सोच...
सोच...
तुम भी ना रोज बीमार ही रहती हो। इतना डाक्टर को दिखाती हो, काउंसलिंग के पास जाती हो। फिर तुम पर कोई असर क्यों नहीं होता, समझ ही नहीं आता।" देव्यानी अपनी दोस्त राधा से बोली।
"पता नहीं यार, तू देख ना डाक्टर, काउंसलिंग, जिम एक्सरसाइज सभी तो ट्राय कर लिया, अच्छा कमाल तो देख चैकअप रिपोर्ट भी सब सही आती है। पता नहीं किसकी नजर लगी है कि रोज बीमार सा फील करती हूं।" राधा ने सकुचाते हुए कहा।
"ह्म्म्म्म..बीमार तो रहोगी ही, ना कहीं आना ना जाना, ना ही खुद से कभी किसी को बुलाना। ना हंसना ना बोलना, बस अपने ही मैं मग्न सी रहती हो। कितनी बार तुम्हें बुलाते है कि आज सोसायटी में कुछ प्रोग्राम है, आज दोस्तों में चाय पानी का प्रोग्राम है, चलो आज पार्क में टहलने चलते है। लेकिन मजाल है, जो आप इस घर की चारदीवारी से बाहर निकलने की सोचो।" देव्यानी ने राधा को जैसे कुछ दिखाने की कोशिश की।
"इससे क्या होगा? जब मन ही परेशान हो तो, कुछ अच्छा नहीं लगता।" राधा फिर मुरझाए स्वर में बात करने लगी।
"क्यों परेशान है तुम्हारा मन? तुम्हारी मैडिकल रिपोर्ट ओ के है, तुम घर से वैल टू डू हो। पति से कोई शिकायत नहीं, बच्चों से कोई शिकायत नहीं। कोई लम्बा चौड़ा परिवार नहीं। फिर क्यों परेशान हो ?मैं बताती हूं, तुम खामख्वाह खुद से परेशान हो, क्योंकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य हमेशा एक्सरसाइज या मेडिसन के दम पर नहीं बनता। ये बनता है हमारी सोच, उस सोच के साथ जीने के अंदाज, आपके आस पास के माहौल, के हिसाब से। हमेशा दवाईयां ही काम नहीं आती, कभी कभी हंसना बोलना, ठहाके लगाना, एक दूसरे से बात करना, ये सब भी दवाइयों से बेहतर इलाज करते है। तुम्हे कोई बीमारी है ही नहीं तो निकलेगी क्या? कभी कभी अपनी सोच से बड़ी कोई बीमारी नहीं होती। तुम प्लीज एक बार अपनी सोच और जीने के प्रति रवैया बदलकर देखो, तो क्या पता तुम्हें खुद अपना इलाज मिल जाये। "कहते हुए देव्यानी ने राधा का हाथ पकड़ लिया। राधा देव्यानी को गले लगाकर चुपचाप खड़ी रही, मानो उसे देव्यानी की बातों से कुछ ऐसा मिला हो जिसे वो, खोना नहीं चाहती हो।
दोस्तो, कई बार हमने भी राधा जैसी स्थिति को अपने अंदर महसूस किया होगा, क्या देव्यानी की दी गयी सलाह वाकई जिंदगी में खुश रहने, के लिए जरूरी होती है।
आपकी इस बारे में क्या राय है?
