Varuna Verma

Drama

5.0  

Varuna Verma

Drama

फिर से

फिर से

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539


फिर कभी किसी से प्यार नहींं करूंगी ऐसा कई बार सोचा था। प्यार तो दूर की बात है शायद मैं कभी खुश भी नहींं रह पाऊंगी, किसी भी बात पर मुझे हँसी नहींं आ सकती है। ऐसा सोच कर वह अपने काम में लग गई आखिर जितना प्यार उसे कपड़ों को डिज़ाइन करने से है क्या कभी भी उतना प्रेम किसी आदमी से हो सकता है क्या ? और सच्चाई भी यही है कि जब से उसका दिल टूटा है उसके काम की क्षमता बढ़ गई है और वो काम में ही डूबे रहना चाहती है।

उसके प्यार की पूरी परिभाषा बचपन में पढे परी कथाओं से बना था और फिर जेन औस्टेन की कहानियों की परत चढ़ी थी और फिर मुंबइया सिनेमा का तडका लगा था। हाँ मुंबइया सिनेमा में उसे एक बात पर आपत्ति थी कि प्यार को सुन्दरता से मिला कर देखा जाता है।

राहुल जब उसे मिला तो ज़िंदगी पर यकीन ही नहींं हो रहा था कि यह इतनी भी खूबसूरत हो सकती है। वैसे तो वह शक्ल सुरत में साधरण थी पर प्यार हमें न सिर्फ आकर्षक बनाता है पर एक अच्छा इन्सान भी बनाता है। राहुल दिखने में बहुत ही उम्दा व्यक्तित्व का स्वामी था। उसे याद है कि शुरु में जब वह उस पर अधिकार दिखाता और कहता कि इस से बात मत करो या ऐसी फोटो सोशल मीडिया पर मत दो तो उसे कितना अच्छा लगता पर यही चीज़ें बाद में उसे पाबंदी लगने लगी। शुरु में भी उसे यह तो अखरता था कि राहुल खुद तो दूसरी औरतों की सोशल मीडिया पर फोटो को पसंद करता था। लेकिन जब तक प्यार था ये मायने नहींं रखती। अब वह सोचती है कि क्या हर रिश्ता एक सीमित समय के साथ आता है ?

धीरे धीरे राहुल के पुरुष प्रधान सोच उसके व्यक्तित्व से टकराने लगी। सच में राहुल का कोई दोष नहीं था, वह तो शुरु से ही वैसा था पर जब तक प्यार था नेहा उसकी सब बातों को सर आंखों पर रखती थी।

अब यह तो सोच सोच की बात है, आप कह सकते हैं कि राहुल ने उसके साथ धोखा किया। या फिर नेहा का प्रेम ही खत्म हो चला था कि वह उसे उसकी कमियों के साथ अपना न सकी। या फिर नेहा ने खुद को धोखा दिया, क्या उसकी कुछ कुछ बातें उसे शुरु से नागवार नहींं लगती थी ? प्यार अन्धा नहींं होता, हम आंखें मूंद लेते हैं।

अब कुछ भी नहींं रहा। अब वो जमाना भी नहींं रहा कि लोग किसी के लिए दुनिया छोड़ दें। पहले दिनों में भी अगर जमाने की बातों का डर ना होता तो ना जाने कितने लोग सही में दुखी होते। अब अहं इतना है कि वह इससे अपनी ज़िंदगी पर फर्क़ तो नहींं पडने देगी पर उसका एक हिस्सा मर गया है यह तो वह भी जानती है।

आज फिर से दो साल बाद उसने किसी के साथ कॉफी का निमन्त्रण स्वीकार किया है। उसका रूप रंग तो साधरण है। केवल नेहा की बातें वह बहुत ध्यान से सुनता था। आंखों में आँखे डाल कर हँसता है। बातचीत के दौरान एक बार भी फोन नहींं देखता और नेहा को ये सबसे बड़ी खूबी लगती। और एक बात खास है, अपनी गलती तुरंत मान लेता है, अभी तक। क्या यह प्यार है ?

क्या प्यार व्यक्ति विशेष होता है ? जब प्यार होता है तो आसपास की हर चीज़ से होता है, लोगों से, पेड़ पौधों से, काम से, किताबों से, पालतू कुत्ते से, बस एक मधुर संगीत होता है जो सबों को सरोबार कर देता है।


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