Smita Singh

Inspirational

4.3  

Smita Singh

Inspirational

मातृत्व

मातृत्व

4 mins
254


रोहित मुझे कोई जगह चाहिए यहाँ बैठने को, मुझे शानू (3 महीने का, बच्चा)को दूध पिलाना है। तब से मिनमिन किये जा रहा है "अनुराधा ने सुमित को बोला, ही था कि सुमित उसे घूरने लगा।

"क्या? ऐसे क्या देख रहे हो? देखो इसका रोना अब ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकती। मेरी छाती से दूध गिर रहा है। प्लीज किसी से कुर्सी लेकर दो ना, ताकि मैं बैठ के पिला सकूं।" अनुराधा फिर बोली कि तभी सुमित इधर-उधर देखता हुआ खीझते हुए बोला "कमाल हो तुम यार, यहाँ हमारे आस-पास नजर घुमाकर देख तो लो, सभी छोटे बड़े खड़े हैं और तुम शानू को दूध पिलाना है बोले जा रही हो, तभी कहता हूँ कि कहीं आना जाना पड़े तो बोतल की आदत डालो इसे। तुम कभी जगह देखकर भी बोला करो। पागल सी हो जाती हो शानू रोने लगता है तो। थोड़ी देर रूको कोई जगह देख लूं जहां किसी की नजर ना पड़े।" सुमित आस पास कोनों की तरफ जाकर, कुछ देखने लगा ।

कुछ रिश्तेदार जो दोनों के नजदीक खड़े होने के कारण उन दोनों की बात सुन रहे थे। किसी की मुसकान, तो किसी के अनुराधा के देखते ही इधर-उधर देखने का अंदाज जैसे अनुराधा को अंदर तक कचोट रहा था जैसे उसने कोई ऐसी बात कह दी हो जो पहले किसी ने सुनी ना हो या आज से पहले ये सब देखा ही ना हो। यहां तक कि औरतों की मौजूदगी भी उसे यह अहसास दिला रही थी कि ऐसी बातें धीमी आवाज में की जाती हैं। अनुराधा ने सुमित की तरफ एक बार देखा और पास में कुर्सी में बैठी एक महिला से कहा "प्लीज, आप ये कुर्सी मुझे दे देंगी, मेरा बच्चे को भूख लगी है उसे दूध पिलाना हैं।" महिला ने एक पल को अनुराधा को देखा और फिर आस पास। जैसे कुर्सी से खड़े होते हुए वो उसे बता रही हो कि आस पास बहुत लोग बैठे हैं, आप को कहीं और जाकर बच्चे को फीड कराना चाहिए। ये समाज के बीच में बैठकर करने वाला काम नहीं है। अनुराधा उसके आशय को उपेक्षित करते हुए कुर्सी पर बैठी और अपने आँचल की ओट में शानू की भूख को तृप्त करने लगी। तभी सुमित सामने से उसे देखता हुआ लाल पीला मुंह बनाते हुए दबी आवाज में बोलने की कोशिश करता हुआ बोला "थोड़ा रूक नहीं सकती थी, उस खम्भे के पास लटके परदे के पास कुर्सी अरैंज करके आया था। ताकि उसकी ओट में ...बैठ गयी यहाँ पर गंवार कही की।"

"तब तो दुनिया की सारी औरतें गंवार है। मतलब हमारा बच्चा भूख से बिलख रहा है, उसे दूध पिलाना एक सामान्य काम है, जिसे तुम ऐसा बना रहे हो जैसे वो एक गुनाह है जिसे चोरी छिपे कर लो, समय देखो, जगह देखो। हद है सुमित।"अनुराधा झुंझलाते हुए बोली।

"देखो सब तुम्हारी इस हरकत, से हमें ही देख रहे हैं।" सुमित फिर वही कुछ तो लोग कहेंगे वाली तर्ज में बोला।

"देखो सुमित जब तुम जैसे पढ़े लिखे लोग ऐसी बात करते है तब ऐसा लगता हैं कि एक औरत तो बस परमिशन ही लेती रहें कि उसे कब कैसे क्या करना हैं ?यहाँ तक कि अपने बच्चे की भूख को शांत करने के लिये भी। मुझे जरूरत नहीं है किसी की परमिशन की कि मैं अपने बच्चे का ध्यान कैसे रखूँ? यह एक सामान्य प्रक्रिया है, इसे सामान्य ही रहने दें किसी औरत के लिए हर परिस्थिति को हवा बना के उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ना छीने। आपको शर्म आ रही हो, या जिसे भी शर्म आ रही हो वो थोड़ी देर आँखें बंद कर ले। उस खम्भे और मेरे आँचल की पारदर्शिता में कोई फर्क नहीं है, फर्क आपकी सोच का है।" कहते हुए अनुराधा ने शानू को गोद में दूसरी तरफ अपने आँचल तले अपनी छाती से लगा लिया। सुमित को शायद अपनी गलती का अहसास हुआ था वो अनुराधा की कुर्सी के पास वही खड़ा था, बाकि लोग भी अनुराधा के रवैये के बाद स्टेज पर चल रहे शादी के फंक्शन की तरफ अपनी रुचि दिखाने लगे, कम से कम लग तो ऐसा ही रहा था।

दोस्तों, ऐसी परिस्थिति कभी हमने अपने साथ या अपने आस पास जरूर महसूस की होगी। लेकिन हमें एक औरत होने के नाते अपने व्यक्तिगत मातृत्व सुख की अनुभूति के लिए क्या वाकई समाज या पति से विचार विमर्श की आवश्यकता होनी चाहिए ।मेरे ख्याल से तो नहीं, आपकी क्या राय है अवश्य बताएं ।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational