ऑपरेशन
ऑपरेशन
एक बुढ़िया थी उस गाँव में। अब नाम क्या था उसका, ये तो किसी को पता नहीं था।शायद उसे भी नहीं याद होगा। आखिर सब उसको बंसी की माइ ही कहते थे, जैसे अन्य औरतों को भी उनके बेटों के नाम से ही जानते थे। और उसके तो चार चार बेटे थे, बेटी कोई नहीं, बड़ी किस्मत वाली थी। घर में ही हुए थे सब, कोई डाक्टर दवाई का खर्चा भी नहीं।
वैसे भी डाक्टर के पास ज्यादा जाना मुसीबत मोल लेना है। अभी छः महीने पहले ही जब पेशाब रुक रुक कर होने लगा तो डाक्टर के पास गई थी तो डाक्टर ने ऑपरेशन का सुझाव दे दिया। अब आपरेशन को टाला नहीं जा सकता, उसका बच्चेदानी काफी नीचे आ गया है और अब तो चलने में भी दिक्कत होने लगी है।
किसी तरह आपरेशन को तैयार हुई तो डाक्टर ने एक बोतल खून का इन्तजाम करने को कह दिया। कहा तुम्हारे तो चार चार बेटे हैं, बोलो एक को खून देने !
सोचिये तो कमाने खाने वाला खून दे देगा तो मेहनत कैसे करेगा ? डाक्टरों को बोलने में क्या जाता है।
लेकिन अब ऑपरेशन कराना भी जरूरी है। आखिर इसका हल भी डाक्टर ने ही सुझाया। "जिन बेटों को पैदा करने में बच्चेदानी की मांसपेशियां कमजोर हो गई है, अगर वो आपरेशन के लिए खून नहीं दे सकते हैं तो तुम अपने लिए खून खुद दे दो, हम ब्लड बैंक में रखेंगे और तुम्हे खून बनने के लिए सूई देंगे। इस तरह एक सप्ताह बाद ऑपरेशन कर देंगे।"
अब इस तरह बुढ़िया ने अपनी मदद स्वयं की। कहते हैं कि एक और एक ग्यारह। अब और कोई नहीं करे, तो खुद ही अपने लिए खड़े होना चाहिए। एक बार नहीं बार बार, हमेशा...एक और एक ग्यारह या एक और एक,एक सौ ग्यारह !