नज़रचोर
नज़रचोर
अपनी नज़रें झुकायें चली जा रही सुनयनीं को ज़रा सा भी अन्दाज़ा न था कि, कोई उसकी नज़रों को चुराने की फ़िराक़ में सुबह शाम उसके घर, क्लास, कॉलेज के चक्कर काट रहा था।
अपनी ही धून में मगन सुनयनीं धूप को सिरहाने रख सो रही सड़कों पर निहत्थी टहल रही थीं, तभी उसकी नज़रों को कुतरने वाला एक नौजवां उसके क़रीब से गुज़रता चला गया।
सड़क हो चूकी सुनयनीं की सिहरन को दूर से भी भाँपते हुए उस नज़रचोर ने एक मुस्कान उसकी ओर फेंकी।
जबरन मिली मुस्कान को दिल में न उतार सुनयनीं नज़र फेंकूँ के कान के नीचे बजाने की हिम्मत दिखाने उसके सामने जा खड़ी हुई।
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सुनयनीं को राणी लक्ष्मीबाई बनी देख पहलेपहल तो वो हकपका गया। फिर, घबराकर अपने सरीखे दो चार मुशटंडो को मैसेज कर अपनी सुरक्षा हेतु बुलवाया। अस्त्र शस्त्र लेकर कुछ आये भी।
लेकिन,
सुनयनीं को निहत्था देख अपने ही डरपोक दोस्त पर हँस पड़े। और, बिना हेल्प करे वहाँ से खिसक गए।
अपनी जान पर बन आई तो, नज़रचोर ने सुनयनीं की अनकही आँखों से नज़रें झुकाते हुए मांगी माफ़ी।
और,
वहाँ से चलता बना, दोबारा ऐसी कोई हरकत न करने के निःशब्द वादे के साथ!
ये घटना 2047 की होगी। आज़ाद हिंद की वीर बालाओं के नाम।