नियति भाग - 7
नियति भाग - 7
आकाश का एक्सीडेंट हुए अब एक साल होने को आया था। उसकी बेबसी ने उसकी जुबां को भी कड़वा कर दिया था। वह बार बार नियति को यही ताना देता की उसकी एक ग़लती की इतनी बड़ी सज़ा उसे मिली है, ज़रूर नियति की ही बददुआ उसे लगी है। नियति जानती थी वह कुछ भी कहेगी उसका आकाश पर असर नहीं होने वाला, इसीलिए वह सब कुछ सुनकर भी चुप रहती।
कई बार नियति सोचने पर मज़बूर हो जाती, आख़िर क्यूँ वह आकाश के ताने सुन हर रोज़ यूँ मर मरकर जी रही है?? क्यूँ वह आकाश को अपने हाल पर छोड़कर कही दूर चली नहीं जाती?? जब उसके प्यार में इतनी ताक़त और सहनशीलता है तो आकाश क्यूँ नहीं उसे समझता??? या वह अपनी लाचारी की वजह से ऐसा व्यवहार कर रहा है!!! बात जो भी हो, तकलीफ़ में तो दोनों ही थे।
एक दिन नियति घर का सामान लेने बाहर गयी थी। घर आने पर उसने देखा, घर के सामने एक गाड़ी खड़ी थी, उसे समझते देर न लगी की अयान घर पर आया है। वह चुपचाप घर के अंदर दाख़िल हुई, सामने वाले रूम में कोई नही था, आकाश ज्यादातर अपने बेडरूम में ही रहता था, ज़ाहिर है अयान भी वही होगा।
नियति बिना किसी आहट के बेडरूम के दरवाज़े के पास जाकर खड़ी हो गयी।
आकाश - देखो अयान, मुझे अभी अपने इलाज के लिए पैसों की सख्त ज़रूरत है। तुम्हारे बिज़नेस में मेरे जो शेयर है, वह मैं बेचना चाहता हूँ, चाहो तो तुम ही ख़रीद लो और पैसे मेरे एकाउंट में ट्रांसफर कर देना।
अयान - तुम्हारे शेयर तो मैं ख़रीद लूँगा, लेकिन पैसे एकाउंट में ट्रांसफर नहीं होंगे। मैं चेक देने के लिए तैयार हूँ।
आकाश - हाँ तो ठीक है, उसमें क्या प्रोब्लेम है, तुम किसी के हाथों चेक भिजवा देना।
अयान - नहीं!!! मैं चेक नहीं भेजूँगा किसी के हाथों!!! चेक लेने तुम नियति को भेजोगे मेरे पास, मेरे ऑफिस में वह भी आज शाम ही!!!
अयान की बात सुन आकाश ग़ुस्से से चिल्लाया, "अयान!!! क्या मतलब है तुम्हारा???"
अयान - मतलब तुम अच्छे से जानते हो!! आज तक किसी भी लडक़ी ने अयान को मना नही किया, फिर चाहे वो किसी की पत्नी ही क्यूँ न हो!!! तुम्हारी घमंडी नियति का घमंड तो उतारना पड़ेगा ना!!!
आकाश - अयान, मैं तुम्हें अपना अच्छा दोस्त समझता था। नियति हर बार कहती रही मुझसे, तुम जैसे लोग कभी किसी के दोस्त बनने लायक़ नहीं होते!!! तुम्हारी गंदी नज़र हमेशा से ही मेरी नियति पर रही है, सब कुछ जानते हुए भी मैं चुप रहा। तुम्हारी शानो शौकत ने मुझे अंधा कर दिया था। लेकिन एक बात तुम जान लो, अब तुम नियति की ओर आँख उठाकर भी नही देखोगें, समझें???
अयान - सोच लो, तुम्हारे शेयर के पेपर्स तो मेरे पास ही है। तुम जानते हो, मेरे लिए तुम्हारे शेयर यूँ ही हासिल कर लेना कोई मुश्किल काम नही है। शाम को मैं नियति का इंतज़ार करूँगा मेरे ऑफिस, शाम तक का वक़्त है तुम्हारे पास सोचने का!!!
इतना कहकर अयान बेडरूम से बाहर की ओर बढ़ा, आकाश चिल्लाते हुए कहने लगा,
आकाश - नहीं आयेगी मेरी नियति तुम्हारे पास, जाओ, कर लो जो तुम्हें करना है.....
नियति जो दरवाज़े बाहर खड़ी रहकर अब उन दोनों की बातें सुन रही थी, अयान के आने की आहट सुनते ही रसोईघर में चली गयी। अयान जैसे इंसान की परछाई तक वह अपने ऊपर नहीं पड़ने देना चाहती थी।
अयान के जाते ही, नियति भागकर आकाश के पास आई।
नियति - आकाश, यह गंदा इंसान क्यूँ आया था, फिर से यहां??? साल भर में इसे अब वक़्त मिला है, तुमसे मिलने का??? तुम जानते हो ना, तुम्हारी इस हालत का जिम्मेदार यही इंसान है। ना तुम उस दिन अयान के फॉर्म हाउस जाते, ना इतनी पीकर गाड़ी चलाते और ना ही....
इतना कहकर नियति आकाश के पास बैठ गयी, आँखों में आँसू तो अब उसके लिए आम बात हो गयी थी।
आकाश - मैंने ही उसे बुलाया था। सोचा था, शेयर बेचकर कुछ पैसों का इंतजाम हो जाएगा, लेकिन वह.....
नियति - जानती हूँ मैं, मैंने सब सुन लिया है। देखो आकाश, भूल जाओ उन पैसों को, मैं ख़ूब मेहनत करूँगी, मैं हूँ ना, कोई न कोई इंतज़ाम हो जाएगा। हमें नहीं चाहिए उसके पैसे!!!
मैं पापा से बात कर लूँगी , तुम बिल्कुल टेंशन मत लो!!!
आकाश - नियति, तुम किस मिट्टी की बनी हो?? मैं दिन रात तुम्हें कोसता रहता हूँ, कितना भला-बुरा कहता हूँ, लेकिन तुम हो कि तुम्हें अभी भी मेरी फ़िक्र है। आज तक मैं तुमसे उस दिन की माफ़ी नहीं माँग पाया, क्या तुम्हें मुझपर ग़ुस्सा नहीं आता?? मैंने कभी भी तुम्हारी बात नहीं मानी, शायद उसी की सज़ा मिली है मुझे!!!
नियति - अब यह सब बातें भूल जाओ आकाश, आज बहुत दिनों बाद मुझे मेरा वह कॉलेज वाला आकाश दिखाई दे रहा है, जो मुझसे बेइंतहा प्यार करता था। जानती हूँ, यह कहना बहुत आसान है कि सब ठीक हो जायेगा, लेकिन हम कोशिश तो कर ही सकते है ना!!! वक़्त सबसे बड़ा मरहम होता है और अगर वक़्त जख्मों को ना भी भर पाया फिर भी कुछ हद तक तो दर्द कम कर ही देता है। तुम देखना, एक दिन सच में सब कुछ ठीक हो जायेगा। अच्छा, डॉक्टर शाह का फ़ोन आनेवाला था, उसका क्या हुआ??
आकाश - डॉक्टर शाह के कॉल के बाद ही तो मैंने अयान को कॉल करके यहाँ बुलाया था। दरअसल डॉक्टर शाह ने मेरा केस स्टडी कर लिया है, उनके मुताबिक़, पहले एक ऑपरेशन करना पड़ेगा और उसके बाद कृत्रिम पाँव लग तो जायेंगे, लेकिन इसमें बहुत खर्चा आयेगा। अगर शेयर्स वाले पैसे मिल जाते तो सब आसानी से हो जाता। लेकिन....
नियति - मैंने कहा ना, कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकल आयेगा, तुम फ़िक्र मत करो। ज़रूरत पड़ी तो हम लोग यह घर बेच देंगे।
आकाश - नहीं नियति, कुछ देने के नाम पर तो मैंने तुम्हें इस घर के अलावा और कुछ नहीं दिया है, अब इसे भी तुम बेचने की बात कर रही हो!! इससे तो अच्छा होता, उस एक्सीडेंट में भगवान मुझे अपने पास ही बुला लेता, कम से कम तुम्हारी तो सारी तकलीफें ख़त्म हो जाती। मुझसे यह अपाहिजों वाली ज़िंदगी नहीं जी जाती, नियति!!! कितने सपने देखें थे मैंने, बड़ा आदमी बनूँगा, ख़ूब नाम और शोहरत कमाऊँगा, सब ख़त्म हो गया नियति, सब ख़त्म हो गया!!!
बच्चों सी सिसकियां भरता हुआ आकाश आज पहली बार नियति के सामने टूटकर बिखर चुका था।
नियति - ऐसी निराशा वाली बातें मत करो आकाश, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। हम दोनों मिलकर इस मुश्किल वक़्त का भी सामना कर लेंगे। इतने कमज़ोर तो तुम कभी नही थे।
आकाश : मेरे हालातों ने मुझे कमज़ोर कर दिया है नियति। आज तक मैं तुम्हें कोई ख़ुशी नहीं दे पाया, अब मुझे समझ आ रहा है, कितना ग़लत था मैं। तुम मुझ जैसे मतलबी और अपाहिज के साथ अपनी ज़िंदगी कैसे बिताओगी नियति??? मेरे लिए तुम क्यूँ अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रही हो?? तुम्हें तो मुझसे भी अच्छा जीवनसाथी मिल जायेगा। आज मैं तुम्हें इस बंधन से आज़ाद करता हूँ, तुम चली जाओ मुझे छोड़कर नियति, चली जाओ!!!
नियति - यह कैसी बातें कर रहे हो आकाश?? तुम आज तक मुझे समझ नहीं पाएं?? क्या हमारा बंधन इतना कमज़ोर है कि इन मुश्किल हालातों में टूट जाये?? हाँ, तुम्हारे व्यवहार से मेरा मन आहत ज़रूर हुआ था, लेकिन मैं उन बातों अब भूल चुकी हूँ। तुम्हें ऐसे तकलीफ़ में छोड़ कहाँ जाऊँगी मैं???
आकाश और नियति उस दिन बहुत देर तक यूँ ही बातें करते रहे। हताश और निराश हो चुके आकाश का नियति हर तरह से हौसला बढ़ाने की कोशिश कर रही थी।
एक तरफ़ तो नियति ख़ुश थी की अब आकाश का उसके प्रति व्यवहार बदल चुका था, लेकिन दूसरी तरफ़ नियति को यह भी समझ में आ चुका था, की आकाश अपनी हालत से बहुत बेबस हो गया था।
नियति अब आकाश का ज्यादा ध्यान रखने लगी थी। उसने महसूस किया था की आकाश पहले के मुकाबले अब ज्यादा चुप चुप रहने लगा था। अब तो वो नियति पर कभी गुस्सा भी नहीं करता था। जब तक नियति ख़ुद उसे जाकर पूछ नहीं लेती, की उसे किसी चीज़ की ज़रूरत है या नहीं, तब तक वह कुछ कहता ही नहीं था। उसका यह व्यवहार नियति को अजीब लग रहा था।
एक दिन नियति रसोईघर में खाने की तैयारी कर रही थी, आज उसने सब कुछ आकाश की पसंद का खाना बनाया था। खाना बनते ही उसने आकाश के लिए बड़ी सी थाली में खाना सजाया। मन ही मन मुस्कुराते हुए वह सोच रही थी, अपनी पसंद की चीज़ें देख कितना ख़ुश हो जायेगा आकाश!!!
मुस्कुराते हुए वह कमरे की ओर बढ़ी। थाली लेकर नियति जैसे ही कमरे में पहुँची तो सामने का दृश्य देख नियति के हाथ से खाने की थाली ही नीचे गिर गई। आकाश अपनी व्हीलचेयर पर बैठा था, उसने शेविंग ब्लेड से अपने दोनों हाथों की नसों को काट लिया था। उसके चारों ओर खून ही खून पड़ा था। आकाश.......... ज़ोर से चिल्लाते हुए नियति उसकी पास आई, वह कुछ भी समझ नहीं पा रही थी, बदहवास सी बस इधर उधर देखने लगी। आकाश का काफ़ी खून बह चुका था, वह बेहोश हो चुका था।
दौड़कर नियति ने अपने दो दुपट्टे लिए, एक एक कर दोनों हाथों में कसकर बाँधे। फिर गाड़ी की चाबी ली और कार का दरवाजा खोलने बाहर की ओर भागी। घर से बाहर आते ही वह किसी शख्स से टकराकर नीचे गिर गई। उसे तो होश ही नहीं था, वह किससे टकराई!!
अरे नियति, क्या हुआ?? तुम ऐसे कहाँ जा रही हो???
नियति ने कुछ संभलते हुए ऊपर देखा, वह सागर था, उसकी मम्मी की सहेली का बेटा, जो कई साल पहले उसे देखने आया था। सागर को देखते ही, नियति ने अंदर की ओर इशारा किया।
सागर कुछ ही दिनों पहले लंदन से लौटा था। कुछ काम के लिए वह दिल्ली आया था। जब उसे अपनी माँ की तरफ़ से नियति और आकाश के बारें में पता चला तो वह उनसे मिलने ही घर पर आ रहा था।
सागर ने नियति को उठाया और अंदर ले गया। अंदर जाते ही उसे सारा मामला समझ आ गया, उसने बिना एक पल गवाए आकाश को उठाया और अपनी गाड़ी में बिठाया, नियति भी आकाश के साथ ही थी। ड्राइव करते करते ही उसने अपने एक डॉक्टर फ्रेंड से बात कर ली, ताकि हॉस्पिटल पहुँचकर किसी काम में देर न लगे। हॉस्पिटल पहुँचते ही डॉक्टर और उनकी टीम आकाश को अंदर ले गयी, नियति भी उनके साथ कमरे में जाना चाहती थी, लेकिन उसे बाहर ही रोक दिया गया।
जैसे तैसे सागर ने नियति को संभाला और उसके घर वालों को सूचित किया। आकाश के परिवार के नाम पर केवल उसके पिताजी ही थे, जिनका नंबर सागर के पास नहीं था। उसने सोचा बाद में बताना ही ठीक रहेगा।
लगभग आधे घंटे के बाद डॉक्टर ने सागर को एक तरफ़ बुलाते हुए कहा, "देखो सागर, जब तुम इन्हें यहाँ लाये तब साँसें चल रही थी, लेकिन अभी पांच मिनिट पहले ही मरीज ने दम तोड़ दिया, आय एम सॉरी!!!
सागर को अंदेशा नहीं था, लेकिन नियति ठीक उसके पीछे खड़ी थी। डॉक्टर और सागर की बात उसने सुन ली थी। उस पल के बाद अचानक नियति के आँसू ही थम गए, जैसे अंदर से रिक्त हो चुकी हो और बहाने के लिए अब एक आँसू भी नहीं बचा!!!
वह चुपचाप पास ही के एक बेंच पर बैठ गयी। सब कुछ ख़त्म हो चुका था, अब उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं बचा था। सब कुछ तो छीन लिया था तक़दीर ने उससे !!!!
सागर ने हॉस्पिटल की औपचारिकताएँ पूरी कर ली थी। दिन ढलते ढलते परिवार के लोग आ चुके थे। नियति को कुछ भी नहीं पता था, कौन आया ,कौन गया, वह कहाँ है, कौन उससे क्या कह रहा है, क्यूँ कह रहा है, कुछ नहीं पता था उसे!!!!
आकाश के जाने के बाद अब दिल्ली शहर में उसके लिये कुछ नहीं बचा था। तेरह दिन बाद जब सब कुछ निपट गया, नियति के मम्मी पापा उसे मुंबई ले आये। नियति के लिये क्या मुंबई और क्या दिल्ली!!! वह तो केवल साँसें ले रही थी, जीना तो उसने आकाश के जाते ही छोड़ दिया था......
क्रमशः .........

