नाटक
नाटक
शीतल रवि से कह रही थी," तुम मां जी को समझाते क्यों नहीं?" रवि ने लाचार शब्दों में कहा,
" कहा तो बहुत बार अगर मेरी बात नहीं माने तो मैं क्या कर सकता हूँ?"
शीतल ने मुँह बिचकाया पर उसे पता था कि रवि की बात में सच्चाई थी।उसकी सास रीमा सहाय एक उच्च सरकारी पद से रिटायेर हुईं थीं । जब कुछ साल पहले उन्होँने ने एक लड़खड़ाते संगीत कला अकादमी को आर्थिक सहायता और सरकारी सहायता दी थी तो उनके बेटा बहू ने इस दिन की कल्पना भी नहीं की थी । वैसे तो समाज में रीमा जी की बहुत इज़्ज़त थी । उनके हैण्डलूम साड़ियों के चर्चे अक्सर होते थे ।पर यह निर्णय कुछ अलग ही था ।
रिटायर होने के बाद जब उन्होने संगीत कला अकादमी के साथ जुड़ने का निर्णय लिया तो उनके बेटा बहू दंग रह गए । बाकी लोगों की तरह किटी ज्वाइन कर लेतीं, नहीं तो कोई कीर्तन मंडली ही या फिर कोई समाज सेवी संस्था में उनका योगदान हो सकता था । पर उनका निर्णय अडिग था और कारण बहुत सीधा," मैने कभी स्कूल में भी मंच पर काम नहीं किया है, अब करूंगी ।"
वैसे तो शीतल को कभी भी अपनी सास से कोई शिकायत नहीं रही । वो दोनो उन्ही के घर में रहते भी थे । नौकरी पेशा होने के कारण कोई किसी से ज्यादा रोक टोक भी नहीं करता । शीतल ये सोच के परेशान थी कि उसकी सहेलियां या ऑफिस के सहकर्मी क्या कहेंगे ।
इधर अकादमी वाले दंग थे कि अब रीमा जी को उनके रुतबे के हिसाब से क्या रोल दें । रीमा जी का निर्देश साफ था, " कोई मां, सास का बुढ़ापे का रोल मत देना।" अब आर्थिक मदद मिलती है तो बात तो माननी पड़ेगी ।
हाँ, नाटक कंपनी के बाकी कलाकार रीमा जी से काफी खुश रहते । कुछ समय मे ही सब उनसे सहज हो गये, सब उन्हे रीमा जी ही कहते, आंटी या मांजी यहां तक कि दीदी भी नहीं ।
कंपनी के मुख्य हीरो से तो रीमा जी की खास बनती थी । पहले दिन ही जब वह उन्हे देख कर चौंका, तो वो हंस के बोलीं
" क्या सोच रहे हो? बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम!" वह भी खिलखिला के हँस पड़ा । अक्सर कॉफी पीते हुए वो उसे लडकियों को इम्प्रेस्स करने के तरीके बताती, वह भी उनके साथ अपनी हमउम्र औरतों की अपेक्षा ज़्यादा सहज महसूस किया करता ।
आज उनके नाटक का पहला मंचन था । शहर के सभी नामी गिरामी लोगों को आमंत्रित किया गया था ।कहानी सीधी और सरल...एक बूढ़ा और एक बूढ़ी औरत किस तरह एक दूसरे मे सानिध्य खोज लेते हैं पर शादी नही करना चाहते हैं । जिस संजीदगी से कलाकारों ने यह पेश किया, शीतल भी कई बार अपनी नम आंखे पोछ्ती नज़र आई । नाटक खत्म होने के बाद जब रीमाजी और सह कलाकार श्री जोसेफ की जोड़ी हाथ पकड़ कर दर्शकों का अभिवादन करने आई तो हाल तालियों से गूंज उठा ।
घर जा कर रीमा ने बेटे बहू के साथ शम्पेन की बोतल खोली ।" देखो, बुढ़ापे में कुछ भी करो तो लोग सनकी कहेंगे ही इसीलिए कुछ भी करो जो कभी नहीं किया।बूढ़े लोगों की भावनाएं समाज को बताना भी एक समाजिक कार्य ही है ।" शीतल विस्मय से अपनी सास को देख रही थी ।