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नज़रिया

नज़रिया

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उस बुज़ुर्ग औरत का कातर स्वर बार - बार शगुन को विचलित कर रहा था।

"डाक्टर जी, मेरे पोते को बचा लीजिये। उसकी तबियत बहुत खराब है, बड़ी आस ले कर आयी हूँ !"

उसकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे।

बच्चे की हालत सचमुच खराब थी, डाक्टर ने एकदम दाखिल कर लिया।

बच्चे की दादी बार - बार गुहार कर रही थी,

"डाक्टर साब, भले ही कितना भी खर्चा आये आप फ़िक्र न करना, जो कुछ है सब इसी का तो है। बस इसे बचा लीजिये, अब तो आप ही भगवान है हमारे !"

डॉक्टर ने समझाया भी कि वो अपना फ़र्ज़ पूरी ईमानदारी से निभाएंगे और उनके पोते को बचाने की पूरी कोशिश करेंगे और वो उन्हें पैसे का लालच न दिखाए।

शगुन की बिटिया अब ठीक थी। चेकअप के लिए डाक्टर के पास गयी तो नजर उसी बुज़ुर्ग पर चली गयी, उन्हें छुट्टी मिल गयी थी। उनका पोता बड़े मज़े से दादी के साथ खेल रहा था। शगुन ने यूँ ही पोते का हाल पूछ लिया तो बोली,

"अब तो ठीक है पर ये डाक्टर तो बड़ा लुटेरा है, 4 - 5 दिन में ही हज़ारों का बिल बना दिया ! डाक्टर को तो पैसे का लालच पड़ा है, न जाने रोज़ कितनी कमाई करता होगा !"

और पता नहीं क्या - क्या कहती रही ! शगुन सोच रही थी क्या फितरत है इंसान की, पल भर में चमकते सितारे को टूटा सितारा बना देता है !


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