इसी को तो कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह। इसी को तो कहते हैं जहाँ चाह वहाँ राह।
हम इस प्रसंग पर 25वें और 26वें अध्याय में लौटेंगे। हम इस प्रसंग पर 25वें और 26वें अध्याय में लौटेंगे।
मनोदशा सुधरने लगी और वह फिर से खिलखिलाने वाली संदली बन गयी। मनोदशा सुधरने लगी और वह फिर से खिलखिलाने वाली संदली बन गयी।
यह इतिहास की पुस्तकों में लिखने से रह गया। यह इतिहास की पुस्तकों में लिखने से रह गया।
हर पल रहेगा, पल पल रहेगा, इंतज़ार! बस इंतज़ार ! हर पल रहेगा, पल पल रहेगा, इंतज़ार! बस इंतज़ार !
हम तो बने हैं इक दूजे के लिए ! कौन अलग कर सकता हैं हमें ? हम तो बने हैं इक दूजे के लिए ! कौन अलग कर सकता हैं हमें ?