Kameshwari Karri

Abstract

4.5  

Kameshwari Karri

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निर्णय

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सरला एक बहुत बड़े व्यापारी की बेटी थी । तीन भाइयों के बीच अकेली होने के कारण माता-पिता भाई सब उसे राजकुमारी के समान मानते थे । उसके मुँह से कुछ निकले उससे पहले ही उसकी सारी फ़रमाइशें पूरी हो जाती थी । सरला को भी घमंड था ।इसलिए वह भाभियों से सीधे मुँह बात भी नहीं करती थी । माँ ने कई बार समझाने की कोशिश भी की थी कि बेटा हमारे बाद उनसे ही तेरा मायका होगा ।जब तुम यहाँ आओगी तो वे ही माँ-बाप बनकर तेरी ज़रूरतों को पूरा करेंगे पर सरला के कान पर जूं तक नहीं रेंगी ।

रामप्रसाद की बहन विनीता के बेटे विकास की शादी थी । बहन ने आकर कहा -"भैया आप कभी भी मेरे घर की तरफ़ नहीं आए इसी बहाने आप मेरे घर आ जाइए न ।" रामप्रसाद से वादा लेकर गई । अब तो कोई बहाना भी नहीं कर सकते थे ।इसलिए शादी के लिए सुलोचना और सरला के साथ सूरत के लिए अपनी गाड़ी से निकले । उन्हें अपने घर में देखकर विनीता और घनश्याम बहुत खुश हुए ।शादी होते ही वापसी के लिए निकले रामप्रसाद से सबने एकदिन और रुकने के लिए कहा ,पर काम की दुहाई देकर वे लोग निकल गए । कहते हैं कि होनी को कोई नहीं रोक सकता है अभी इनकी गाड़ी थोडी दूर पहुँची कि नहीं सामने से आते हुए ट्रक वाले ने इनकी कार को टक्कर मार दी और रामप्रसाद जी और सुलोचना की वहीं मौत हो गई ,सिर्फ़ सरला ही बच गई वह भी कैसे ? किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था । अब सरला बिन माँ बाप की हो गई और उसे हर किसी पर ग़ुस्सा आता था उसने घर में सबका जीना हराम कर दिया था ।भैया भाभी के साथ हमेशा उसका झगड़ा चलता रहता था । अब भाइयों ने सोचा इसे घर से भगाने का समय आ गया है ।ज़ोर शोर से उसके लिए लडका ढूँढने लगे । उन्हें सुंदर मिला । वह अपने नाम की तरह ही सुंदर था । बेज़ुबान और सुशील था । किसी तरह सरला का विवाह सुंदर से होगया । वह भी इस घर से जाना ही चाह रही थी ।

सरला अपने घर में खुश थी । एक साल में ही उसके घर में नन्हें से चन्द्र शेखर का जन्म हुआ । वह अपने पिता के समान बहुत सुंदर था ।सुंदर तो वह था ही पढ़ने में भी बहुत होशियार निकला ।हर कक्षा में अव्वल आता था । एक दिन ऑफिस से आते हुए सुंदर का एक्सिडेंट हो गया और सुंदर सरला को अकेले ही छोड़कर अपने रास्ते चले गए । 

भाई सरला को देखने आए और उसे उसके बेटे को अपने साथ लेकर चले गए । कुछ दिन वहाँ रहने के बाद उसने सुना बड़ी भाभी मझली भाभी से कह रही थी कि" बडी मुश्किल से इसे भगाया था ,अब सूद के साथ वापस आ गई है" तो मझली भाभी ने कहा -"जीजी आपके देवर ने कहा अभी तो चंद्रशेखर छोटा है ,अगले साल तक किसी किराने के शाप में काम पर लगा दिया तो महीने में एक- दो हज़ार कमा ही लेगा ।" यह सुनते ही सरला का दिल धक से रह गया ।उसने सोचा उनके बच्चे तो कॉलेज में पढ़ रहे हैं और मेरे बेटे से काम करायेंगे वह यह सहन नहीं कर पाई । दूसरे ही दिन वह भाइयों के पास गई और वापस जाने की इजाज़त माँगी । उन्हें भी बुरा तो लग रहा था ।सबसे छोटी है और उसका ऐसा हाल हो गया है । बीवियों की बात मानकर उन्होंने उसे जाने की इजाज़त दे दी । सबसे पहले सरला शहर से एक छोटे से गाँव में चली गई ,जहाँ उसके नाना रहते थे । बचपन में कई बार माँ के साथ यहाँ आती थी इसलिए गाँव वाले उसकी हालत पर तरस खाकर उसकी मदद करने के लिए तैयार हो गए । उसने अपने गहने बेचकर तथा सुंदर के ऑफिस से आए पैसों से तीन भैंस और एक कपडे सिलने की मशीन खरीद ली । माता-पिता के लाड़ प्यार ने उसे पढ़ने भी नहीं दिया था । उसका नतीजा यह रहा कि उसे अब बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी । अपने आपको किसी तरह उसने संभाला और सारे दिन काम करके इतने पैसे कमा लेती थी कि बच्चे की ख्वाहिशों को पूरा करते हुए उसे अच्छे स्कूल में पढ़ा सके । चन्द्रशेखर भी अपनी माँ को मेहनत करता देख अच्छे से पढता था ।दूसरे बच्चों की तरह किसी भी चीज़ की फ़रमाइश भी नहीं करता था । अब चंद्रशेखर ने पी . जी कर लिया और बडी सी कंपनी में नौकरी पर लग गया । उसने माँ से सब कुछ बेचकर अपने साथ शहर में ही रहने के लिए कहा । सरला ने हँसते हुए कहा नहीं चंद्रा तू पूरी तरह से सेटिल हो जा और जमे जमाए कारोबार को क्यों छोड़ देना और रही बात मैं अब भी काम कर सकती हूँ तो बेकार में घर में बैठ कर क्या करूँगी ? यह कहकर वह वापस गाँव आ गई ।अब तो भाई भी उसके घर के चक्कर काटने लगे और चंद्रशेखर के लिए अपनी तरफ़ से रिश्ते लाने लगे । 

सरला होशियार थी ।उसने अपनी सहेली की लड़की से चंद्रशेखर का रिश्ता पक्का कर दिया क्योंकि जब वह गाँव में आई थी तब उसी ने सरला की मदद की थी । लड़की रिया पढ़ी लिखी और सुंदर थी दोनों की जोड़ी अच्छी लग रही थी ।ऐसा लग रहा था जैसे दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं । सरला चंद्रशेखर की शादी होते ही दोनों को शहर में छोड़ने गई । चंद्रशेखर फिर माँ से कहने लगा रह जाओ न । उसने एक गेटेड कम्यूनिटी में ही टू बेडरूम फ़्लैट लिया था । उसी कम्यूनिटी में रहने वाले अपने दोस्त के घर रिया को लेकर गया था । एक बार को लगा रह जाऊँ क्या ? पर फिर सोचा नहीं ,अभी ही उनकी शादी हुई है बाद में आऊँगी । यही सोच रही थी कि रिया की आवाज़ सुनाई दी । अरे !ये लोग आ गए? रिया कह रही थी .."उनका घर कितना सुंदर है न । हमारा घर एकदम ख़ाली है । चंद्रा कम से कम एक टी .वी तो ख़रीद दो न ।" सरला अंदर से आते हुए कहती है" रिया मैं ख़रीद दूँगी ।" उससे मत माँग । फिर सरला वापस गाँव आ गई । सबने पूछा सरला अभी ही आ गई ...थोड़े दिन और रुक जाती । उसने कहा अरे !!उनके बीच कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती थी ,इसलिए आ गई । अब उसने पहले से भी ज़्यादा मेहनत किया और कुछ पैसे जमाकर के शहर जाती है ।वह अपनी बहू को खुश कर देना चाहती है । दो महीनों में ही सरला ने पचास हज़ार रुपये जमा कर लिए और अब वह फिर शहर की तरफ़ भागी ताकि जल्दी से टी .वी ख़रीद सके और बहू की आँखों में चमक देख सके । जैसे ही उसने घर में कदम रखा उसे लगा कि वह ग़लत घर में आ गई ।वापस जाकर उसने घर का नंबर देखा सही है ।तभी चंद्रशेखर आया "माँ आओ न मेरा ही घर है । कैसी है ?" रिया भी अंदर से आई और उसने सरला के पैर छुए । सरला ने कहा - "चंद्रशेखर तुम लोगों ने तो दो महीने में घर की काया ही पलट दी है ?" उसने रिया की तरफ़ देख कर हँसते हुए कहा —"रिया की ही ज़िद थी माँ !" रिया की तरफ़ देख कर आँख मारता है । "कुछ नहीं माँ आजकल सारी चीज़ें किश्त में मिल जाती हैं और मेरा प्रमोशन भी होने वाला है और एक ख़ुश खबर यह है कि रिया को भी जॉब मिल गई है ।"यह सुनकर सरला को बहुत अच्छा लगा । रिया चाय बनाने गई तो सरला ने चंद्रशेखर से कहा "मैं पैसे लाई थी कि तुम लोग घर के लिए कुछ खरीदोगे पर तुम लोगों ने तो घर में सब सामान ख़रीद लिया है" तभी रिया ने मुझे पुकारा जब मैं रसोई में गई तो उसने कहा .."माँजी इस सोसायटी में नए साल में किटी है सब लोग डिज़ाइनर की साड़ियाँ पहन रही हैं । मैंने आपके बेटे से साड़ी के लिए पैसे माँगा तो उन्होंने कहा अपनी शादी की साड़ी पहन ले । आप ही बोलिए न मैं उनके सामने कैसे दिखूँगी ? इसलिए उन पैसों को मुझे दे दीजिए मैं साड़ी ख़रीद लूँगी ।" मैंने उसे बीस हज़ार ही दिए क्योंकि फ़िज़ूल खर्ची के लिए मैंने मेहनत नहीं की थी । बीस हज़ार की साड़ी अब क्या बोलूँ ?दो दिन रहकर सरला गाँव आ गई । जैसे ही गेट खोलकर वह अंदर आई उसने देखा बरामदे में कोई सोया है ।सरला ने चिल्लाया "कौन है ?"रीमा खड़ी हो जाती है ।वह सरला के घर में काम करती है । उसने डरते हुए कहा —"अम्मा आज रात यहीं सोती हूँ ,कल चली जाऊँगी ।" सरला ने देखा छोटे-छोटे दो बच्चे भी थे ।वे भी आधी नींद से उठे थे डरकर माँ के पीछे छिपे थे । सरला ने कहा ठीक है और ताला खोल कर अंदर चली गई । सूटकेस एक तरफ़ रखकर कपड़े बदल कर सो गई । सबेरे उठकर देखा तो बरामदा ख़ाली था । पिछवाड़े में रीमा बच्चों के साथ बैठी थी । मैं वहाँ गई और पूछा क्या बात है रीमा। वह रोने लगी मैंने उसे रोने दिया ।थोड़ा संभलने के बाद उसने बताया कि "उसके पति ने दूसरी शादी कर ली और उसे बच्चों के साथ बाहर भगा दिया ।रात को कहाँ जाऊँ ?सोचकर आपके घर बरामदे में सो गई क्योंकि मुझे मालूम था कि आप नहीं हैं ।" सरला ने पूछा "अब क्या करेगी ?" उसने कहा "चार पाँच घरों में काम कर रही हूँ ।सबसे थोड़ा- थोड़ा पैसे माँग लूँगी !अगर सबने पैसे दिए 

 तो गाँव के बाहर एक छोटी सी झोपड़ी बना लूँगी ।" सरला ने कहा —"देख रीमा तुझे इधर-उधर भागने की ज़रूरत नहीं है । मेरे पिछवाड़े में जो कमरा है उसे अच्छे से झाड़ पोंछ लें और मैं पैसे देती हूँ सामान ख़रीद कर ला ले" कहा और उसके हाथ में बीस हज़ार रुपये रख दिए । वह तो मेरे पैरों में गिर गई ।"भगवान आपका भले करें आपने आज मुझे और मेरे बच्चों को दरदर की ठोकरें खाने से बचा लिया ।"बच्चों को भी बुला लाई और सब पैरों पर गिर गए । मैं सोच रही थी इन्हें देखो कितनी दुआएँ दे रहे हैं ।वहीं रिया को दिया तो क़द्र ही नहीं है । 

पहले बच्चे के लिए काम किया वह मेरी ज़िम्मेदारी थी मेरा था स्वार्थ था । अब मुझे पता चल गया है कि ज़रूरत मंदों की ज़रूरतों को पूरा करने में जो ख़ुशी मिलती है वह किसी में भी नहीं मिलती । इसलिए अब पैसे स्वार्थ के लिए नहीं कमाऊँगी या खर्च करूँगी । अब मेरे सामने यह प्रश्न ही नहीं है कि मैं पैसे किसके लिए कमाऊँ ? मैं निश्चिंत हो गई और अपने निर्णय पर मुझे गर्व भी महसूस हुआ । 



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