट जाएगी, आप मेरी कहानी सुने, आपका जो वक़्त इस में जायेगा इसके मैं आपको २५०००/- दूंगा, कृपया मुझे निराश न लौटाए "

अनिकेत बहुत सोचने के बाद हामी भरता है और दोनों बैठ जाते हैं और कहानी शुरू होती है: 


फ्लिम की सेटिंग पे डायरेक्टर ने सबको अपना रोल समझा दिया। अब एक्टर्स लग गए स्क्रिप्ट पड़ने में और अपनी अपनी पोजीशन लेने में। पर सबकी मौजूदगी में एक एक्टर की कमी खलने लगी। वह था फ्लिम का खलनायक। जब बहुत देर तक वह दिखाई नहीं दिया तो लोग उसकी खोज में निकल पड़े। किसी ने उसके मोबाइल का नंबर लगाया तो कोई उसकी मोबाइल वैन की ओर दौड़ा पर वो दिखाई न दिया। फ्लिम का लोकेशन एक जंगल था जहाँ हीरो को विलन का पीछा करना था और अपनी पिस्तौल से उस पर गोली चलानी थी। कुछ ही देर में गोली की आवाज़ सुनाई दी और जंगल के बीचोबीच विलन की लाश पड़ी थी और उसके पास २४ ०००/- पड़े थे। पर हीरो तो डायरेक्टर के पास बैठा था और अगर किसीने विलन का खून किया तो पैसा क्यों छोड़ के चला गया। कुछ देर में पुलिस आती है और डेड बॉडी को लेके चली जाती है और तफ्तीश करती है पर कुछ सामने नहीं आता। ऐसे दिन, महीने,साल बीत जाते हैं और लोग अपने अपने काम में लग जाते हैं। और फिल्म बन ही नहीं पाती| एक दिन उस फिल्म का डायरेक्टर फिर से उस लोकेशन में पहुंचा जहाँ विलन की बॉडी पाई गयी थी, तो उसे कुछ अजीब लगा, पूरे जंगल में पेड़ पौधों से भरी थी पर जहाँ विलन की मृत्यु हुई थी वहां जमीं सुखी और बंजर थी। उसने कुछ मन में सोचा और उस ज़मीं को खोदने लगा तो उसे नीचे बहुत बड़ी पैसो से लदी अटैची मिली। पर अचानक किसी ने उसके सर पे जोर से मारा। यह कहकर दिनेश जी का गला सुख गया था तो उन्होंने अनिकेत से पानी लाने का अनुरोध किया।


अनिकेत जब पानी ले के वापस आता है तो दिनेश जी कहीं दिखाई नहीं देते पर  २५०००/- पड़े हुए थे और एक मैप मिला उस जंगल का, उसके साथ पूरी कहानी खून में लिखी हुई थी और आखरी शब्द यही थे : "फ्लिम जरूर बनाना "


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