Anita Sharma

Tragedy Classics Inspirational

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Anita Sharma

Tragedy Classics Inspirational

नथ उतराई

नथ उतराई

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 सुबह-सुबह बस स्टैंड पर डरी सहमी सफेद साड़ी में लिपटी सून्य में ताकती दिया पर हर आने जाने वाले की निगाहें ठहर रहीं थी। ठहरे भी क्यों न उसके चेहरे की पीली आभा और हाथों में लगी मेहदीं उसकी इस सफेद साड़ी से मैच जो नहीं कर रही थी। 

तभी वहाँ से एक चाय वाला चाय लेकर निकला जिससे उसका थोड़ा चित भंग हुआ पर थोड़ी ही देर में एक बार फिर वो से सून्य में ताकने लगी। इन दो दिनों में ही उसकी जिन्दगी क्या से क्या हो गई थी। 

दो दिन पहले वो दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की थी। अपने मम्मी,पापा की लाड़ली बेटी जिसकी शादी उसके पसन्द के लड़के विनय से हो रही थी कितनी खुश थी वो।उसके चारों तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ थी। विदाई में सभी लड़कियां दुःखी हो ही जाती है । दुःख तो उसे भी था अपने माँ,बाप से बिछड़ने का पर विनय से शादी की उसे इतनी खुशी थी की उसे पता ही नहीं चल रहा था कि ये आंसू खुशी से बह रहे है या जुदाई के। 

उसके माँ,बाप नाते रिश्तेदारों ने उसे हमेशा खुश और सोभाग्यवती रहने के आशीर्वाद के साथ भींगीं पलकों से विदा किया पर किसी को क्या पता था कि मेरा सौभाग्य बस कुछ घंटों का है। वो कार में विनय के बगल में बैठी उसके साथ भावी जीवन के ख्यालों खोई अपने जीवन की शुरुआत के खुली आँखों से सपने देख रही थी कि एक धमाके के साथ वो बेहोश हो गई। 

और जब होश आया उसकी जिन्दगी बदल गई थी। उस कार एक्सीडेंट में वो तो बचगई पर उसने अपने पति को खो दिया। वो कुछ घंटों की सुहागन बनकर अब विनय की विधवा बन चुकी थी। 

ससुराल में उसका स्वागत ढोल नगाड़ों से नहीं बल्कि गगन भेदी चित्कारों के बीच हुआ। एक दिन पहले उसे जो सगुन की चूड़िया पहनाई गई थी उन्हे सभी ने मिलकर बड़ी बेरहमी से तोड़ दी थी। मंगल गीतों की जगह उसे अभागिन, कुलटा कुलक्ष्मी जैसी उपाधियों से नवाजते हुये सभी ये भी भूल गये थे कि जिस कार का एक्सीडेंट हुआ उसमें वो भी थी और चोटें उसे भी आई है। बस मौत ही तो नहीं आई थी उसे पर मन पर लगे जख्मों से जिन्दा लाश तो वो भी बन गई थी। 

इस हादसे की खबर उसके माँ, बाप तक भी पहुंची थी। बिचारे अपनी फूल सी बेटी पर हुये इस वज्रपात को सुन दौड़े-दौड़े आये थे। अपनी राजकुमारी की हालत देखकर माँ बाप का कलेजा मुँह को आ गया था। बड़े ही दयनीय स्वर में उन्होंने अपनी बेटी को अपने साथ ले जाने की बात रखी थी विनय के पिता के सामने जिसे सुनकर विनय की माँ अपना आपा खोते हुये चिल्लाई..... 

" तुम्हे शर्म नहीं आ रही ऐसी बात करते हुये, अभी मेरे बेटे की चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई और आप उसे यहाँ से ले जाने की बात कर रहे है। आपकी आभागी बेटी मेरे बेटे की सुहागन बन उसका साथ न दे सकी कम से कम विधवा के फर्ज तो पूरे करने दो।"

उनकी बात सुनकर दिया के मम्मी,पापा कलेजे पर पत्थर रख अपनी बेटी को तेरह दिनों के लिये वहीं छोड़कर चले गये। दिया को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि उसके साथ आखिर हो क्या रहा है। वो यकीन ही नहीं कर पा रही थी की एक झटके में उसकी जीवन से सारे रंग उड़ गये। कल तक जिसकी हंसी से पापा के घर का आगंन मेहकता था आज उस हंसी से उसका दूरतक उसका कोई नाता नहीं दिख रहा था। 

 यूँ ही खुद को एक समझने की कोशिस करते दिया को इस घर में पांच दिन हो गये थे। गृह शुद्धि होने साथ विनय की अस्थि विसर्जन की प्रक्रिया भी पूरी हो गई थी। घर वालों का रोना धोना थोड़ा कम हो गया था ज्यादतर रिश्तेदार भी चले गये थे। अब बस विनय की बड़ी बहन उनके पति ही बचे थे उनके बच्चे भी अपने चाचा के साथ जा चुके थे। 

एक शाम दिया जब अपने कमरे में (जिसमें आज ही उसके लिये जमींन पर विछोना लगाया गया था) लेटने जा रही थी तभी उसकी छोटी ननद शिल्पी घबराई सी कमरे में दाखिल हुई और आते ही ये बोली कि.... 

"भाभी अभी माँ जो दूध आपके लिये लेकर आयेगी आप प्लीज उसे मत पीना"

इतना कह वो जितनी फुर्ती में आई थी उतनी ही फुर्ती में वापिस भी चली गई। उनके जाते ही विनय की माँ दूध लेकर हाजिर हुई और अब तक जिनके मुँह से उसके लिये अंगारे बरस रहे थे वो अपने शब्दों को चासनी में डुबोते हुये उसके सर पर हाथ धरते हुये बोली... 

" बहू मेरा बेटा तो अब इस दुनिया में रहा नहीं अब तो तुम ही हमारा सहारा हो। अब जो हुआ उसे हम बदल तो नहीं सकते पर अब तुम हमारे विनय की अमानत हो। इसलिये अब हम तुम्हारा उसी की तरह ख्याल रखेंगें। इन दो चार दिनों में ही तुम कितनी कमजोर हो गई हो लो ये दूध पीलो थोड़ी ताकत मिलेगी। "

दिया ने ग्लास पकड़ तो लिया पर उसके कान में नन्द के शब्द गूंजे "भाभी दूध नहीं पीना" उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वि क्या करे तो उसने बहाना बनाया.... 

 " मैं अभी पी लूंगी थोड़ी देर में अभी में वॉसरूम होकर आती हूँ। "

"ठीक है पर पी जरूर लेना " कहते हुये वो वहाँ से चली गई। 

दिया कभी दूध को तो कभी कमरे के दरवाजे को देख रही थी। तभी थोड़ी देर में छोटी ननद शिल्पी एक बार फिर से हाजिर हुई इसबार उनके हाथ में दिया का पर्स और मोवाईल भी था। जो उन्होंने दिया को पकड़ाते हुये कहा... 

"भाभी चलिये जल्दी से आप पीछे के दरवाजे से निकल चलिये बाहर मेरे दोस्त आपका इंतजार कर रहे है मैं और वो आपको सही सलामत बस स्टैंड तक छोड़ देंगे। वहाँ आपके पापा आ जायेंगें मैने उन्हे फोन कर दिया है। पर उन्हे यहाँ पहुँचते-पहुँचते सुबह हो जायेगी जब तक यहाँ आपके साथ बहुत बुरा होने वाला है। चलिये जल्दी कीजिये,,,,,,, 

"दिया कुछ समझती उससे पहले ही बाहर से विनय की माँ की आवाज सुनाई दी तभी शिल्पी ने उसके मोवाईल का रिकॉर्डर चालू कर उसे पकड़ा दिया.... 

"जाइये दामाद जी बहू की नथ उतराई की रस्म पूरी कीजिये। विनय के न रहने पर हम बहू को यूँ ही तो इस घर में नहीं रख सकते।कल को उसका बाप अपनी बेटी को ले जायेगा क्या पता कहीं और उसकी शादी करदे पर उससे पहले बहू का कोमार्य भंग होना बहुत जरूरी है तभी तो वो सही मायनों में विधवा मानी जायेगी।

 आप मेरी बेटी की चिन्ता न करें मैने उसे अपने कमरे में बंद कर दिया है। बहुत ज्ञान दे रही थी।आप बिल्कुल परेशान न हो मेरी बेटी आपको कुछ नहीं कहेगी।कहेगी तो मैं हूँ न।और बहू को भी मैने दूध में नींद की दवाई मिलाकर पिला दी है अब तक तो वो भी सो गई होगी तो आपको कोई परेशानी नहीं होगी।"

ये आवाजें सुनकर दिया को तो जड़ हो गई तभी शिल्पी ने उसे झझोड़ते हुये कहा...... 

" माँ आ गई भाभी आप पीछे की खिड़की से निकल जाइये मैं अब आपके साथ नहीं आ रही मैं माँ को रोकने की कोशिस करती हूँ बाहर मेरे दोस्त खड़े है वो आपको बस स्टैंड छोड़ देंगें जबतक ये लोग आपको ढूढ़ते हुये वहाँ तक पहुंचेंगें तबतक आपके पापा भी आ जायेंगें। पर प्लीज आप अकेले पुलिस के पास मत जाना नहीं तो वो वापिस आपको यही छोड़ जायेंगें। क्योंकि वहाँ माँ के भाई ही थानेदार है। जाओ जल्दी,,,, 

विनय की माँ की आवाज अब बिल्कुल पास से आने लगी थी तो उसने न आव देखा न ताव और खिड़की से बाहर की तरफ छलांग लगा दी। जो एक गली में खुलती थी वहाँ से वो लदर पदर भगती हुई मैन सड़क पर आ गई। वहाँ शिल्पी के दोस्त खड़े तो थे पर तभी उसे एक टैक्सी आती दिखाई दी उसे शिल्पी के दोस्तों के साथ जाने से ज्यादा सेफ टैक्सी में जाना लगा। तो उसने वही पकड़ी और यहाँ आ गई। 

तभी दिया को अपने सर पर पापा का प्यार भरा स्पर्श महसूस हुआ। उसने नजरें उठाकर देखा वही थे अब तक डरी सहमी सी दिया उनसे लिपट कर अपने को बिल्कुल सुरक्षित महसूस कर रही थी। 

थोड़ी देर में ही बाप बेटी दोनो वो फोन लेकर पुलिस स्टेशन की तरफ चल दिये। उस औरत को जेल के सलाखों के पीछे पहुंचाने जो एक औरत के नाम पर कलंक थी। 

सखियों ये कहानी काल्पनिक है। पर बहुत सारी ऐसी प्रथाएँ है जो हमारे समाज में व्याप्त है। इससे अगर किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो मैं उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। 


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