Rashmi Trivedi

Drama Romance Tragedy

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Rashmi Trivedi

Drama Romance Tragedy

नियति - भाग 6

नियति - भाग 6

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शादी की सालगिरह के दिन जो कुछ भी हुआ, उसके बाद नियति को विश्वास था, की अब इस अयान नाम की मुसीबत से उसका पीछा छूट जायेगा। आज आकाश अयान से बात करने गया था। नियति ने तो उसे साफ़ साफ़ कह दिया था, उसे कह देना हमसे दूर रहे और ऐसे दोस्तों का ना होना ही अच्छा है। अब दोबारा कभी उससे मिलने की कोई ज़रूरत नहीं है।

सुबह आकाश चुपचाप घर से निकल गया था। शाम को जब वह घर आया, नियति ने उससे पूछा, "क्या तुमने अयान से बात की?? क्या कह रहा था वह??


आकाश - हाँ, मैं गया था उससे मिलने, वह बहुत शर्मिंदा है उस रात की हरकत के लिए। कह रहा था, शायद ज्यादा पीने की वजह से वह बहक गया था और उसे उसकी गलती का एहसास है। वह मुझसे बहुत बार माफ़ी मांग चुका है। कह रहा था, तुमसे भी माफ़ी मांग लेगा।


नियति - ग़लती का एहसास??? माफ़ी?? यह सब तुम क्या कह रहे हो आकाश??? उसने तुम्हारी पत्नी पर बुरी नज़र डाली है, कैसे मर्द हो तुम??? आखिर ऐसे दोस्तों की क्या ज़रूरत है तुम्हें??? तुम्हें तो उससे अब कोई वास्ता नहीं रखना चाहिए!!!


आकाश - देखो नियति, तुम फिर ओवर रियेक्ट कर रही हो!! पार्टियों में हो जाता है ऐसा कभी कभी, उसके लिए कोई किसी से वास्ता ही ना रखें, ऐसा करना तो ठीक नहीं और वह तुमसे माफ़ी मांग तो रहा है, और क्या चाहिए तुम्हें???


नियति - मुझे चाहिये कि वह हमारी ज़िंदगी से चला जाये। मुझे चाहिए कि तुम उससे अपनी दोस्ती तोड़ दो।


आकाश - ओह प्लीज नियति, तो क्या अब मैं दोस्ती भी तुमसे पूछ पूछकर करूँगा??? बात का बतंगड़ बनाने की आदत हो गई है तुम्हारी!!!!


इतना कहकर आकाश फिर घर से बाहर चला गया।


नियति तो जैसे टूट गयी थी उस दिन। वह सोच रही थी, आख़िर कोई कैसे इतना बदल सकता है, या उसने कभी आकाश को ठीक से जाना ही नहीं था। उस दिन के बाद कई दिनों तक दोनों के बीच मनमुटाव रहा, जिंदगी जैसे यंत्रवत चल रही थी। आकाश सुबह ऑफिस चला जाता, रात को देर से ही घर लौटता। शनिवार-इतवार को उसका घर आने का कोई वक़्त तय नहीं होता था। कभी किसी दिन आकर चुपचाप टीवी के सामने बैठ जाता और कभी कभी तो इतना नशे में चूर होकर लौटता की उसे कुछ होश ही नहीं रहता।

एक ही घर में दो अजनबियों की तरह रह रहे थे दोनों।


कुछ दिनों बाद नियति ने भी एक डांस अकेडमी में डांस सिखाना शुरू कर दिया। अपने आप को व्यस्त रखने से कुछ पल के लिए ही सही, वह अपनी तकलीफों को भूल जाती थी।

एक दिन सुबह नियति ने आकाश से कहा," मैं कुछ दिनों के लिए मम्मी-पापा के पास जाना चाहती हूँ"।

आकाश - चली जाना। आज ही टिकट बुक करा दूँगा।

नियति - मैंने टिकट बुक कर लिया है, कल सुबह की फ्लाइट है।

आकाश - जब सब कुछ ख़ुद तय कर लिया है, तो मुझे पूछने का नाटक क्यूँ कर रही थी??

नियति - आकाश, तुम घर पर होते कब हो जो मैं तुमसे बात करूँ??? और अगर घर पर आ भी जाते हो तो ऐसे पेश आते हो जैसे मैं हूँ ही नही इस घर में, आख़िर तुम्हें क्या हो गया है आकाश?? क्या यही था तुम्हारा प्यार?? एक आवारा दोस्त के लिए तुम अपने प्यार, अपने जीवनसाथी को भी छोड़ सकते हो??


आकाश - सारा दोष मेरे माथे मढ़ने की ज़रूरत नहीं है। क्या तुमने कभी मुझे समझने की कोशिश की?? मैं सारी ज़िंदगी इस तरह मिडिल क्लास बनकर नहीं जीना चाहता। अयान एक जरिया है मेरे लिये, जिसके सहारे मैं बहुत जल्दी अपने सपने पूरे करना चाहता हूँ। उसके बिज़नेस में मैंने अपना पैसा इन्वेस्ट किया है, जिससे मुझे काफ़ी फायदा भी हुआ है। तुम्हारी फालतू बातों को लेकर मैं उससे मुँह नहीं मोड़ सकता, समझी तुम???

नियति - आकाश, मैं तुम्हारी पत्नी हूँ, तुम यह सब अब मुझे बता रहे हो?? मुझसे छुपाने का क्या मतलब है???

आकाश - तुम शुरू से अयान को पसंद नही करती थी,अगर यह इन्वेस्टमेंट की बात तुम्हें बताता तो तुम तब भी मना ही करती मुझे।

नियति समझ नहीं पा रही थी, वह आगे क्या कहे, वह चुपचाप अपने कमरे में चली गई। रात को उसने अपना सामान पैक कर लिया। वह कुछ दिनों के लिए इस उलझन भरी ज़िंदगी से दूर चली जाना चाहती थी।


रात के ग्यारह बज चुके थे, आकाश अभी तक घर नहीं आया था, नियति को सुबह जल्दी भी उठना था। वह अपने कमरे में सोने जा ही रही थी कि उसे दरवाज़े की आवाज़ आयी। आकाश घर आ चुका था, लेकिन पूरी तरह नशे में चूर। उसे देखते ही नियति का मन कड़वा हो गया। लड़खड़ाते हुए आकाश उसकी ओर ही आ रहा था, "ओ नियति, मेरी प्यारी नियति, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, मुझे छोड़कर मत जाओ प्लीज..", नशे की हालत में वह बड़बड़ाते हुए गिरने ही वाला था तभी नियति ने उसे संभाल लिया।


नियति - मैं मम्मी पापा से मिलने जा रही हूँ, कुछ दिनों में आ जाऊँगी। तुम्हें मेरी क्या ज़रूरत?? मेरे जाने के बाद रोज़ ऐसे ही पीकर आना, तब तुम्हें रोकने वाला भी कोई नहीं होगा!!

आकाश - तुम्हें मेरा पीना पसंद नहीं है ना, मैं छोड़ दूँगा, आय प्रॉमिस, लेकिन मुझे छोड़कर मत जाना। 


नियति लड़खड़ाते हुए आकाश को बेडरूम में ले आयी। वह आकाश को लेटा ही रही थी कि आकाश ने उसे बांहों में भर लिया। शराब से नफ़रत थी नियति को, उसकी तेज़ गंध आते ही नियति ने आकाश को धकेलना चाहा, लेकिन आकाश की पकड़ मज़बूत थी। नियति उसे मना करती रही, लेकिन वह होश में कहाँ था!!! शराब के नशे में आकाश नियति के साथ वह सलूक कर बैठा, जिसकी कल्पना कोई पत्नी नहीं कर सकती। नियति चीखती रही, लेकिन आकाश पर शराब इस कदर हावी थी कि वो कुछ सुन ही नहीं पा रहा था।


थोड़ी देर बाद कमरे में अजीब सी ख़ामोशी छा गयी, जैसे किसी भयावह तूफ़ान के बाद एक गहरा सन्नाटा....

आज जो आघात नियति को लगा था, उसे लगा वह मर चुकी है। एक ज़िन्दा लाश की तरह वहां से उठी और शॉवर के नीचे जाकर बैठ गयी। पता नहीं, कितनी देर तक ऐसे ही बैठे रही, वक़्त का होश किसे था अब!!


वह कुछ सोच नहीं पा रही थी, सब कुछ यंत्रवत होते जा रहा था। वह तैयार हुई, कैब बुक की, अपना बैग उठाया और घर से निकल गयी। फ्लाइट तो सुबह की थी, वह रात भर एयरपोर्ट पर बैठी रही। सुबह सुबह उसे आकाश का कॉल आया, शायद अब नशा उतर चुका था और रात की बात याद आ गयी थी। नियति ने कॉल कट कर दी। वह कॉल करता रहा और नियति कॉल काटती रही। थककर उसने मोबाइल बंद कर दिया, वैसे भी फ्लाइट का टाइम हो चुका था। इस तरह वह दिल्ली से मुंबई पहुँची।


घर पहुँचते ही मम्मी पापा को देख नियति भावुक हो गई। बहुत देर तक मम्मी के गले लगकर रोती रही।


मम्मी - नियति बेटा, कुछ हुआ है क्या?? ऐसे क्यूँ रो रही हो?? रात को ठीक से सोई भी नहीं लगता, देखो तो आँखें कैसे सूझ गयी है!!!


कुछ संभलते हुए नियति ने कहा, "नहीं मम्मी, वह क्या है ना, बहुत दिनों बाद आप दोनों से मिल रही हूँ ना, तो मैं बस भावुक हो गयी। आपसे मिलने की ख़ुशी में कल रात सो भी नही पायी मैं ठीक से। बाकी सब कुछ ठीक है, आपकी बेटी बहुत खुश है। मैंने तो आकाश से कह दिया है, अब कुछ दिनों के लिये मैं यही रहूँगी। उनका ऑफिस का काम है ना, वरना वह भी आ जाते कुछ दिनों के लिए"।


मम्मी - ठीक है, कोई बात नहीं, तुम्हें लेने तो आएगा ना आकाश, तब मुलाकात हो जाएगी।

नियति अपनी मम्मी को सब कुछ बता देना चाहती थी, लेकिन पता नहीं कौन सी बात उसे ऐसा करने से रोक रही थी। उसने सोचा, कुछ वक़्त गुजर जाएं तो मम्मी को सब कुछ बता दूँगी।

वक़्त का क्या है, वह तो वैसे भी एक गति से चलते रहता है। देखते देखते एक माह से ज्यादा गुज़र जाता है। इस बीच आकाश के कई बार मैसेज और कॉल्स आये लेकिन नियति उस बात को भुला नहीं पा रही थी, भूलती भी कैसे, उसकी आत्मा छलनी हो गई थी उस दिन....


एक दिन नियति की मम्मी ने पूछा, "बेटा, बुरा मत मानना लेकिन तुम्हें यहाँ आये अब बहुत दिन हो गए है, आकाश भी तो वहाँ अकेला होगा, तुम उसे कुछ दिन के लिए बुला क्यूँ नही लेती?? फिर दोनों कुछ दिन साथ रहकर चले जाना। मैं देख रही हूँ, आजकल तुम खोई खोई सी रहती हो, आखिर बात क्या है नियति बेटा, सब ठीक तो है ना??"


नियति को इसी दिन का इंतज़ार था, आज वह अपने दिल की बात अपने मम्मी से कह देना चाहती थी। आकाश को अपना जीवनसाथी चुनना उसकी सबसे बड़ी गलती थी, आज सब कुछ कह दूँगी मम्मी से, लेकिन वह कुछ कहती इससे पहले उसके मोबाइल पर आकाश का कॉल आया, मम्मी पास ही बैठी थी तो वह कॉल कट भी नहीं कर सकती थी।


जब मम्मी ने देखा, आकाश का फ़ोन है, तो उन्होंने कहा, "लाओ, मैं बात करती हूँ, पूछती हूँ कब आ रहा है तुम्हें लेने!!!"


मम्मी ने बात करने के लिए फ़ोन हाथ में लिया, वह कुछ कहती इससे पहले ही दूसरी ओर से आवाज़ आयी, "हैलो नियति, मैं समीर बात कर रहा हूँ, आकाश का कल रात एक्सीडेंट हो गया है, तुम जितनी जल्दी हो सकें आ जाओ, मैंने हॉस्पिटल का एड्रेस तुम्हें सेंड किया है, अच्छा ठीक है, रखता हूँ"!!!!


एक्सीडेंट की बात सुन मम्मी दो पल के लिए बूत सी बन गई। अपनी मम्मी का चेहरा देख नियति ने पूछा, "मम्मी, क्या बात है?? क्या आकाश ने फ़ोन काट दिया???मम्मी, मम्मी???"

मम्मी - नहीं..नहीं, उसके दोस्त ने बात की, कह रहा था, कल.....कल रात आकाश का एक्सीडेंट हुआ है, वह हॉस्पिटल है, तुम्हें एड्रेस भेजा है!!!"

नियति - क्या?? एक्सीडेंट?? कैसे??

एक्सीडेंट का नाम सुनते ही नियति भी सुन्न पड़ गयी। उसके बाद क्या हुआ उसे पता नहीं, सब कुछ नियति के पापा ने संभाल लिया। सबकी टिकटों का इंतजाम कर उसी दिन तीनों मुंबई से दिल्ली रवाना हुए।


हॉस्पिटल पहुँचकर जब तीनों आकाश को देखने उसके कमरे में पहुँचे तो, नियति कमरे में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, वह वही कमरे के बाहर रुक गई। अपने ग़ुस्से में उसने कितनी बार आकाश को कोसा था, उसे बुरा-भला कहा था, अपनी ज़िंदगी से तक निकाल देने का फ़ैसला कर लिया था, फिर क्यूँ आज उसी इंसान को तकलीफ़ में नहीं देखना चाहती वह???!! क्यूँ उस इंसान के लिये भागी भागी चली आई थी वह??


नियति की मम्मी उसे सहारा देते हुए अंदर ले आयी। आकाश बेहोश, निर्जीव सा हॉस्पिटल के बेड पर पड़ा था। माथे पर खून से भरी पट्टी, नाक पर ऑक्सीजन मास्क चढ़ा था। पास ही डॉक्टर उसकी जाँच कर रहे थे।


परिवार वालों को देखते ही डॉक्टर आगे आकर बोले, "अभी पेशंट की हालत पहले से स्टेबल है पर खून काफ़ी बह चुका है, होश आने में अभी वक़्त लग सकता है, हम ऑपरेशन कर चुके है, अब आगे का ट्रीटमेंट होश आने पर ही पता चलेगा!!"


नियति के पापा ने पूछा, "ऑपरेशन ??? किस बात का ऑपरेशन डॉक्टर??? कोई सीरियस बात नहीं है ना डॉक्टर???"


डॉक्टर - एक्चुअली, जब इन्हें यहाँ लाया गया था, तब इनके दोनों पाँव आधे कट चुकें थे। एक्सीडेंट बहुत ही भयावह रहा होगा, बड़े से ट्रक के निचले हिस्से से इनके पाँव कट गये थे, हमने अपनी पूरी कोशिश की लेकिन हम इनके पाँवों को नहीं बचा सकें, आय एम रियली सॉरी!!!"


डॉक्टर की बात सुनते ही नियति के पेट में तेज़ दर्द उठा और वह नीचे गिर पड़ी। नियति के मम्मी की चीख़ निकल पड़ी। डॉक्टर और नर्स की मदद से नियति को दूसरे कमरे में ले जाया गया। जब नर्स और डॉक्टर नियति को स्ट्रेचर पर लिटा दूसरे कमरे में ले जा रहे थे, तो नियति की मम्मी का ध्यान उसके कपड़ों पर गया, उसके कपड़े खून से भरे थे। बाद में जाँच में पता चला, नियति एक माह से गर्भवती थी, अचानक लगे सदमे से उसने अपना बच्चा भी खो दिया था।


अपनी बेटी पर टूटें इस मुश्किलों के पहाड़ देख नियति के मम्मी-पापा भी टूट चुके थे। जब नियति को होश आया और उसे अपने बच्चे के बारे में पता चला तो वह और भी बिखर गई।


एकटक हॉस्पिटल के कमरे की छत को निहारते हुए वह सोचने लगी, "ऐसा कौन सा गुनाह वह कर बैठी थी, जो एक के बाद एक हादसे उसकी ज़िंदगी में उसके साथ हो रहे थे। आख़िर किस बात की सज़ा उसे मिल रही थी!!! जीने की चाह रखने वाली वह आज जीना ही नहीं चाहती थी!! लेकिन अब मौत को भी तो गले नहीं लगा सकती थी वह। आकाश को होश आयेगा तो कौन सँभालेगा??? उसे तो जीना ही पड़ेगा............


अभी तक अपने अतीत में डूबी नियति कुछ आवाज़ सुन जाग उठी, उसने देखा, वह बालकनी के आराम कुर्सी पर बैठी है, बाहर अँधेरा हो चुका है। लगता है काफ़ी देर से यही बैठी थी वह, अपनी यादों में खोई थी...


वह उठकर अंदर आयी तो, आकाश व्हील चेयर पर बैठा उसे ही ढूंढ रहा था, "कहाँ थी तुम?? चाय देकर ग़ायब ही हो गयी!! मैं कबसे तुम्हें बुला रहा था, आखिर मुझे यहां तक आना पड़ा तुम्हें देखने!!"


नियति - मैं बालकनी में बैठी थी। थक गई थी तो नींद लग गई थी बैठे, बैठे!!! तुम्हें कुछ चाहिए???"

आकाश - हाँ, मेरा मोबाइल नहीं दिख रहा है, कहां रखा तुमने??

नियति - चार्जिंग पर लगाया था, देती हूँ अभी.......

क्रमशः ........



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