नया क्षितिज
नया क्षितिज
सुनयना ने बेटी आलिया के कमरे मे झाँक कर देखा वो सो गई थी। उसे चादर ओढ़ाकर ममता की गवाही दे कर अपने बेटे आर्यन के कमरे मे गई। वो जाग रहा था, पर अपने सुवाह्य संगणक ( लैप टॉप) मे व्यस्त था। सुनयना थोड़ी देर बैठ कर कब वहाँ से चली गई उसे पता ही नहीं चला। फिर अपने कमरे मे आकर पलंग पर लेट गई। बगल मे अरुण अपने अखबार मे खबरों का मजा ले रहे थे। सुनयना ने महसूस किया कि किसी को कल आनेवाली उसकी वर्षगांठ के बारे मे कोई उत्साह नहीं है। सभी अपनी दुनिया मे मस्त और व्यस्त है। परिवार मे किसी का भी जन्म दिवस हो मै पूरे महीने उसी की तैयारी मे रहती हूँ। पर मेरा कल जन्म दिन है किसी को याद भी नही. ..... यह सोचते हुए कब आँख लग गई पता ही नही चला।
उसकी नींद खुली तो उसने घड़ी देखा तो सुबह के आठ बज रहे थे। वो हड़बडाकर उठने ही जा रही थी कि मुस्कुराते हुए अरुण ने चाय की ट्रे के साथ कमरे मे प्रवेश किया। अखबार खोलकर उसकी प्रकाशित कविता दिखा कर जब उसे " जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं " कहा,तो वो हतप्रभ रह गई। दोनों ने इत्मिनान से चाय की चुस्की ली। सुनयना को लगा जैसे तीस सालों मे पहली बार सुबह की चाय उसके सामने आई हो, जैसे मायके में माँ दिया करती थी। वो रसोई घर में जाने के लिए उठने ही जा रही थी कि अरुण ने रोक दिया कहा " आर्यन बाहर नाश्ता लाने गया है और आलिया आज का खाना बना रही है। घर के कामों के लिए हमने महरी रख दी है। " सुनयना को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था।
शाम को उसके जन्म दिन का समारोह रखा गया था। जिसमे उसकी बचपन की सहेली लक्ष्मी और कालेज की सखी सुनंदा को खास निमंत्रण दिया गया था। अरुण सुनयना के लिए उसकी मन पसंद गुलाबी रंग की साडी और मोगरा फूलों का गजरा लेकर आये थे, जो उसे बचपन से बेहद प्रिय था।
लेकिन सबसे अविस्मरणीय उपहार था आलिया और आर्यन की तरफ से।सुनयना के सपनों का सितार।जो बरसों से कोने मे धूल खा रही थी। उसी सितार की कायापलट करवा कर दोनों ने अपनी ओर से उपहार स्वरूप दिया और महफ़िल मे बजाने के लिए कहा तो सुनयना के अश्रु छलक गए......। घर- गृहस्थी के चक्र व्यूह मे ऐसी उलझी कि उसे सितार की सुध ही नहीं रही। समारोह खत्म हुआ, बच्चे थक कर अपने कमरों मे सो गए थे। सुनयना तो आज का जन्म दिन भूल ही नहीं सकती, इसलिए मोबाइल मे तस्वीरे देख रही थी।
अरुण ने बहुत ही संतुष्ट भाव से उसकी तरफ देखा और कहा " कन्यादान के समय मैंने वचन दिया था तुम्हे सदा खुश रखने का। पर जिम्मेदारी निभाने मे ऐसा फंसा की मुझे तुम्हारे लिए कुछ करने का मौका नहीं मिला। पर अब मैं तुम्हे सिर्फ खुश देखना चाहता हूँ। तुम अपने सात वचन का एक वचन भी नही भूली और मैं एक वचन भी याद नही रख पाया। तुम सदा अपनी प्राथमिकता को दरकिनार करके कभी मेरी माँ की सेवा- सुश्रुषा तो कभी बच्चों की परवरिश करती रही। इसलिए मैं तुम्हारा ऋणी हूँ। अब तुम अपने लिए जियो। " सुनयना मुस्कुराते हुए अरुण की बाहों मे समा गई।