अनपढ़
अनपढ़
रेणू की कोई भी दोस्त नहीं थी सीमा के अलावा। सीमा जैसी एक ही दोस्त काफी थी, आखिर सीमा थी भी तो सबसे खूबसूरत और सबसे लोकप्रिय। उस से बात करने से ही रेणू की उदासी जाती रहती और वह उससे दिल खोल कर बातें करती।
सिर्फ दोस्त की ही बात नहीं थी, रेणू की किसी से भी नहीं बनती थी। चाहे वो नौकर चाकर हों, साथ में काम करने वाले हों या क्लाएन्ट। यहा तक कि परिवार वालों से भी नहीं। लेकिन उस से कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि उसके परिवार के लोग भी वैसे ही थे...मदद तो आपकी दिल से करेंगे पर एकदम रुखे सूखे और अक्खर। बल्कि ज़्यादा मीठा बोलने को चमचागीरी और निम्न समझा जाता था। उसे सीख मिली थी कि लोग तुम्हारा काम देखेंगे बातें नहीं। सच बोलो,मुँह पर बुराई भले ही करो पर पीठ पीछे बुराई मत करो।
एक दिन वह सीमा के घर पर थी और सीमा के कई अन्य दोस्त भी थे। वे लोग किरण के बारे में बातें कर रहे थे। उसकी बातचीत के अंदाज़ से ले कर काजल तक का तार तार विश्लेशण कर रहे थे कि किरण का फोन आया, सीमा ने जिस गर्मजोशी से बात की कि रेणू दंग रह गई! न सिर्फ इसलिए कि अभी अभी वो लोग किरण के बारे में कुछ अच्छी बात नहीं कर रहे थे बल्कि इसलिए भी सीमा का किरण से बात करने का तरीका बिल्कुल वैसा ही था जैसा रेणू के साथ रहता है। मतलब, सीमा उस की खास दोस्त नहीं है बल्कि यह उसके बात करने का तरीका ही है।
"तुम भी हमारे ग्रुप में क्यों नहीं जुड़ जाती। " सीमा कह रही थी। "एक तो मेरे पास वक्त नहीं है और होगा भी तो इस तरह की बातचीत मुझे अच्छी नहीं लगती।" रेणू अपनी स्पष्टवदिता से बाज नहीं आयेगी।सीमा फिर अपनी मधुर आकर्षक हँसी हँसते हुए बोली ,"तुम्हें क्या लगता है लोग ऐसी बातें क्यों करते हैं?" रेणू ने कुछ हाँ ना में जवाब दिया,अब वह जल्द से जल्द वहाँ से निकलना चाहती थी।
लेकिन लौटते समय उसके जहन में वही सवाल घूम रहा था। सभी लोगों में कुछ कुंठा या हीन भावना होती है, जब हम दूसरे की बुराई करते हैं तो एक तरह से अपनी कमियों को स्वीकार करते हैं। दूसरी तरफ सभी को सकारत्मक उर्जा की जरूरत है जो मुँह पर बड़ाई करने से मिलती है। अगर किताबी पढाई की बात की जाए तो बेशक रेणू के पास डिग्री अधिक हैं पर लोग कब किस मानसिकता से गुजर रहे हैं और क्या कैसे सुनना चाहते हैं,ये सीमा बखूबी जानती है और रेणू इस मामले में अनपढ़ है। इस घटना के बाद रेणू ने बुराई तो नहीं शुरु की पर रुखपन जरूर थोड़ा कम किया।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम्। प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन: ॥
सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये। प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये ; यही सनातन धर्म है।