Smita Singh

Inspirational

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Smita Singh

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जिम्मेदारियां

जिम्मेदारियां

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चलो ना कल संडे है कहीं बाहर चलते हैं, तुम मैं और बच्चे। जमाना हो गया सबको साथ जायेंगे, अच्छा लगेगा। family outing"मनचन्दा जी ने, सुषमाजी को बगीचे में पानी का पाइप थमाते हुये कहा।

"क्यों बार बार अपने को दुखी करते हो? आपको पता है ना बच्चे अपने परिवार, बच्चों में बिजी है, वो खुश है। नहीं मेल खा पाता उनका वक्त हमारे वक्त से । अभी आप फोन करोगे वो नहीं आ पायेंगे फिर आप चार दिन मुंह बनाकर बैठे रहोगे। उनको, मन ही मन कोसोगे क्या फायदा? आप उनकी छोड़ो मैं ही नहीं जाना चाहती, अब उम्र हो गयी है, जरा सा चलने में घुटने बोल जाते हैं। "सुषमाजी ने बड़े सहज शब्दों में आईना दिखाते हुए कहा।

"तुम तो रहने ही दो, कोई सोचे भी तो तुम पहले नेगेटिव बोलने लगती हो। बच्चों को तुमने ही बिगाड़ रखा है, मां बाप के लिए एक इतवार भी नहीं है उनके पास। अपनी पूरी जिंदगी लगा दी उनके लिये, और उनके पास टाइम ही नहीं है हमारे लिये। हद है। "मनचन्दाजी अपना गुस्सा सुषमा जी पर उतारते हुए बोले।

"मैंने क्या बिगाड़ा है? सब चीजें मुझ पर थोपना बंद करो। कुछ जिम्मेदारी खुद भी लेना सीखो। "सुषमा गुस्से में मनचन्दाजी की तरफ देखते हुए बोला।

"मेरी जिम्मेदारी मतलब। ये जो इतने बड़े घर में जो अपने शौक पूरे कर रही हो, ये मेरी निभायी जिम्मेदारी का नतीजा है। एक नौकरी में नहीं मिल सकता था तुम्हें, तीन तीन जगह काम किया है, अपने को जमीन से उठकर आसमां तक पहुंचाया है, तब जाकर इतने ऐशों आराम में जी रही हो। बात करती हो।" मनचन्दा जी तिलमिलाते हुये बोले।

"ये ऐशो आराम मैंने नहीं मांगें थे, ये सब तुम्हें चाहिये था। तुमने तीन जगह काम किया क्योंकि तुम्हें एक लग्जरी लाइफस्टाइल चाहिए थी। क्या मैंने या मेरे बच्चों ने तुमसे कहा कि हमें किस ब्रांड के कपड़े, गाड़ी चाहिए। हमें बड़ा घर चाहिए। हम तो खुश थे, उस जिंदगी में जहां जिंदगी अपनी रफ्तार के साथ चल रही थी। लेकिन तुमने अपने सपनों को पूरा करने के यज्ञ में हमारे एक एक लम्हे की आहुति दी है। क्या तुम्हें याद है कभी किसी संडे बच्चों के साथ खेलने गये हो, कभी यूं ही उनकी खुशी के लिए उन्हें लाॅन्ग ड्राइव पर ले गये हो।, कभी यूं ही किसी दिन खाली बैठकर उनके साथ बैठकर कोई मूवी देखी हो, पाॅपकाॅर्न खाये हो। कभी मुझे पसंद आयेगा ये सोचकर यूं ही कोई पुरानी अल्बम खोलकर कुछ लम्हों को यादों में समेटा हो, या यूं ही बिना किसी वजह के हमने घंटों का समय बातें करते हुए बिताया हो । नहीं...बल्कि आपने जो समय हमारा हो सकता था उसे भी अपनी जाॅब, संडे में अपने एक्स्ट्रा काम, मिटिंग को दिया। 6 दिन की भागती दौड़ती पैटर्न लाईफ में क्या एक संडे भी हमारा नहीं हो सकता था?आज जब आपने सब अपने मन मुताबिक कर लिया, जिंदगी के गुणा भाग में हमारे वक्त को गिरवी रखकर सब पा लिया तो अब आपको संडे याद आने लगे। "सुषमा जी ने अपने मन की भड़ास निकालते हुए कहा।

"तो मैंने कुछ किया ही नहीं, साल में एक बार छुट्टी में बाहर घूमने जाना, बच्चों को अच्छे स्कूल में शिक्षा देना। आज जिस मुकाम पर बैठे है ना वो, सिर्फ इसलिये क्योंकि मैंने उन पर खर्चा किया। "मनचन्दाजी ने अपनी आवाज ऊंची करते हुये बोले "ये सब भी आपने तब किया जब आपको समय मिला, तब नहीं जब हमें जरूरत थी, हमें आपका समय चाहिए था उसके लिए घर भी पर्याप्त था। बच्चों की शिक्षा हर मां बाप का फर्ज है, जिसे वो निभाते है लेकिन बच्चे अपनी काबिलियत से सैटल होते है, पैसे और बड़े स्कूलों के बूते पर नहीं। काश आप ये बातें कभी समझ पाते।" सुषमाजी ने उन्हें टोकते हुये कहा।

"चलो हमने तो, कुछ नहीं किया। तो अपनी महान मां के लिए ही आ जाते कोई संडे।" मनचन्दाजी ने ताना मारते हुए कहा।

"हम्म...क्या पता जब भी वो यहां आते हो, अपनी महान मां की वजह से ही आते हो।" कहते हुए सुषमाजी ने मनचन्दाजी के अहं को आईना दिखाते हुए कहा। सुषमाजी के इस आईने में अपना चेहरा उन्हें खुद बदसूरत लगने लगा।

दोस्तों, आज की भागती दौड़ती जिंदगी में अपनी ख्वाहिशों के दलदल में इस कदर फंसा है कि वो दलदल कब हमारे, परिवार के अनमोल वक्त को अपने अंदर खींच लेता है, पता ही नहीं चलता। लेकिन इस दलदल और वक्त की सरकती जमीं के बीच बैलेंस बिठाकर चलने की क्षमता को हमें विकसित खुद करना पड़ेगा, ताकि हम आने वाली पीढ़ी को अपने साथ, रिश्तों को सहेजने, एक दूसरे के मन के भावों को पढ़ने वाले, खिलखिलाहट और चहल-पहल से ओतप्रोत एक इतवार को बचा सके।



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