सर्दी का कहर

सर्दी का कहर

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बेरहम ये सर्दी भी क्या कहर बरसा रही है। ठंड से ठिठुर रही वह गरीब बच्ची किस कदर कंपकंपा रही है। 

सड़क के एक किनारे पर अपने दो छोटे भाइयों के साथ पेट की भूख से पीड़ित आने-जाने वालों पर टकटकी नज़र लगाए है कि शायद कोई उसे दो रोटी और कपड़ा ही दे दे तो इस कोहरे से थोड़ा तो आराम मिलेगा। 


मिट्टी से सने मैले-कुचैले कपड़े, पाँव में चप्पल नहीं, उलझे से उसके बिखरे बाल, दुबली पतली सी मानो कई दिनों से खाना ना खाया हो। पलकों को बार-बार झपका कर उम्मीद भरी नज़रों से बस मेरी ओर देख रही थी। मैं गाड़ी से उतरा और उसकी तरफ जैसे ही बढ़ा तब उसके चेहरे की वह भोली-सी मुस्कान जो शायद इस उम्मीद में थी कि मैं उसकी कोई मदद करूँगा। मेरे पास उस वक्त कुछ नहीं था तो मैंने अपना कोट उतारा और उस बच्ची को थमाते हुए कहा - “बेटा यहाँ सड़क पर तुम क्यों बैठी हो घर जाओ ठंड बहुत है।” मैं अभी पूरा बोल भी ना पाया था कि अचानक एकाएक करके उसकी आंखों से मोती जैसे अश्रु गिरने लगे।


मैं कुछ समझ ही ना पाया और उसे गले से लगा लिया तब चुप कराते हुए उससे रोने की वजह पूछी तो उसने बताया की, एक सड़क हादसे में उसके माता-पिता जोकि सड़क निर्माण में मजदूरी का कार्य करते थे, एक हादसे में दोनों की ही मृत्यु हो गई और अब इसीलिए उसे भीख माँग कर अपना और अपने भाइयों का गुजारा करना पड़ रहा है।


यह सुनकर जैसे कलेजा भर आया हो, आँखें नम हो गई और मैंने उन तीनों बच्चों को अपने साथ लिया और अपने एक दोस्त के अनाथ आश्रम में ले गया। जहाँ उनकी अच्छे से देखभाल हो सके, उन्हें अच्छे कपड़े दिलाए और पास के ही एक स्कूल में एडमिशन करा दिया, ताकि उनका एक अच्छा भविष्य बन सके।


आज भी वह सर्दी की रात याद कर आँखें भर आती है, लेकिन साथ ही दिल को एक सुकून भी है कि ठंड के उस जानलेवा कहर से किसी की जान बचाकर इंसानियत के नाते थोड़ा ही सही पर कुछ तो अच्छा कर पाया...।


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