पाँच सौ के दो नोट
पाँच सौ के दो नोट
एक स्मृति : आठ नवम्बर, २०16
सारांश: गैस विहीन गुब्बारे सा वह ज़मीन पर पसर गया। 'तो क्या कल यह नोट मर जाएगा ? '
निराशा से भरे छन्नू ने कल्लू से पूछा।
आठ नवंबर रात्रि नौ बजे। छन्नू के कच्चे मकान से निकलती भुनें मसाले व चिकन की सौधी तीखी खुश्बू से बाहर बैठे ननकू के मुंह से रह रहकर लार टपक रही थी। पैसे वाले ताऊजी के यहॉ एक बार उसने सालन खाया था। किंतु मुनिया इस स्वाद से अपरिचित थी। इस महक से उसे उबकाई आरही थी। दो बार अंदर जाकर वह माँ को झांक आई थी। इतनी तन्मयता से मां पहली बार ' कुछ ' पका रही थी।
मोदीजी की कृपा से कुछ समय पहले ही उन के घर रसोई गैस आ गई थी। छन्नू की घरवाली एक तरफ चिकन दूसरीतरफ बड़े वाले चावल बिरयानी के लिए पका रही थी। उसे ब्याह के बाद दूसरीबार यह सौभाग्य मिला था। पहली बार। उसने ब्याह के दूसरे दिन चिकन पकाया था।
छन्नू के पैर जमीन पर नही पड़ रहे थे। उसका जीवन सफल हो गया था। जमींदार मालिक ने आज। साढ़े आठ बजे पाँचपाँच सौ के एक नही पूरे दो नोट थमा मर उसे खुद शाबाशी दी थी और कहा - ' हम तुम्हारी सेवा से बहुत खुश हैं। जा। ऐश कर - I
छन्नू ने जिदगी में पहलीबार ' पाँच सौ ' का नोट हाथ से छुआ था। नोट लेतेसमय उसके हाथ कंप- कंपा रहे थे। घर आतेसमय वह मंडी से चिकन लेता आया था।
मुनिया की माँ ने चिकन मसाला पाऊच ' के लिए मुनिया को बोला तो छन्नू ने कहा '' रहने दो, मैं ही ले आता हूँ ' वापसी में 'रबड़ी ' लेता आऊँगा। कल ननकू के सकूल की डरेस व कॉपी किताब भी ले लेंगे।
छन्नू भागता जा रहा था तभी पीछेसे। पड़ोस में रहने वाले कल्लू ने धौल जमायी। छन्नू ' ! आज। तुम्हारे घरसे बड़ी महक आरही थी। कोई लॉटरी निकली है क्या? टोह लेते कल्लू ने उसकेमन में सेंध मारी। छन्नू सीधा आदमी था. सारी बात सच-सच बता दी। ठहाका लगाते हुए कल्लू ने छन्नू को नोटबंदी की खबर बतायी जो अभी गॉव में फैली न थी। छन्नू के फुलेमन से सारी हवा निकल गयी. गैस विहीन गुब्बारे की भाँति वह ज़मीन पर पसर गया। ' तो क्या कल यह नोट मर जाएगा ?। ' निराशा से भरे छन्नू ने कल्लू से पूछा।
' और क्या ' ( कल्लू ने बड़ी चालाकी से नोट बदल कर बैंक से रुपये मिलने की बात छिपा ली। ) चलो, इस नोट से अभी मज़ा लेलें। मायूस। थके छन्नू के कदमों को कल्लू ' ताड़ी खाने ' की ओर मोड़ गया। छन्नू ने कच्ची शराब जी भर कर पी और पिलाई। नशे में चूर हो वह देख रहा था ' - - उसके अच्छे दिन आ गए हैं। मुनिया की माँ नई साड़ी पहने दिवाली के दिए जला रही है। मुनिया पटाखे जला रही है ' ननकू सकूल में पढ़ रहा है ---।
मुनिया की माँ दो घंटे से इंतजार कर रही थी, छन्नू का कोई पता न था, तीन बार ननकू खाना मांग चुका था, मुनिया को नींद आरही थी। अन्ततः उसने चिकन मसाले के बिना बनी जायकेदार चिकन ननकू को परोस दी। मुनिया बेमन से रुखे चावल खाकर सो गयी। उसने सब कुछ ढाँक कर किवाड़ उढ़का दिए। कहीं बिल्ली न आ जाए।
मुनिया की माँ ननकू के पास ही ज़मीन पर बिछौने पर बैठ इंतजार करती। करती सो गयी।
प्रातः छः बजे। दरवाजे पर हॉ हल्ला सुन। ऑखें मलते हुए हड़बड़ा कर किवाड़ खोला। बाहर कुछ लोग छन्नू को चारपाई पर लिए खड़े थे। कल्लू रोता जा रहा था ' सब उसकी गलती है लेकिन एकबार शुरू करने के बाद छन्नू माना ही नही। बार बार कहता था। वह। नोट को बर्बाद न होने देंगा। स्वर्ग का सपना देखते देखते वह स्वर्ग सिधार गया।
'पाँच सौ का नोट' अभी भी छन्नू की ज़ेब में जिन्दा था।