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Smita Singh

Tragedy Inspirational

4  

Smita Singh

Tragedy Inspirational

रजस्वला

रजस्वला

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"क्या सुमि हर तरफ सामान बिखरा पड़ा है तुम्हारा।कम.से कम.समेट तो लिया करो।"राहुल ने सुमि के बैड से कपड़े उठाते हुए कहा।


"कर लूंगी यार ,अभी कुछ मत बोलो।अभी पेट में बहुत जोर से दर्द हो रहा है।"कहते हुए सुमि पेट को कसकर पकड़ते हुये लेट गयी।


"अब ये तो तुम्हारा हर महीने का है।पहले तो तो घर ऐसा नहीं रहता था।अब ये देखो सैनैट्री पैड भी यही पड़ा है।कम से कम यह तो रख लो।अभी बच्चे आ गये तो।"सुमि की तरफ देखते हुए "ठीक है दर्द है,लेकिन ये ऐसी चीजें तो अलमारी या बाथरूम में रख सकती हो कि नही। "राहुल ने एक अजीब सी टोन में बात की।


"यार ,तुम्हें क्या पता कि कितना दर्द होता है?हमारा कमरा है अगर कभी बिखरा भी रह गया तो कौन सी आफत आ जायेगी?वो पैड अभी थोङी देर पहले निकाला था बदलने को लेकिन अभी बाथरूम तक पहुंची नही,जो बदल लू।बच्चे देख लेंगे,तो क्या हुआ?बड़े हो गये है,सैक्स एजुकेशन जमाने के बच्चे है वो क्या उन्होने पीरियड के बारे में नहीं पड़ा होगा उन्होने।सच में कभी कभी तो इतना दर्द होता है कि मन करता है ,कमर के नीचे का हिस्सा 5 दिन के लिए काटकर कहीं रख दू।"सुमि जैसे अपने दर्द को राहुल को बताने का प्रयास किया।


"अब ये तो कोई नयी बात है नहीं ,किसी औरत के लिए। लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि घर को भी सड़ा के रख दो।अच्छी आफत है ये हर महीने की ।"राहुल चिड़चिड़े अंदाज में बोला।


"सही कहा अच्छी आफत है,लेकिन तुम्हारी नहीं हमारी।तुम आदमी,घर ,साफ सफाई, खाने पीने से कहा बाहर आ पाते हो ,औरतों के मामले में।किसी औरत के लिए तो बड़ा आसान है ,हर महीने इस दर्द से गुजरते हुए भी सब कुछ नार्मल तरीके से करना।पांच दिन उन्हे तो उतना ही तो दर्द होता है जितना किसी आदमी को एक दिन पेट में मरोड़ उठने से होता है,जब वो दिन भर पेट पकड़कर बिस्तर पर लेटा रहता है।उतनी ही विकनैस होता है जब आप लोगो को,एक दिन बुखार आ जाये,और विकनैस का गाना दस दिन तक चलता रहे।पैरो में सिर्फ उतनी ही ऐंठन आती है ,जितनी जाड़ो में आपको ठंड लग जाने से,दर्द होता है ।लेकिन क्या फर्क पड़ता है ,हम औरतें है हमें तो,आदत होनी चाहिए दर्द से जूझने की ।हमें तो हर महीने वो,दर्द झेलने पड़ते है जो,तुम्हे मौसमी होते है।कभी सोचकर देखो जिसे तुम आफत कह रहे हो,इस पीरियड की वजह से ही हर आदमी का अस्तित्व है,इस दुनिया में।थोङा घर ठीक नहीं हुआ तो तुम्हें ये पीरियड आफत लगने लगा ,तो सोचो हम इस आफत से,हर महीने कैसे डील करते होंगे ?वो भी मुस्कुराकर, चलते फिरते।हमारे मन और शरीर की हालत ,तुम्हारे घर की हालत से कहीं ज्यादा बदतर होती है,लेकिन फिर भी हम किसी से कुछ नहीं कह पाते।"कहते हुए सुमि अपने कपड़े अलमारी में यूं ही,ठूंसने लगी।राहुल जड़वत कुछ सोचता है "सुमि छोड़ दो ,तुम आराम करो,कमरा ही तो है,चार दिन ऐसे ही पड़ा भी रहेगा तो क्या?मुझे,टाईम मिलेगा तो मैं ठीक कर दूंगा।"सुमि का हाथ पकड़ते हुए "तुम लेट जाओ, मैं हल्की चादर देता हूं ,तुम्हें ओढने के लिए। "कहते हुए राहुल सुमि को चादर उड़ाता है,साॅरी के लिए जगह नहीं थी,क्योंकि वो जगह अब समझदारी ले रही थी।


दोस्तो, यह स्थिति हर.महीने की हर औरत के साथ है,लेकिन हमें अपनी परेशानिया छुपाने की ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है कि हमारी परेशानियां बड़ी आसान ,और यूं ही होने वाली बात मान ली जाती है।इसमें पुरूषों की कोई गल्ती नहीं है ,क्योंकि अधिकांशत:उन्हें औरत के पीरियड के बारे में पता होता है लेकिन उससे जुड़े तथ्यों का कोई अनुमान नहीं होता है।हमे एक औरत होने के नाते अपनी परेशानियों को व्यक्त करना ,और अपनी आने वाली पीढियों को इससे जुड़ी जानकारी और अनुभवों को शेयर करना आना चाहिए, बिना यह सोचे कि इसे सिर्फ अपने बच्चों में लड़की को ही बताना चाहिए।



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