पछतावा के आंसू
पछतावा के आंसू
मेरे मोहल्ले में रहने वाले शर्मा जी की पत्नी का स्वभाव बड़ा ही मिलनसार था। हमेशा दूसरों के मदद के लिए तैयार रहती। उनके दोनों बच्चे बड़े हो गए थे इसलिए आसपास के बच्चों के साथ उनका बड़ा मेल मिलाप रहता था। उन बच्चों के साथ शाम में खेलकर खूब खुश हो जाया करती थी।
उन्हीं के पड़ोस में रहने वाले सिंह साहब थोड़े दबंग, अड़ियल और मक्कार किस्म के व्यक्ति थे। अपने पद और अधिकार का दबदबा बखान कर सब को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहते थे। उनकी पत्नी की बातों से भी घमंड टपकता रहता। एक दिन दोपहर में उनका फोन आया बोलने लगी- "आपको तो पता है न मेरे बगीचे में कितने रंग बिरंगे फूल और सुंदर सुंदर पौधे हैं। आज सुबह शर्मा जी की पत्नी ने मेरे बगीचे से कुछ फूल तोड़े और कुछ पौधों की टहनी तोड़ कर ले गई।" मैंने कहा- इसमें कौन सी बड़ी बात हो गयी। हम सब आपस में पौधों का लेनदेन तो करते ही रहते हैं। आपने भी तो आसपास के इलाकों से कई पौधों की टहनी तोड़कर अपने बगीचे में लगाए हैं। पर उन्होंने शिकायत करते हुए शर्मा जी की पत्नी के बारे में कई ऊलजलूल बातें करनी शुरू कर दी। मेरा मन बड़ा कसैला हो गया। ये वही दंपत्ति है जिनके बच्चों की देखभाल शर्मा जी की पत्नी ने कोरोना के समय अपने बच्चे की भाँति की थी और आज ये.....। बात यहीं खत्म हो जाती तो ठीक था पर उन्होंने तो मुहल्ले के कई लोगों को शर्मा जी की पत्नी की शिकायत करनी शुरू कर दी। मैंने मिसेज शर्मा से इस बारे में बात करना ही उचित समझा। शाम को उनके पास जाकर सारी बात बताई। मेरी बात खत्म होते-होते उनकी आँखों से आंसू बह निकले। उन्होंने बिना किसी को कुछ बताए नर्सरी जाकर गुलाब, मोगरा और ऐसे न जाने कितने फूलों के पौधे खरीद कर सिंह साहब के घर जा कर देते हुए उनसे क्षमा मांगी और मन ही मन संकल्प किया कि अब वह दोस्ती में कुछ दूरियां रखेगी क्योंकि ऐसे लोग किसी की दोस्ती को निभा नहीं सकते। इतनी छोटी छोटी चीजों के लिए जिन्हें अपनों के भावनाओं की परवाह नहीं वे किसी के भी दोस्त नहीं हो सकते। मैंने उनकी आंखों में पछतावा के आँसू देख लिए थे जिन्हें वह बड़ी चतुराई से छुपाना चाहती थी। आज सिंह साहब के परिवार ने एक सच्चा दोस्त और हमदर्द खो दिया था।
