Kanchan Pandey

Inspirational

4.3  

Kanchan Pandey

Inspirational

निश्छल मन

निश्छल मन

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"भैया - भैया रुकिए मै भी तैयार हो गया हूँ मुझे भी आपके साथ जाना है"

संतोष –"ठीक है जल्दी चलो।"

राजू –"चलो भैया ।"

संतोष -"हाँ –हाँ चलो।भैया -भैया देखो मैम आ रही हैं।"

संतोष –"हूँ।"

राजू –"गुड मोर्निग मैम।"

मैम-"गुड मोर्निग ,कैसे हो राजू ,कैसे हो संतोष ?।"

राजू – "ठीक हूँ।"

राजू -मन हीं मन सोचने लगा ,अरे भैया ने क्यों मैम को गुड मोर्निंग नहीं कहा उसे बड़ा अजीब लग रहा था ,लेकिन फिर सोचा हो सकता है परीक्षा चल रही है कुछ सोच रहे हों इसलिए वह कुछ संतोष से जवाब –सवाल नहीं किया और अपनी कक्षा की ओर चला गया।कुछ दिनों तक राजू इस घटना पर ध्यान देने लगा उसे बहुत अजीब महसूस होने लगा भैया क्यों ऐसा करते हैं ?एक दिन राजू का निश्छल मन संतोष से पूछ हीं लिया भैया

संतोष –"हाँ बोलो राजू क्या बात है ?"

राजू –"भैया मैं कितने दिनों से देख रहा हूँ कि..." राजू बोलते –बोलते रूक गया।

संतोष –"क्या देखते हो ?"

राजू – "यही कि"

संतोष –"क्या ?अब नहीं बोलोगे तो थप्पड़ मारूंगा खुद तो पढ़ने में मन नहीं लगता है और मुझे भी तंग करके रखा है।"

राजू –"मैं रोज देखता हूँ आप कुछ सर और मैम को अभिवादन करते हैं और कुछ की ओर तो देखते भी नहीं हैं ऐसा क्यों ?"

संतोष –"ओ इसलिए आजकल मेरे साथ जाना होता है मैं क्या करता हूँ क्या नहीं ?"                        

राजू –" नहीं- नहीं भैया बोलो ना भैया, क्या" संतोष जोर से बोला ....संतोष -"देखो राजू अब जब मैं उन सर मैंम से पढ़ता नहीं हूँ तो क्यों गुड मोर्निग ,गुड इवनिंग करूं ?"

राजू –"लेकिन बचपन से वे पढाएं हैं।"

संतोष –"तो क्या तुम इसी चक्कर में रहते हो जाओ पढ़ो बहुत हुआ तुम्हारा पूछताछ"

राजू –"माफ कीजिए भैया"

कुछ दिन बाद विद्यालय बंद हो गया, राजू –अपनी माँ के साथ गाँव दादी –दादा के पास चला गया जब लौट कर आया तो उसका तेवर ही बदला –बदला हुआ था।

संतोष –"माँ राजू कुछ बदला –बदला लग रहा है क्या हुआ ?"

लक्ष्मी [माँ]-"मैं भी बहुत आश्चर्य में हूँ और चिंता हो रही है ,गाँव में कुछ दिन खामोश रहा फिर देख ही रहे हो जो लोग मेरे बच्चों की तारीफ करते नहीं थकते थे , उन्होंने ने भी क्या नहीं सुनाया मैं तो परेशान हूँ अंत में दादा जी ने यह कह दिए कि जब शहर में और बड़े -बड़े विद्यालयों में यही शिक्षा दी जाती है तो इससे अच्छा है कि मेरे पास मेरे पोतों को भेज दो।"

संतोष –"ठीक है, माँ मैं देखता हूँ।"

दो दिन बाद जब स्कूल खुली अब संतोष बारहवीं में चला गया था और राजू आठ में ,पहले की भांति दोनों स्कूल साथ- साथ गए लेकिन राजू ना किसी को अभिवादन किया ना पूछे गए प्रश्नों का कोई उत्तर आज संतोष आश्चर्य में था लेकिन कुछ नहीं बोला दो चार दिन यह हरकत देखकर संतोष को आत्मग्लानि हो रही थी और वह सोच में पड़ गया यह सब मेरी गलती है। मुझे देखकर हीं यह ऐसा हो गया मैं हीं दोषी हूँ।

अब संतोष सब शिक्षक और शिक्षिका को अभिवादन करने लगा साथ हीं आदर से बात करने लगा लेकिन राजू में कोई परिवर्तन नहीं देखकर दुखी हो रहा था और राजू मन हीं मन मुस्कुरा रहा था कि वाह मेरे भैया अब समझ गए हैं और वह अपनी कक्षा की ओर चला गया।

किसी ने सही कहा है गुरु कोई भी हो सकता है जरुरी नहीं की वह पढ़ाने वाला शिक्षक हीं हो जो सही रास्ता दिखाए, वह छोटा भाई भी हो सकता है। राजू भी अब अपने बड़े भाई को ज्यादा कष्ट नहीं देते हुए धीरे धीरे पहले जैसा व्यवहार करने लगा। पिता जी और माँ भी दोनों बेटों को देखकर खुश थे।अब राजू भी बहुत खुश था।

   




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