नज़र

नज़र

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बीस साल पहले मैने कंपाउंड वॉल के बाहर नन्हा गुलमोहर का पौधा लगा, बड़ी आत्मियता व प्रेम से उसे सींचा। आज वह विशाल छायादार वृक्ष प्रहरी सा खड़ा कड़ी तपती झुलसाने वाली धूप से मेरे घर की रक्षा करता है। गर्मी के मौसम में उसकी हरि-हरि पत्तियाँ जहाँ आँखों को शीतलता प्रदान कर सुकून पहुँचाती है, वहीं उसके लाल-सुर्ख़ फूल मेरे घर की सुंदरता में चार-चाँद लगा देते हैं। आते-जाते पथिक भी उसकी छाँव में घड़ी-दो-घड़ी विश्राम कर लेते है।मेरी व पड़ोसन की कार भी दिन में उसकी छाँव का आसरा लेती है।

इधर पिछले दो वर्षों से पड़ोसन मुझे इस विशालकाय छायादार, फूलों से लदे वृक्ष को काटने की सलाह कम आदेश ज़्यादा दे रही थी। किंतु मेरे कान पर जूं नही रेंगती। मेरी ग़ैर हाज़री में पड़ोसन ने मुझसे पूछे बिना इस पेड़ की कई डालियाँ कटवा दी। दुःख तो बहुत हुआ। किन्तु पड़ोस का मामला है यह सोच मैं चुप्पी साधे रही। पर वह अपनी रट पर अड़ी तर्क देने लगी, कि गुलमोहर का जीवन 20-22 वर्षों का होता है। उम्र होने पर वह कमज़ोर हो जाता है, ज़ोरों की हवा चलने पर हमपर, आते-जाते लोगों पर या हमारी गाड़ियों पर गिर सकता है। किंतु वह विशालकाय वृक्ष जिसकी जड़े ज़मीन में गहरे तक अपनी पकड़ बनाए हुए है, इतनी आसानी से हवा के झोंकों से धराशाई हो जाएगा ऐसी उसकी हालत नहीं यह मैं बखूबी जानती थी। कुछ व्यस्तताओं के चलते पिछले तीन दिनों से मैं घर से बाहर निकल न पाई। चौथे दिन जब घर से बाहर निकली सहसा नज़र गुलमोहर पर पड़ी, जो अचानक खड़े-खड़े सूख चुका था। मैं अवाक खड़ी रह गई। सहसा मन मे विचार कौंधा कहीं इसे  पड़ोसन की नज़र तो नही लग गई ?


                        



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