फिल्मो वाली दोस्ती
फिल्मो वाली दोस्ती
"सुनो , क्या तुम मेरी दोस्त बनोगी ?"
किसी लड़के के मुँह से पहली बार ऐसे शब्द सुनकर मैं घबरा गई मगर थोड़ी हिम्मत जुटाकर मैने भी तपाक से जवाब दिया .... "बनूँगी पर फिल्मो वाली नहीं जिसमे दोस्ती के बाद प्यार और फिर शादी हो जाती है."
वो हँस दिया और फिर मेरे हाथ में लाल गुलाब देकर चला गया |मैं दोस्ती वाले उस लाल गुलाब को घर ले आई और अपनी अलमारी में उसे रख दिया।
वो मेरा बहुत सच्चा और अच्छा दोस्त बना। मैं उसके साथ अब अपनी सारी बातें साझा करती ... वो सुनता , मुस्कुराता और फिर मुझे समझाता। मैं सुनती मगर समझती नहीं .... करती वही जो दिल करता। धीरे - धीरे समय बीता .... दोस्त भी तो इंसान होता है .... एक दिन कह बैठा अपने दिल की बात। पहले मैं गुस्सा हुई पर उसके बाद एक दिन रात को बहती ही गई उसके साथ। वो जीत गया और मैं हार गई ... तो क्या दोस्ती में हार - जीत कैसी ?
बस हमारी दोस्ती प्यार पर ही खत्म हो गई ... ये फिल्मो वाली दोस्ती नहीं थी ना इसलिये इसमे शादी को कोई जगह नहीं मिली।
वो आज भी मिलता है .... वही पहले की तरह सुनता , मुस्कुराता और फिर मुझे समझाता है और मैं जब भी उसे याद करती हूँ बस अलमारी में रखे उस लाल गुलाब को पागलों की तरह अपने होठों से चूम कर अपना दिल बहला लेती हूँ।