डायरी
डायरी
जूही ने अरमान के कन्धे पर हाथ रख कर गाल से गाल सटा कर मोबाइल कैमरे की ओर मनमोहक मुस्कान ला कर मुग्ध होकर कर तस्वीर ली। अरमान जाहिर तौर पर थोड़ा अप्रतिभ महसूस कर रहा था। वे लोग शादी के बाद अण्डमान घूमने आए थे।
"अरे, थोड़ा तो मुस्कुराओ, मुझे फ़ेसबुक पर देनी है "अरमान की मुस्कुराहट असहज लग रही थी। " घरवाले देखेंगे तो क्या कहेंगे " वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से आया था। जूही जैसी लड़की से शादी कर के गदगद था।
फोटो का शीर्षक दिया गया," सोल मेटस।" इसे सोशल मीडिया के बाशिंदो ने पसंद भी बहुत किया।
दोनो में गजब का तालमेल था। दोनो परिवारों की समस्याओं को मिल कर सुलझाते। अरमान बहुत समाजिक था और उसके बहुत दोस्त थे। अरमान को धार्मिक और ऐतिहासिक विषयों में रुचि थी तो जूही को रूमानी कहानियां और शायरी पसंद थी। सिनेमा देखना दोनो को पसंद था। जूही को घर सजाना और खाना बनाना भी बहुत पसंद था।
एक जाड़े की दोपहर जब घर के सब काम हो गए थे, जुही अपनी दोस्त नूरी के साथ बैठी स्वेटर बना रही थी। नूरी उम्र में कुछ बड़ी थी और उसके पति सऊदी अरब में थे। जैसा कि औरतों की बातचीत में अक्सर होता है, बात शौहरों पर आ गई। जूही कह रही थी कि अरमान उसके सबसे अच्छे दोस्त हैं, नूरी खिलखिला कर हँस पड़ी और कहा "शुरु में लोग ऐसा ही सोचते हैं।" जुही को गुस्सा देख बड़े लाड़ से बोली," बताओ क्या तुम्हें अपने ससुराल वालों के बारे में कुछ बुरा कहना हो तो क्या तुम कह पाओगी?" " हाँ, क्यों नहीं।" जूही को पूरा विश्वास था। "अच्छा तो क्या तुम उस से अन्य पुरुष दोस्तों के बारे में बता सकती हो?" जूही हाँ कहने ही जा रही थी कि उसे अपने स्कूल का दोस्त अमन याद आया जिसके साथ वह कभी कभी शायरी शेयर करती थी। वैसे तो उन दोनो में दोस्ती के सिवा कुछ नहीं था और अमन भी शादी शुदा था पर यह बेहतर था कि अरमान को न ही बताया जाय। उसे चुप देखकर नूरी मुस्कुरा कर बोली, "क्या तुम्हें अरमान के फोन का पासवर्ड पता है?" जूही आवाक रह गई। ये तो कभी उसने सोचा ही नहीं था।
घर पहुंच कर जूही अरमान को ऐसे देख रही थी जैसे पहली बार देख रही हो।" तुम्हारे फोन का पासवर्ड क्या है?" अरमान ने उसे घूरकर देखा," क्यो, तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है?" थोड़ी देर की गहमा गहमी के बाद अरमान ने फोन अन्लॉक कर के बिस्तर पर फेंक दिया और दूसरे कमरे में सो गया। जूही ने देखा कई एप के भी अलग से लॉक हैं।
अगली बार, नूरी से मिलने पर उसने पूछा,"और तुम्हारा सोल मेट कौन है?" "मैं डायरी लिखती हूँ। जो भी चीजें मुझे अच्छी या बुरी लगती हैं मैं उसमे लिखती हूँ । अगर कोई मुझे बहुत अच्छा लगता है तो वो भी। वो सभी बातें जो मैं किसी से नहीं कर सकती, कभी कभी तो अपने से भी स्वीकार नहीं कर सकती, वो सभी बातें लिख देती हूँ।"
" लेकिन डायरी तुम्हें कोई सलाह नहीं दे सकती।"
"क्यों नहीं? जब हम लिखते हैं, हमारा दिमाग ज़्यादा तर्कशील हो जाता है और स्पष्ट सोचता है। कभी कभी तो लिखते लिखते ही हल निकल जाता है।"
नूरी ने फिर कहा," कभी कभी तो जब कुछ दिन बाद मैं दोबारा पढ़ती हूँ तो लगता है कितनी छोटी बातों के लिए मैं कितना परेशान हो रही थी। चीज़े अक्सर उतनी गम्भीर नहीं होती जितना हम सोचते हैं।"
कुछ महीने बाद नूरी को देखते ही, जूही चहक उठी," पता है, अब मैं भी डायरी लिखती हूँ। बड़ा सुकून है इसमे।"
नूरी कुछ कहती इस से पहले वो फिर बोल उठी, "और पता है मैं अरमान को भी अपनी डायरी पढ़ा देती हूँ, जो वो सुन कर समझ नहीं पाते पढ़ कर समझ जाते हैं।"
दोनो दोस्तों ने एक दूसरे की नज़रों में झाँका और गले लगा लिया।