गोद
गोद
क्या खुशी की भी सीमा होती है? आज रजनी को यकीन ही नहीं हो रहा है । प्रेग्नन्सी किट उसने अभी भी हाथ में पकड़ रखा है और बीच-बीच में देख लेती है मानो नज़र हटते ही सपने की तरह किट की दूसरी लकीर गायब न हो जाए ।डॉक्टर के पास जाते हुए पिछ्ले 8 साल उसकी नज़रों में घूम गये। क्या नहीं है उसके पास, सुन्दर है, स्मार्ट है...एमबीए की डिग्री, अच्छी नौकरी । शादी के पहले दो साल तो उन्होँने बच्चे के बारे मे सोचा ही नहीं, दिन भी मानो पंख लगा कर उड़ गए । पहले हँसी ठिठोली में, फिर पूरी गम्भीरता में....पहले करीबी दोस्तों ने, फिर धीरे-धीरे परिवार और पडोसियों ने भी पूछना शुरु किया कि खुशखबरी कब दे रही हो ।न जाने कब इन सवालों का स्वर चिंता से ताने में बदल गया । कभी -कभी जब कटाक्ष नहीं होते तो भी उसे चुभ जाते । जैसे जब अपनी बहन को बच्चों को डांटने से मना करने पर उसे सुनने को मिला," अरे, पालोगी तो समझोगी कि ये कितने शैतान हैं " वैसे तो वह सर्वसमर्थ है पर भावनाएं तो आहत होती ही हैं ।
और फिर बच्चों की चाहत तो उसे भी थी ।
फिर शुरु हुआ अन्तहीन जाँच और दवाईयों का दौर...पहले कम, फिर महिने- महिने, फिर छोटे- मोटे ओपेरशन...अल्ट्रासाउंड....हरेक महिने मासिक आने पर उसके साथ- साथ उसकी डॉक्टर का भी रंग उतर जाता । आखिर हार कर रजनी को आईभीएफ के लिए रेफर कर दिया गया ।
और आज इस छोटे सी लकीर ने असीम खुशियां दे दी ।
क्या दुख की भी सीमा होती है? असहनीय दर्द और फिर वही लाल रंग! खुशियों की सीमा....सिर्फ 3 दिन! उस बच्चे को बचाया न जा सका....शारीरिक दर्द की तो दवा थी । पर वह शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक रूप से एक दम हताश हो गई थी । जैसे किसी गताल में हो और चारो तरफ अन्धेरा ही अन्धेरा। सिसकियों के बीच-बीच में साँस खिंच जाती । कोशिश करने पर भी गले से अवाज नहीं निकलती ।वैसे तो उन दिनो उसने आइना नहीं देखा पर देखती तो खुद को पहचान नहीं पाती....सुर्ख लाल आंखें,सूजी पलकें, सूखे बेजान बाल ।
समय का भी कोई ओर छोर नहीं था,रजनी के दुख की तरह । आंसुओं से भीगे तकिये पर कब आँख लग जाती और फिर नींद खुलने पर फिर आँसू गिरने लगते ।तीन या चार दिन बीत गये होंगे । निखिल की सहानुभूति भी ना जाने क्यों उसे और कचोटती । वह उसे प्रेरणात्मक किताबें देता तो वो और खीज जाती....सोचती," जिस पर बीतती है वही जानता है, भाषण देना तो सभी को आता है ।"
दो दिन बाद निखिल ने फिर कहा " कम्पनियां आज कल निकालने का बहाना खोजती हैं, तुम्हारे नाम का भी कारण बताओ नोटिस है । कम से कम उसका जवाब दे दो । आखिर कब तक रोती रहोगी ।
आखिर मान क्यों नहीं लेती कि तुम मां नहीं बन सकती ।"
हम किसी शब्द पर कैसी प्रतिक्रिया करते हैं, यह हमारी मानोस्थीति पर बहुत निर्भर करता है ।
निखिल की यह बात रजनी को अंदर तक चुभ गई ।
" मैं मां नहीं बन सकती मतलब क्या? मेरे किसी जाँच में कभी भी कोई कमी नहीं आई है ।"
"अच्छा! अगर मुझ में कमी होती तो शलिनी मां कैसे बन जाती!"
रजनी सन्न रह गई । मानो एक झटके में सारे आँसू सूख गए ! शलिनी?
निखिल अपना पूरा पौरुष समेट कर बोला, " अमरीका में मेरी गर्लफ्रेंड थी शलिनी "
रजनी को शादी के पहले मां की बात याद आने लगी," अच्छा लड़का है, स्मार्ट है, अमरीका में नौकरी करता है....."
"अब शलिनी और बच्चा?"
"मुझे क्या पता? तुमसे शादी के बाद मैने उनसे कोई तलुक्कात नहीं रखे।" कन्धे उचकाते हुए निखिल बोला। पुरुष न जाने इतना आत्म गौरव कहाँ से लाते हैं.....
रजनी की नींद और आँसू दोनो गायब हो गए । ना जाने रात भर सोफे पर क्या सोचती रही।
अगले दिन जब दोनो अनाथालय के आंगन में खड़े थे तो वहां की दयनीय अवस्था ने अंदर तक झकझोर दिया । आईभीएफ सेंटर के चमक दमक के दृश्य उनकी आंखों के सामने घूम गए । कैसी विडम्बना है इस संसार में....
आज तो रजनी और निखिल के आंगन में कमल किलकारियां भर रहा है....रात निसंतान होने की नहीं, संकीर्ण और घिसी पिटी मानसिकता की है।
"बीती रात कमल दल फूले "