STORYMIRROR

Smita Singh

Inspirational

3  

Smita Singh

Inspirational

हम सभी ज्ञानी है।

हम सभी ज्ञानी है।

5 mins
185

क्या हुआ? बैग उठाकर, बच्चे को हाथ में लिये इतनी रात को कहां से आ रही है? दामाद जी कहां हैं? "बीनाजी ने भूमिका को दरवाजे से अंदर खींचते हुए कहा। बाहर की तरफ चिंतित होते हुए दूर सड़क तक नजर दौड़ाकर, हताशा भरी नजरों से भूमिका की तरफ देखते हुए सोफे पर बैठ गयी।

"अब बोलोगी भी कुछ? अब क्या करके आयी हो? "बीनाजी

आशंकित होकर बोलने लगीं।


"अरे बीना, तुम कुछ बोलने दोगी तभी तो बोल पायेगी ना। राशन पानी लेकर चढ़ गयी ऊपर उसके। लो बेटा पानी पीयो तुम। राहुल (भूमिका का बेटा)के लिए दूध की बोतल बना दूं। तुमने कुछ खाया है कि नहीं। "विशालजी ने भूमिका के सर पर हाथ फेरा।


"तुम इसकी गृहस्थी बनने मत देना कभी। "बीनाजी जोर से चिल्ला पड़ी। भूमिका अभी भी चुप थी, "तुम अच्छी तरह जानते हो कि, तुम्हारी लड़की कितनी नकचढ़ी है, मैं कुछ कहती थी, तो तुम टोक देते थे, एक ही लड़की है। दस बच्चे किसी के नहीं होते आजकल, एक ही लड़का होता है और एक ही लड़की। अब भुगतो...दामाद जी भी क्या सोचते होंगे ? हद होती है किसी बात की। तुम जो आश्वासन देते रहते हो ना कि कोई दिक्कत हो तो मुझे बताना। तुम्हारे लिए इस घर के दरवाजे हमेशा खुले हैं, और ये महारानी हैंं कि छोटी छोटी बात पर यहां आ जाती हैं। मैं सोचती थी कि बच्चा अपनी समझदारी के बलबूते पर पैदा किया होगा, लेकिन नहीं, अब उस दुधमुंहे बच्चे को भी लेकर पहुंच गयी। मैं कह देती हूं जी, आप इसे अभी इसके ससुराल छोड़कर आओगे। "कहते हुए बीना जी ने जग में से पानी लिया।

"मां, कभी कभी तो ऐसा लगता है कि आप मेरी मां हो ही नहीं। मैं नहीं जाऊंगी मयंक के पास , जब तक वो इस बात पर राजी नहीं होगा कि राहुल का पहला जन्मदिन हम किसी 5 स्टार होटल पर होगा, उसके घर पर लगे टैस्ट हाऊस के तम्बू में नहीं। "भूमिका ने अपने अड़ियल रवैये से जवाब देते हुए कहा।


"बस इतनी सी बात, हो जायेगा भूमि । मैं हूं ना, मैं भी तो नाना हूं , हमारा भी तो लाडला है राहुल। मैं कल दामाद जी से बात कर लूंगा , "विशालजी ने भूमिका को एक बार फिर प्रोत्साहित स्वर में कहा।


"मतलब, आज इस बात को लेकर दुखियारी बनकर आयी हो। कोई भी आदमी अपने बच्चे के लिये अपना बैस्ट देता है, अपनी पाॅकेट के हिसाब से। मयंक अपनी हैसियत में रहकर काम करने वाला इंसान है, उसने जो सोचा होगा , अच्छा ही सोचा होगा। अब तुम चलो आज मैं छोड़ने चलती हूं तुम्हें । अभी। "बीनाजी ने आदेशात्मक स्वर में भूमिका को देखा।


"कैसी बात कर रही हो बीना। सुबह चली जायेगी, तब तक दामाद जी भी नार्मल हो जायेंगे। मैं ही अपने हिसाब से सुबह बात कर आऊंगा, और भूमिका को छोड़ भी आऊंगा। "विशालजी ने बीना को टोकते हुए कहा।


"यही सब कहकर तुमने इसके दिमाग खराब कर रखे हैं। आज हमारे बेटा बहु भी, सिर्फ इसकी बात बात पर लड़कर यहां आने की आवत जावत से, और तुम्हारे बेटी मोह के आगे हताश होकर हमारे साथ नहीं रह पा रहे हैं। तुम्हें नजर आ रहा है या जानबूझकर आंख बंद करकर बैठे हो। अगर यही सब हमारी बहु करती तो , क्या हमारे बेटे बहु के बीच अलगाव नहीं होते, उनकी छोड़ो क्या हमारे बीच नहीं हुये , एक बार बताओ कि मैं अपने मायके गयी, लड़ झगड़कर। मैं तो अपने मां बाप की इकलौती लड़की थी। क्या वो प्यार नहीं करते थे मुझे? हद हो गयी। "कहते हुए बीना जी ने भूमिका का बैग उठा लिया।

"नहीं मां , मैं नहीं जाऊंगी। जब तक मयंक मेरी बात मानकर मुझे लेने नहीं आयेगा। "भूमिका अभी भी अपने अड़ियल स्वभाव से ऊपर नहीं उठ पायी थी।


"क्यों ? हर बार मयंक ही क्यों? तुम्हारे साथ शादी करके वो कर्जदार हो गया हमारा। अब सुनो भूमिका, शादी ब्याह कोई बच्चों का खेल नहीं है। तुम समझदार हो, शादी की जिम्मेदारी उठाने के काबिल हो, तुम्हारी इच्छा जानने के बाद ही हमने तुम्हारी शादी कि, कई रिश्तों की खोजबीन के बाद। मैं कभी ये नहीं कहूंगी कि तुम समझौते करो, या गलत बातों को सहन करो। लेकिन मैं ये जरूर कहूंगी कि रिश्तों को सम्मान देना सीखो, अपने रिश्तें में समानता का भाव रखो, दबाने का नहीं। तुम्हारे पापा तुम्हें प्यार करते है इसका ये मतलब ये नहीं है कि तुम रिश्तों को इज्जत देना भूल जाओ। मयंक के मां बाप भी उससे बहुत प्यार करते है, तो क्या कभी वो तुम्हें छोड़कर उनके पास गया। आज के बाद तुम इस घर में तभी कदम रखोगी जब दामाद जी तुम्हारे साथ होंगे। तुम दोनों के बीच जो भी वैचारिक मतभेद है उन्हें स्वयं सुलझाओ, गृहस्थी ऐसे ही चलती है। मेरे लिए अगर तुम मेरी बेटी हो तो मयंक भी बेटा है मेरा। मैं किसी एक की चिंता नहीं कर सकती। चलो"कहते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ी थी कि सामने मयंक खड़ा था।


"मम्मीजी , पापाजी प्रणाम। मैं भूमिका के पीछे ही आ गया था , आप लोगों से यह.कहने कि अब मैं भूमिका के नखरे नहीं सहन कर पाऊंगा, आप इसे अपने घर ही रखें। हां ....कहीं हद तक मैं आपको भी जिम्मेदार मानता था कि आपने उसे इतनी शह दे रखी है कि वो छोटी छोटी बातों पर लड़ झगड़कर यहां आ जाती है। लेकिन आज मैं मां आपकी बात सुनकर आश्वस्त हो गया कि आप अच्छे से गृहस्थी के मायने समझती हैं। भूमिका भी आज के बाद इस बात को समझ जायेगी , क्योंकि आपने अपने प्यार के ऊपर अपने विवेक को हावी होने दिया है। मैं आपसे वादा करता हूं कि मैं आपको अपनी तरफ से कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा। "कहते हुए मयंक ने भूमिका की तरफ देखा, भूमिका ने एक बार अपने पिता की ओर देखा जो आज शांत बैठे थे, शायद आज वो मां की हिदायतों में उसकी गृहस्थी की बसावट का आईना देख चुके थे। वो चुपचाप मयंक के साथ चल दी । बीनाजी भूमिका को जाता देख आश्वस्त थीं क्योंकि आज मयंक के पीछे उन्होंने जिद्दी, अल्हड़ और नखरीली भूमिका नहीं, एक परिपक्व पत्नी को जाते देखा था।

दोस्तों, आजकल के जमाने में गृहस्थी टूटने का मात्र कारण समझौते करना , नहीं करना नहीं है । बल्कि मां बाप का अपनी संतानों के प्रति प्यार से अधिक मोह है। हम उन्हें सही गलत , रिश्तों का सम्मान, उनका गौरव, उनकी समानता समझाना ही नहीं चाहते। हर कोई इस होड़ में जीवन जी रहा है कि हमारे बच्चे गलत नहीं हो सकते, सिर्फ सामने वाला गलत है। क्योंकि आज के पढ़े लिखे समाज में हम सभी ज्ञानी हैं वाला फार्मूला चलता है। ये कहाँ तक सही है? अपनी राय अवश्य दीजियेगा।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational