पछतावा
पछतावा
हम सबके अंदर कोई ना कोई ऐसी खूबी जरूर होती है जो हमें सबसे अलग बनाती है । लेकिन कभी-कभी हम एक दूसरे की देखा-देखी अपनी प्रतिभा को भूलकर उनके जैसा बनने की कोशिश करते हैं जिस कारण कभी-कभी हम खुद बेवजह ही अपने लिए परेशानियाँ खड़ी कर लेते हैं।
हमारी आज की कहानी भी कुछ ऐसे ही है जिसमें अर्जुन और दिवाकर मुख्य पात्र हैं।
उत्तर प्रदेश का एक छोटा-सा गाँव जिसमें दोनों दोस्त बिल्कुल राम-लक्ष्मण की जोड़ी जैसे थे। अर्जुन और दिवाकर की दोस्ती की सभी मिसाल देते थे।
दोनों बचपन से एक दूसरे के साथ खेल-कूद कर बड़े हुए, स्कूल में हमेशा एक ही क्लास में साथ-साथ पढ़ते आए, साथ खाना खाते, साथ खेलते, साथ में ही घर आते थे।
मानों दोनों की दुनिया ही बस एक-दूसरे में बसती हो। अगर एक स्कूल नहीं गया तो दूसरा भी नहीं जाएगा। यहाँ तक की सभी टीचर भी उन दोनों की दोस्ती की तारीफ़ करते थे। अर्जुन गणित और साइंस विषयों में बहुत ही होशियार था लेकिन दिवाकर को मैथ्स और साइंस कभी पसंद ही नहीं आये। हमेशा से मैथ्स से उसे एक डर सा लगता था लेकिन painting मे दिवाकर की बहुत रुचि थी और वह इसी क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता था। दोनों दोस्त एक-दूसरे के कमजोर विषयों को समझने में मदद करते थे।
कक्षा दसवीं तक दोनों मित्र एक-दूसरे की सहायता ऐसे ही करते रहे और उन्होंने दसवीं की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। दिवाकर मैथ्स और साइंस में पास तो हो गया लेकिन इन विषयों में कमजोर होने की वजह से उसे बहुत ही कम अंक प्राप्त हुए ।
अब दोनों दोस्तों ने 11वीं कक्षा में एडमिशन भी ले लिया अपनी-अपनी रुचि के अनुसार अर्जन ने नोन-मैडिकल में और दिवाकर ने आर्ट्स में दाखिला ले लिया ।
पहली बार दोनों दोस्त एक-दूसरे से अलग हुए थे जिसके बारे में उन्होंने कभी सोच भी नहीं था।
दिवाकर कभी भी अर्जुन का साथ नहीं छोड़ना चाहता था। एक-दो दिन के बाद ही उसे लगने लगा की वो अपने दोस्त के बिना नहीं रह सकता इसलिए उसने भी अर्जुन के साथ ही नॉन मेडिकल साइंस में एडमिशन लेने के लिए कहा ।
अर्जुन ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की यदि उसकी रुचि इसमें नहीं है तो सिर्फ हमारी दोस्ती के लिए आर्ट्स को मत छोड़ो ।लेकिन दिवाकर मानने को तैयार ही नहीं था अर्जुन के साथ ही नॉन मेडिकल साइंस में एडमिशन ले लिया ।
दोनों दोस्त अब फिर से पहले की तरह एक साथ स्कूल जाने लगे, एक ही क्लास में एक ही बेंच पर बैठने लगे। अर्जुन हमेशा पढ़ाई में दिवाकर की मदद करता।
11वीं कक्षा में दोनो दोस्तों ने मिलजुल कर पढ़ाई की हमेशा अर्जुन दिवाकर को मैथ्स-साइंस समझाता और एक-दूसरे की मदद से दोनों ने 11वीं की परीक्षा पास कर ली, दिवाकर बिल्कुल पॉइंट्स से पास हो पाया लेकिन हो गया ।
परन्तु अब 12वीं कक्षा जोकि बोर्ड की परीक्षा थी दिवाकर परीक्षा में फेल हो गया।
उसने फिर से वही एग्ज़ाम दिए लेकिन वह फिर से फेल हो गया।
अर्जुन अच्छे अंकों से पास होकर कॉलेज में चला गया लेकिन दिवाकर वहीं स्कूल में रह गया ।
अब उसे अपनी उस भूल का पछ्तावा हो रहा था जिसके कारण उसने अपनी ज़िन्दगी के तीन अनमोल साल बर्बाद कर दिए। अब उसे लग रहा था की उसने अपने पसंदीदा विषय कओ छोड़कर कितनी बड़ी गलती की है, शायद वह उसमें कुछ बहुत अलग और अच्छा कर सकता था।
अर्जुन के समझाने के बावजूद भी उसने नोन-मेडिकल में दाखिला लिया।
अगर उस वक्त उसने अपने करियर को प्राथमिकता दी होती तो आज उसके साथ ये सब ना होता और उसे भी सफलता मिलती जिस विषय में उसकी रुचि थी।
अब उसे लग रहा था मानों उसने खुद अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार ली हो अब उसके पास सिवाय पछ्तावा करने के और कुछ नहीं था जो वक्त चला गया अब वो वापिस नहीं आ सकता था।