पागल औरत
पागल औरत
तान्या (बेटी)की शादी के बाद की रस्में निभाईं जा रही थी। "दीप्ति तुमने लड्डू गोपाल तान्या की गोद में रखने है। यहां सामान में मुझे नहीं दिख रहा। कहाँ रख दिया ?" दीप्ति की सास बोली।
"अरे, वो तो मैंने मन्दिर में ही रखे हैं। अभी लाती हूँ, दिमाग से ही निकल गया।" दीप्ति हड़बड़ाते हुए बोली।
"दीप्ति सच में तुम बहुत बड़ी पागल हो, बार बार बताने पर भी कोई काम सही से कर लो तो दुनिया इधर उधर ना हो जाये।" विभु (पति) ने आदतन बोला।
"तुम तो पागल हो, कुछ भी बोलती हो।"
"बेटा मममा तो पागल है।"
"माँ ये तो पागल है, कुछ नहीं पता इसे, आप सिखाओ कैसे करना हैं इसे। "
दीप्ति जैसे इन डायलाॅग को सुनने की आदी थी। आज भी वो बस हल्के से मुसकुराते हुए मन्दिर की तरफ बढ़ने लगी। तान्या के ससुराल वाले, अपनी रिश्तेदारी के लोग सभी वहां खड़े थे, जो विभुजी के डायलाॅग की प्रतिक्रिया अलग अलग तरीके के मुँह के हाव भाव बनाकर दे रहे थे। तान्या के चेहरे पर असमंजस का भाव साफ दिखाई दे रहा था। माँ को पिता का सबके सामने इस तरह सम्बोधित करना उसे पसंद नहीं आ रहा था, लेकिन एक नई दुल्हन होने का बंधन उसको कुछ ना कहने की कोफ्त से भर रहा था। तभी दीप्ति सजे हुए लड्डू गोपाल सामने से लाती हुईं दिखी। तान्या के विदाई के आंसू और पिता की कही गयी बात के भाव मिलकर उसके आंखों से बहने लगे। विक्रम (विभु जी का दामाद) तान्या को बहुत देर, से देख रहा था, अचानक बोला "माँ, आपने कितने सुन्दर सजाये है। ऐसा लग रहा है जैसे हमारे घर जाकर यह हमारे घर को भी आपके घर की तरह वृंदावन बना देंगे। पापा आप ने तो थोड़ी सी बात पर इन्हें पागल कह दिया, लेकिन कमाल की बात है कि इन्होंने आपके घर को पागलखाना नहीं बनाया आज तक, मुझे तो सब ठीक ही लग रहे हैं। "उसके यह कहते ही सभी हंसने लगे।
"अरे, दामाद जी आप कितना सटीक मजाक कर लेते है।" कहते हुए विभु जी विक्रम के कंधे पर हाथ रखते हैं।
"बस ऐसा ही अंदाज है मेरा, पापाजी की बात भी हो जाये और बुरा भी ना लगे। हमारे पूरे घर को एक पैर पर खड़े होकर संभालने वाली, छोटी छोटी बातों पर पागल कैसे हो सकतीं है? अगर वो घर नहीं संभाले तो शायद हम पागल हो जायेंगे। "कहते हुए विक्रम हँस दिया, विभुजी को विक्रम की बात, का मर्म समझते देर नहीं लगी। तान्या को विक्रम की बातों में उसके खुशहाल जीवन की तस्वीर दिख रही थी। दीप्ति अपनी बेटी की विदाई के आंसुओं में भी एक संतुष्टि का अनुभव कर रही थी कि उसकी बेटी को एक ऐसा जीवनसाथी मिला है, जो उसकी बेटी के मन के भावों को बिना कहे समझता भी है, और उसे पता है कि औरत को प्यार से भी ज्यादा उसका सम्मान प्यारा होता है। तान्या को कार में बैठाकर उसकी गोद में लड्डू गोपाल देते हुए दीप्ति भावुक तो थी ही "मैंने आपको बेटी दी है, लेकिन भगवान ने मुझे आपके रूप में संस्कारों से पूर्ण बेटा दिया हैं। आप दोनों का जीवन हमेशा खुशियों से भरा रहे।" कहते हुए उन्होंने विक्रम के सर पर प्यार से हाथ फेरा।
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