पेशतनजी
पेशतनजी
हमारे बजपन में एक अंकल हुआ करते थे, जिनको हम लोग तो अंकल जी कहते पर बाकी लोग पेशतनजी कहते थे। टाफी चॉकलेट कि बड़ी सी दुकान थी जहाँ रंग बिरंगी केक और इसी तरह की चीज़े मिलती थी। हम लोग डेली उनके पास जाना ही था, लखनऊ के हुसैनगंज इलाके में उनकी दुकान हुआ करती थी। अंकल पारसी समुदाय के थे और उनकी शादी नहीं हुई थी पर इतना मालूम था कि उनकी ढेर सारी गर्ल फ्रेंड्स थी सब आती ढेर सारी बातें होती कॉफ़ी के मग पे मग खाली होते जाते, भाषा कविता कहानी शेरो शायरी की तमाम बातें होती।
एक मजेदार बात बताऊँ,उनकी सारी सहेलियाँ अलग अलग भाषा बोलने वाली थी हिंदी, इंग्लिश, उर्दू , तमिल, बांगला बोलने वाली। हिंदी, इंग्लिश, उर्दू, बांगला तो समझ में आता पर बाकी भाषाओं में जब बातें होती तो मैं मुँह देखती रहती। हमको समझ में नहीं आता। एक छोटा सा भारत था पेशतन अंकल के यहाँ, हाँ वही भारत तो ढूंढती हूँ ,जहाँ सब लोग मिलजुल कर रहते थे, पर अब पता नहीं कैसे सब बदल गया। पर शायद हम सब मिल कर एक कोशिश कर सकते है।