त्रिशंकू
त्रिशंकू
काश तुम समझ पाते कि, कितना मुश्किल होता है? किसी औरत के लिए, जब उसका पति कहता है कि निकल जा मेरे घर से। एक पल में ऐसा लगता है कि जैसे हम उस घर में सालो से क्या कर रहे है? जिसमें हमारा स्थान है ही नहीं, जो कभी भी छीन सकता है। "रूपा कभी चादर बिछाती, कभी किसी चीज को इधर उधर रखती हुए बड़बड़ाती जा रही थी, जैसे उसका मन भावनाओं के उन्माद से फटा जा रहा था।
"अब क्या बोलती ही रहोगी? निकल जाता है गुस्से में मुंह से। अभी अभी तो सल्ला हुई है हमारी, कही फिर कुट्टी ना हो जाये। "कहते हुए रोहित ने रूपा को मजाक में जैसे सचेत करते हुए कहा।
"वही तो तुम जो ये, मजाक का मुखौटा पहनकर नश्तर से चुभोते हो ना । सच में ऐसा लगता है कि, इससे तो शादी ही नहीं कि होती अच्छा होता । कम से, कम ये सब सुनना तो नहीं पड़ता। "रूपा ने रोहित की तरफ देखते हुए कहा।
"ठीक है, अब ज्यादा मत बोलो। जाकर एक कप चाय बना लो। गुस्से में कही बातों को लेकर बैठ जाती हो। हो, जाता है, कौन सा तुम घर छोड़ के जाने वालों में से हो। "रोहित ने एक बार फिर जैसे अपनी कही बातों को बिना किसी अफसोस के दरकिनार करते हुए कहा।
"शायद तुम्हें इसी बात का भरोसा है कि मैं, कहीं नहीं जाऊंगी। अगर चली गयी तो, अब तुम गुस्से में घर से निकल जाओ वाली बात कई बार बोलते हो, क्या पता? कभी मैं भी सिर्फ गुस्से में होऊँ और बिना कुछ सोचे चली जाऊं तो। "रूपा ने रोहित की बात का प्रत्युत्तर देते हुए कहा।
"पागल हो क्या? कुछ भी । कहां जाओगी? ये सब तो चलता रहता है । "कहते हुए रोहित ने रूपा का मुरझाया हुआ चेहरा देखा, "अच्छा चलो हो गया ना, कभी गुस्से में जाओ तो मायके चली जाना सीधे, तुम्हें तो मजा ही आ जायेगा, जब तक गुस्सा चलेगा तब तक मायके रहने का मौका मिल जायेगा। "रोहित अभी भी जैसे रूपा के मुरझाये चेहरे के पीछे का, दर्द नहीं समझ पा रहा था।
"काश इतना आसान होता, जितना तुम्हारी भाषा में लग रहा है। तभी तो कह रही, थी तुम नहीं समझोगे। तुम्हें क्या पता जिस घर में जन्म से लेकर अपनी जिंदगी के बेहतरीन, नाजों से पल बिताये हो उसे छोड़ना कैसा होता है? जिन्होंने जन्म दिया, उन्हें एक अनजान घर के लिए छोड़ना कैसा होता है? कितना दर्द, कितनी बेचैनी भरी रातें, कितना डर कि पता नहीं जहां जा रहे है, उस घर में निभ जायेंगे कि नहीं। उस पर शादी कि हर रस्म को, मुस्कुराकर निभाना। कही मां बाप हमें रोता देखकर खुद ना टूट जायें, इसलिए उनके सामने शादी कि चल रही तैयारियों में अपने को मसरूफ रखना, कभी कभी तो,चीखकर रोने का मन करता है, फिर भी मन को यही समझाते है कि मां ने बचपन से ही यही कहा है कि, यहां तुम अमानत हो तुम्हारी ससुराल तुम्हारा अपना घर है यही सोचकर सब छोड़कर एक इंसान के भरोसे चले आते है। फिर पता चलता है कि वो घर भी अपना नहीं है, वो तो पति का है। सही बात है जब अपना है ही नहीं तो कभी भी निकाला जा सकता है। रही बात मायके, की वो तो उस दिन ही पराया हो जाता है जब आपकी शादी तय होती है, हर बात पर सब कहने लगते है कि अब अपने घर जा रही हो, वही करना सब कुछ। शादी के बाद जहां लड़की की औकात एक मेहमान से ज्यादा नहीं होती वहां वो पति के निकालने पर, या गुस्सा होकर जाने पर तो, अपने मां बाप को ही भारी लगने लगती है। हमारी हालत तो त्रिशंकू जैसी है, ना आसमां के ना धरती के। बस लटकते रहो, अपने बर्दाश्त करने वाली मजबूत रस्सी से। क्या कहे? हम तो गुस्सा भी नहीं हो सकते क्योंकि उस पर फिर से लड़ाई होने का डर दिखा दिया जाता है। कभी अपने दिल में हमारी स्थिति को महसूस करके देखो, तुम आधा दिन भी नहीं बिता पाओगे और हम अपनी सभी बातों को मन में रखकर अपना पूरा जीवन एक पराये घर, पराये लोगों के बीच बिता देते है। "कहते हुए रूपा रोते हुए किचन की तरफ चाय बनाने चली गयी, दुपट्टे से आंसू पोंछते पोंछते, दराजों में चाय का बर्तन ढूंढने लगी। रोहित कमरे के दरवाजे पर खड़े होकर रूपा को एकटक देख रहा था, जैसे उसे इस औरत मन की गहराई में छिपे भावों ने बेचैन कर दिया हो।
"ये लो चाय पी लो फटाफट, फिर आपको काम से कही जाना था ना। "रूपा मुस्कान लिए रोहित के सामने खड़ी थी।
"साॅरी यार, मैं तो कुछ भी बोल देता हूं। अगली बार मैं कुछ भी ऐसा बोलूँ ना तुम मुझे बाहर निकाल देना। यह घर तुम्हारा है, सिर्फ तुम्हारा। "कहते हुए रोहित ने रूपा के हाथ से चाय की ट्रे एक तरफ रखते हुए उसे गले लगा लिया।
दोस्तों,
कई बार औरतें इस त्रिशंकू वाली स्थिति से रूबरू होती है, हां एडजैस्टमैंट के नाम पर गृहस्थी चलती रहती है। लेकिन आपको नहीं लगता कि हमें एक औरत होने के नाते आने वाली पीढ़ी की सोच में "अपना घर" वाली सोच में बदलाव की आवश्यकता है।
