मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Tragedy

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Tragedy

पौष की सुबह

पौष की सुबह

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पौष की सुबह थी। दो दिन पहले ही भारी कोहरे के बीच भीषण बर्फबारी व ओलावृष्टि हुई थी। परंतु आज सूर्यदेव बादलों के बीच से कभी-कभी दर्शन दे रहे थे। वो अपने खेत की मेड़ पर बैठा एक टक खेत को देखे जा रहा था। 


दो दिन पहले तक खेत हरा-भरा, लहलहा रहा था, लेकिन आज उजड़कर सपाट मैदान हो गया था। उसकी फसल को आवारा गौ एक रात में ही चट कर गईं। वैसे वह रात- दिन खेत पर ही रहकर खेत की रखवाली करता था, पर दो दिन से मौसम जानलेवा हो गया था, इसलिए उसने घर पर रहना ही ठीक समझा।


खेत के उजड़े दृश्य को देखकर उसका हृदय रो रहा था। उसे एक- एक पल याद आने लगा। कैसे उसने महंगा खाद- बीज साहूकार से ब्याज पर पैसे उधार लेकर खरीदे थे। उस समय बाजार में खाद की कालाबाजारी चरम पर थी, इसलिए तिगुनी कीमत पर उसने खाद खरीदा था। हाड़ तोड़ ठंड में फसल सींची थी। डीजल महंगा होने से ट्रैक्टर की दोगुनी जुताई भी दी थी। इन विदेशी नस्ल के सांडों और गायों ने उसका सत्यानाश कर दिया।


वो पिछले पांच साल से कभी खेतों पर कटीले तार लगाता है तो कभी झोपड़ी डालकर चौबीसों घंटे वहीं चौकीदार बन कर खड़ा हो जाता है। लेकिन जैसे ही मौसम अपना रौद्र रूप दिखाता है, तब कुछ समय के लिए उसे मजबूरन खेत छोड़ना पड़ता है और फिर आती है एक दु:खद संदेश लेकर पौष की सुबह...।



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