ससुराल
ससुराल
"क्या एक भुलावे में जिंदगी काट रही हो निया तुम भी,इस सबसे बाहर क्यों नहीं निकलती?जिस दिन सब जैसा है वैसा स्वीकार कर लोगी ना उस दिन खुद की जिंदगी पर अहसान करोगी तुम ।"शुभ्रा ने निया को झिड़कते हुए कहा।
"भुलावा,क्या ये उम्मीद करना गलत है कि जिन लोगों के साथ तुम अपनी जिंदगी बसर कर रहे हो ।वो,कभी तो आपसे प्यार से बात कर लें,कभी तो आप की किसी चीज से खुश हो जायें।कितना भी कर ले कोई, बहु कभी बेटी बन ही नहीं सकती।"निया ने शुभ्रा को अपने मन के भाव बताये।
"हां नहीं बन सकती कोई भी बहु बेटी,ना ही कोई सास ससुर उस बहु के लिए मां बाप तो गलत क्या है?वो क्या है ना सबसे ज्यादा प्रॉब्लम मुझे,लगता है कि तब से हुई है जबसे ये ससुराल को अपने मायके की तरह समझो,सास ससुर को मां बाप की तरह,नन्द को बहन,और भी ना जाने क्या क्या?तबसे ही रिश्तों में दरारें ज्यादा देखने को मिली है।क्योकि हम जो है नहीं ,उसको बनने की कोशिश में अपनी एनर्जी लगाते है,और जब थक जाते है ,तब शिकायत करनें लगते है।ये जो शब्द है ना,आपके उम्मीदों ,अपेक्षा के दायरों को भी अलग रूख दे देते है।अब देखों ना हमारी मम्मी के जमानें में ससुराल को ससुराल की नजर से ही,देखा जाता था।इसलिए उससे सम्बन्धित रिश्तों की समझ भी उसी अनुसार थी,पता था उन्हें सास है मां नहीं है हमारी जो हमारी गल्तियों को नादानी का नाम दे देगी।नन्द है बहन नहीं है जो लड़ाई झगड़े को,प्यार वाली नोंक झोंक का नाम देकर खत्म कर देगी।ससुर है पापा नहीं है जिन्हें अपनी बहु, बहुरानी (बिटियारानी) लगने लगेगी।बाकि छोड़ो यही बात हम पर भी लागू होती है ,हम भी कहते जरूर है लेकिन बेटी वाला किरदार हम.भी नहीं निभाते।वर्ना कभी अपने मां बाप की डांट डपट का ढिंढोरा पीटा बाहर जाकर, उनसे तो मार भी खा लेते थे।कभी अपनी बहन के लिए मुंह फुलाकर या बात किये बगैर रह लेते है हम चाहे कितनी भी कहासुनी हो जाये।नहीं ना ,तो मेरी मानों ससुराल को ससुराल ही रहने दो,इस बात को जितना जल्दी सहजता से समझ जाओगी उतनी ही सहज जिंदगी जी पाओगी।"शुभ्रा ने तर्कसंगत तरीके से समझाने की कोशिश की।
निया एकटक शुभ्रा को,देखती है,फिर कुछ देर बाद.."ह्म्म्म्म, सही है यार ,तुम्हारा ये तर्क ससुराल के काॅन्सेप्ट को लेकर तुमने दिया है,वाकई रिलैक्स कर देने वाला है।हां ससुराल है तो है,हम भी बहु है तो है,ऐसा सोचकर ही ऐसा लग रहा है कि जैसे जद्दोजहद ही खत्म हो गयी।ससुराल में तो शिकवे शिकायत कभी हमारी तरफ से कभी उनकी तरफ से होते रहते है,उनको दिल पर क्या लेना?वो भी वैसे ही रहेंगे,और.हम.भी,एक दूसरे के साथ एडजैस्टमैंट शायद इसे ही कहते है।थैंक्स शुभ्रा ,मुझे समझने और समझाने के लिए। "निया ने शुभ्रा की बातों का मर्म समझते हुए कहा।"चल अभी चलती हूं,अभी घर जाते ही सासु मां का फुला हुआ मुंह देखने को मिल जाये।"
"हां तो सासु मां है इतना हक तो बनता है उनका,...ससुराल को ससुराल ही रहने दो,मायके का नाम ना दो।"शुभ्रा एक पुराने गाने की लाइनों को अपनी बदली हुई लाइनों के साथ गाने लगी कि तभी,दोनों हंसने लगी,लेकिन आज निया की हंसी सहमी हुये नहीं बल्कि बेबाकी लिए हुए थी।
